World Theatre Day 2022: हम सब महज रंगमंच के पात्र हैं…! जानें क्यों और कैसे मनाते हैं विश्व रंगमंच दिवस? और कितना पुराना नाता है भारत का रंगमंच से?

All the World's a Stage, and all the man and women merely players…अर्थात ‘सारी दुनिया एक रंगमंच की तरह है और स्त्री और पुरुष अभिनेता, सात अवस्थाएं जीवन की, सात अंकों के नाटक में, अपना-अपना खेल दिखाकर इंसान चला जाता है,’ विलियम शेक्सपियर के शब्दों में रंगमंच की यही जीवित व्याख्या है. काफी सालों से भारत फिल्मों का देश माना जाता रहा है, यद्यपि आज वेब सीरीज फिल्मों पर हावी हैं, लेकिन जड़ में आज भी रंगमंच जिंदा है.

सिनेमा हॉल | प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo: Pixabay)

All the World's a Stage, and all the man and women merely players…अर्थात ‘सारी दुनिया एक रंगमंच की तरह है और स्त्री और पुरुष अभिनेता, सात अवस्थाएं जीवन की, सात अंकों के नाटक में, अपना-अपना खेल दिखाकर इंसान चला जाता है,’ विलियम शेक्सपियर के शब्दों में रंगमंच की यही जीवित व्याख्या है. काफी सालों से भारत फिल्मों का देश माना जाता रहा है, यद्यपि आज वेब सीरीज फिल्मों पर हावी हैं, लेकिन जड़ में आज भी रंगमंच जिंदा है. 27 मार्च को सारी दुनिया 60वां विश्व रंगमंच (थिएटर) दिवस मनाने जा रही है... आखिर क्या है रंगमंच दिवस? क्यों मनाती है दुनिया रंगमंच दिवस? कब अस्तित्व में आया रंगमंच और कितनी गहरी जड़ें हैं भारत में रंगमंच की? आइये जानते हैं.

रंगमंच वस्तुतः दो शब्दों ‘रंग’ और ‘मंच’ के संयोग से बना है, यानी एक ऐसा मंच जिस पर जीवन के विविध रंगों को विभिन्न अंदाजों में अभिनय के द्वारा लोगों के सामने प्रस्तुत किया जा जाता है. अंग्रेजी भाषा में इसे थियेटर (Theater) के नाम से जाना जाता है.

विश्व रंगमंच दिवस का इतिहास.

विश्व रंगमंच दिवस की शुरुआत अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच संस्थान (International Theater Institute) द्वारा साल 1961 में की गई थी. इस दिवस विशेष के आयोजन का मुख्य मकसद लोगों को रंगमंच के मूल्यों और महत्वों को बताते हुए दुनिया भर में रंगमंच को जन-जन तक पहुंचाना होता है. आईटीआई की स्थापना नृत्य विभूतियों और यूनेस्को द्वारा वर्ष 1948 में की गई थी. इसका मुख्य कार्यालय पेरिस में स्थित है. गौरतलब है कि दुनिया भर में आईटीआई के लगभग 85 केंद्र सक्रिय हैं.

विश्व रंगमंच दिवस मनाने का अभिप्राय!

कोई संदेह नहीं कि सिनेमा और सोशल मीडिया के जरिये मनोरंजन के बढ़ते दायरे का असर रंगमंच पर पड़ा है. कुछेक महानगरों को अपवाद मान लें तो आज की पीढ़ी रंगमंच के मूल मूल्यों एवं संस्कृतियों से दूर जा चुकी है. रंगमंच भूली-बिसरी यादें बनकर ना रह जाये, इस बात को ध्यान में रखते हुए 27 मार्च को विश्व रंगमंच दिवस का यह मंच तैयार किया गया, ताकि दुनिया भर के लोगों को रंगमंच की संस्कृति, उसके महत्व एवं मूल्यों को बताना और इसके प्रति लोगों को आकर्षित किया जा सके, साथ ही लंबे समय से रंगमंच पर कार्यरत रंग कर्मियों को सम्मानित किया जा सके. यह भी पढ़ें : सपने में खुद को या दूसरे को निर्वस्त्र देखना? जानें स्वप्न शास्त्र क्या कहता है?

कैसे करते हैं सेलीब्रेशन

प्रत्येक वर्ष 27 मार्च के दिन विश्व रंगमंच दिवस के उपलक्ष्य में राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर थियेटर से संबंधित संस्थाओं और ग्रुप्स थियेटर्स द्वारा रंगमंच से संबंधित विविध-रंगी कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. इसके अलावा दुनिया भर के थियेटरों, अकादमियों एवं स्कूल-कॉलेजों में भी इस अवसर पर रंगमंच के विषयों, मुद्दों, इससे जुड़ी विविध समस्याओं पर रंगकर्मियों के बीच डिबेट (वाद विवाद), भाषण एवं प्रस्तुतियों इत्यादि का आयोजन किया जाता है. इन आयोजनों में सुविख्यात रंगकर्मियों को भी आमंत्रित किया जाता है.

पुराना नाता है भारत का रंगमंच से!

भारत में रंगमंच की कथा हजारों साल पुरानी है. पुराणों एवं अन्य धार्मिक ग्रंथों में भी इसका उल्लेख यम, यामी और उर्वशी आदि के रूप में वर्णित है. इनके संवादों एवं नृत्य कलाओं से प्रेरित होकर नाट्य कारों ने अन्य नाटकों की रचना की, जिसकी वजह से भारतीय नाट्य कला को एक नई दिशा-दशा मिली. कहा जाता है कि भारतीय नाट्य कला को शास्त्रीय रूप ढालने का कार्य भरत मुनि ने किया था. इतिहासकार बताते हैं कि महाकवि कालिदास ने भारत में मेघदूत नाम से पहली नाट्यशाला का आयोजन किया, जो आज भी अंबिकापुर जिले के रामगढ़ में स्थित है. कालांतर में रंगमंच का खूब विकास हुआ. लेकिन 10वीं और 11वीं शताब्दी में इस्लामी मुगल बादशाहों ने इस विधा को पूरी तरह हतोत्साहित या प्रतिबंधित किया. ब्रिटिश साम्राज्य में औपनिवेशिक शासन काल में भारी संख्या में क्षेत्रीय भाषाओं में विकसित होकर पूरे उपमहाद्वीप में ग्राम रंगमंच को प्रोत्साहित किया गया. 19 वीं शताब्दी में भारत में थिएटरों की संख्या और अभ्यास में वृद्धि काफी वृद्धि हुई. 1947 में स्वतंत्र भारत में थिएटर को विकसित होने का पूरा अवसर मिला, और देखते ही देखते रंगमंच की ओर आम लोग उन्मुख होने लगे. यूं तो सिनेमा और सीरियलों के कारण भी थियेटर खाली हुए हैं, लेकिन स्ट्रीट प्ले ने अच्छी संभावनाएं जगाई हैं रंगमंच के दर्शकों को वापस लाने की.

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