महिला दिवस के मौके पर हम आज एक ऐसी महिला शख्सियत की बात करने जा रहे हैं जो भारतीय हाइड्रोकार्बन उद्योग में पहली महिला निरीक्षण इंजीनियर बनीं. साथ ही देश की किसी भी रिफाइनरी का नेतृत्व करने वाली एक मात्र महिला इंजीनियर भी. जी हां पश्चिम बंगाल की शुक्ला मिस्त्री वो महिला हैं जिन्होंने काफी अभाव में रहकर अपने लक्ष्य को प्राप्त किया. एक समय था जब उनके पास किताब खरीदने तक के भी पैसे नहीं थे लेकिन आज वह देश की महिलाओं और बेटियों के लिए मिसाल बनी हुई है.
ऐसी ही एक महिला है देश के किसी भी रिफाइनरी की पहली और एकमात्र महिला प्रमुख शुक्ला मिस्त्री. अप्रैल 1964 में पश्चिम बंगाल के 24 परगना के सुंदरवन इलाके में स्थित बसंती नाम के गांव के गरीब परिवार में खिरोद मिस्त्री के घर जब किलकारी गूंजी थी तो किसी ने सोचा भी नहीं था कि यह बच्ची एक दिन दुनिया में चर्चित होगी. बसंती गांव एक द्वीप है और हर साल बारिश के मौसम में बाढ़ से ग्रस्त होता है. नाव के अलावा वहां कोई संचार का माध्यम नहीं था. बिजली, सड़क और महाविद्यालय आदि नहीं थे. गांव में केवल दो स्कूल थे, एक प्राथमिक और दूसरा माध्यमिक. आगे के अध्ययन के लिए शहर जाना होता था. बिजली और संचार के अभाव में उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई में काफी संघर्ष किया. उनके दो छोटे भाई थे, बिना किसी ट्यूशन के गांव के स्कूलों में पढ़ाई और पढ़ाई के लिए मिट्टी के दीपक का इस्तेमाल करती थी.
चाचा ने उठाया पढ़ाई का खर्च
कई दिनों तक किताबें खरीदने के लिए पैसे नहीं थे. 1979 में दसवीं की परीक्षा के बाद चाचा के घर कोलकाता गई और दसवीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा में अच्छे अंकों के कारण अच्छे कॉलेज लेडी ब्रेबॉर्न कॉलेज में भर्ती हुई. पिता की खराब वित्तीय स्थिति के कारण दूर के रिश्ते के चाचा द्वारा प्रदान की गई वित्तीय सहायता से उन्होंने अपनी आगे की पढ़ाई पूरी की. 1981 में बारहवीं कक्षा पास की और बंगाल के संयुक्त प्रवेश परीक्षा के माध्यम से 1981 में बंगाल इंजीनियरिंग कॉलेज में इंजीनियरिंग करने का मौका मिला. इसलिए बी. ई. कॉलेज शिवपुर, हावड़ा के मेटालर्जिकल इंजीनियरिंग में दाखिला लिया. कक्षा में दूसरा या तीसरा स्थान आता था.
आईआईटी खड़गपुर से किया एमटेक
1985 में इंजीनियरिंग पूरी करने के बाद, आईआईटी खड़गपुर में एम. टेक में दाखिला लिया लेकिन इंडियन ऑयल में नौकरी मिलते ही आगे की पढ़ाई छोड़ दी. क्योंकि उन्हें परिवार और भाइयों की देख भाल करनी थी. परिवार का ख्याल रखा और दोनों भाइयों की पढ़ाई और उनके प्रति अपनी जिम्मेदारी पूरी करनेेे के लिए शादी नहीं की तथा वह अपनी गांव की पहली इंजीनियर बनी.
2018 से 2019 तक डिगबोई रिफाइनरी का नेतृत्व किया
बंगाल इंजीनियरिंग कॉलेज, कलकत्ता विश्वविद्यालय शिवपुर हावड़ा से मेटलर्जी में इंजीनियरिंग के साथ- साथ आईसीएफएआई से व्यवसाय प्रबंधन में एक एडवांस डिप्लोमा तथा औद्योगिक रेडियोग्राफी और अल्ट्रासोनिक गैर-विनाशकारी परीक्षण में प्रमाणपत्र भी हासिल किया है. शुक्ला मिस्त्री ने 1986 में ग्रेजुएट इंजीनियर ट्रेनी के रूप में इंडियन ऑयल ज्वाइन किया और निरीक्षण इंजीनियर के रूप में हल्दिया रिफाइनरी से अपने करियर की शुरुआत की. निरीक्षिण विभाग, इंजीनियरिंग सर्विसेज विभाग और बाद में इंडियन ऑयल की विभिन्न परियोजनाओं में काम किया. उन्होंने हल्दीया, पानीपत और बरौनी रिफाइनरीओं में ब्राउन फील्ड से लेकर ग्रीन फाइलेड प्रोजेक्ट्स में काम किया, जो प्रकृति में छोटे से लेकर मेगा तक विविध थे. अपने करियर में तेज़ी से प्रगति करते हुए आगे बढ़ी, महाप्रबंधक बन गई और बाद में 2018 से 2019 तक डिगबोई रिफाइनरी का नेतृत्व किया.
भारतीय हाइड्रोकार्बन उद्योग में पहली महिला निरीक्षण इंजीनियर
इसके बाद बरौनी रिफाइनरी की कार्यपालक निदेशक बन गई और 2019 से आज तक इकाई का नेतृत्व कर रही है. शुक्ला मिस्त्री ना केवल इंडियन ऑयल में बल्कि, भारतीय हाइड्रोकार्बन उद्योग में पहली महिला निरीक्षण इंजीनियर हैं. निर्माण और कमीशनिंग के कठिन समय के दौरान कतर की परियोजनाओं में काम करने वाली पहली भारतीय महिला इंजीनियर भी हैं. 24X7 पारियों में काम करने वाली पहली महिला इंजीनियरों में से एक थी और ना केवल महिला अधिकारियों के लिए, बल्कि उनके पुरुष सहयोगियों के लिए भी एक आदर्श बन गई. बकाया संगठन कौशल के साथ उन्होंने बिना किसी हिचकिचाहट के विभिन्न कठिन पोस्टिंग में काम किया और जटिल नौकरी-कार्यों के वर्गीकरण में भाग लेने के लिए देश भर में व्यापक रूप से यात्रा की. निरीक्षण और परियोजना प्रबंधन में भारत और विदेशों में कई रिफाइनरियों में कौशलता से चुनौतीपूर्ण कार्य संभाला है.