Chanakya Niti: वेश्या ग्राहक का साथ कब छोड़ देती है? जानें आचार्य चाणक्य की ऐसी कुछ अनूठी नीतियां!
चाणक्य के नीतिशास्त्र में आम जीवन से संबंधित पहलुओं की समस्याओं से जुड़े तमाम सूत्र हैं, जीवन में चल रही परेशानियों से मुक्ति पाने के लिए बहुत से लोग उनकी नीतियों का अनुपालन करते हैं. दूसरे शब्दों में कहें कि चाणक्य नीतियों में हर मुसीबत का रामबाण इलाज हैं.
Chanakya Niti: आचार्य चाणक्य की गणना भारत ही नहीं दुनिया भर के श्रेष्ठ विद्वानों में होती है. आचार्य कुशल राजनीतिज्ञ, कूटनीतिज्ञ और रणनीतिकार होने के साथ ही अर्थशास्त्र के महान ज्ञाता भी थे. चाणक्य के नीतिशास्त्र में आम जीवन से संबंधित पहलुओं की समस्याओं से जुड़े तमाम सूत्र हैं, जीवन में चल रही परेशानियों से मुक्ति पाने के लिए बहुत से लोग उनकी नीतियों का अनुपालन करते हैं.
दूसरे शब्दों में कहें कि चाणक्य नीतियों में हर मुसीबत का रामबाण इलाज हैं. उन्होंने नीतिशास्त्र में निजी जीवन से लेकर नौकरी, व्यापार और रिश्तों से जुड़े सभी पहलुओं पर तर्क साझा किए हैं. आइये जानें निम्नलिखित श्लोक में आचार्य ने क्या कहना चाहा है... ये भी पढ़े:Chanakya Niti: दुख अथवा कष्ट भोगनेवाला व्यक्ति ही जीवित कहलाएगा! जानें आचार्य चाणक्य ने ऐसा क्यों कहा?
निर्धनं पुरुषं वेश्यां प्रजा भग्नं नृपं त्यजेत्।
खगाः वीतफलं वृक्षं भुक्त्वा चाभ्यागतो गृहम्।॥17॥
अर्थात वेश्या को निर्धन व्यक्ति को त्याग देना चाहिए, प्रजा को पराजित राजा को त्याग देना चाहिए, पक्षियों को फलरहित वृक्ष को त्याग देना चाहिए एवं अतिथियों को भोजन करने के पश्चात् मेजबान के घर से निकल जाना चाहिए.
अभिप्राय यह है कि वेश्या अपने पुराने ग्राहक को भी उसके गरीब पड़ जाने पर छोड़ देती है. राजा जब बुरे समय में शक्तिहीन हो जाता है, तो उसकी प्रजा भी उसका साथ छोड़ देती है. वृक्ष के फल समाप्त हो जाने पर पक्षी उस वृक्ष को त्याग देते हैं. घर में भोजन की इच्छा से आया कोई राहगीर भोजन कर लेने के बाद घर को छोड़कर चला जाता है.
अपना उल्लू सीधा होने तक ही लोग मतलब रखते हैं. यहीं प्रकृति की उपयोगिता समाप्त हो जाने के बाद वस्तु के प्रति बदले दृष्टिकोण का संकेत है. इस संदर्भ में आचार्य चाणक्य ने कुछ उदाहरण देकर व्यक्ति के कर्त्तव्य-पालन पर बल दिया है. धन के कारण वेश्या जिसे अपना प्रेमी कहती है, निर्धन होने पर उससे मुंह मोड़ लेती है. इसी प्रकार अपमानित राजा को प्रजा त्याग देती है और सूखे ठूंठ वृक्ष से पक्षी उड़ जाते हैं.
इसी प्रकार अतिथि को चाहिए कि वह भोजन करने के उपरान्त गृहस्थ का साधुवाद करके घर को त्याग दे. वहां डेरा डालने से हो सकता है कि संकोच का त्याग करके उसे जाने के लिए कहना पड़े. उसे यह समझना चाहिए कि सम्मान की रक्षा इसी में है कि वह भोजन करने के पश्चात् स्वयं जाने के लिए आज्ञा मांग ले. इसी में दोनों की भलाई है.