Varalakshmi Vratam 2024: कौन हैं वरलक्ष्मी और कब रखा जाता है इनका व्रत-अनुष्ठान? जानें इसका महात्म्य, मुहूर्त एवं पूजा-विधि इत्यादि?
हिंदू धर्म शास्त्रों में वरलक्ष्मी व्रत-पूजा एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है. यह श्रावण माह शुक्ल पक्ष में आखिरी शुक्रवार को मनाया जाता है. श्रावण पूर्णिमा के ठीक पहले पड़ने के कारण इसका महात्म्य काफी बढ़ जाता है.
हिंदू धर्म शास्त्रों में वरलक्ष्मी व्रत-पूजा एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है. यह श्रावण माह शुक्ल पक्ष में आखिरी शुक्रवार को मनाया जाता है. श्रावण पूर्णिमा के ठीक पहले पड़ने के कारण इसका महात्म्य काफी बढ़ जाता है. यह व्रत-अनुष्ठान आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडू एवं महाराष्ट्र की महिलाएं अपने परिवार की सुख-शांति विशेषकर बच्चों की अच्छी सेहत और सुखद भविष्य के लिए रखती हैं. मान्यता है कि वरलक्ष्मी व्रत एवं अनुष्ठान करने से अष्टलक्ष्मी के समान शुभता प्राप्त होती है. यह अनुष्ठान दिव्य आशीर्वाद और समृद्धि के आह्वान के लिए समर्पित दिन है.
वरलक्ष्मी व्रतम् का महत्व!
दक्षिण भारत में वरलक्ष्मी व्रतम् का बहुत महत्व है, विशेषकर विवाहित महिलाएं अपने पति और परिवार की भलाई के लिए वरलक्ष्मी का व्रत-अनुष्ठान करते हैं. वरलक्ष्मी जिन्हें आठ अभिव्यक्तियों (विभिन्न प्रकार के धन एवं गुणों) का प्रतीक माना जाता है, की विधि-विधान से पूजा की जाती है. यह व्रत धन, समृद्धि, और सौभाग्य की देवी माँ लक्ष्मी को समर्पित है.
वरलक्ष्मी व्रतम् (2024) की तिथि एवं पूजा-मुहूर्त
मूल तिथिः 16 अगस्त 2024, शुक्रवार
सिंह लग्न पूजा मुहूर्तः 06.20 AM से 08.19 AM
वृश्चिक लग्न पूजा मुहूर्तः 12.20 PM से 02.30 PM
कुम्भ लग्न पूजा मुहूर्तः 06.34 PM से रात्रि 08.20 PM तक
वृषभ लग्न पूजा मुहूर्तः 11.55 PM से 01.58 AM तक (17 अगस्त 2024)
वरलक्ष्मी व्रतम् पूजा का विधान!
वरलक्ष्मी पूजा-अनुष्ठान दीपावली पर की जानेवाली लक्ष्मी-पूजा से मिलती-जुलती है. इस दिन सुबह-सवेरे किसी पवित्र नदी में स्नान-दान करें. स्वच्छ वस्त्र पहनकर वरलक्ष्मी का ध्यान करें, व्रत-पूजा का संकल्प लें. अब मंदिर की अच्छी तरह सफाई करें. ध्यान रहे, देवी लक्ष्मी उसी घर में प्रवेश करती हैं, जहां शांति और साफ-सफाई रहती है. मंदिर के सामने फूलों से वेदी बनाएं, इस पर रंगोली सजाएं. बगल में चावल का ढेर बनाएं. इस पर स्वास्तिक-चिह्न लगा कलश स्थापित करें. कलश पर कलावा बांधें. रंगोली पर वरलक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें. धूप-दीप प्रज्वलित करें. भगवान गणेश की स्तुतिगान करें. देवी वरलक्ष्मी का यह मंत्र पढ़ें.
‘ॐ श्रीं क्लीं महालक्ष्मी महालक्ष्मी एह्योहि सर्व सौभाग्यं देहि में स्वाहा.’
देवी वरलक्ष्मी को सोलह-श्रृंगार के समान, एवं कमल फूल, रोली, पान, सुपारी, कलावा अर्पित करें. प्रसाद में केसर की खीर, मिठाई और फल अर्पित करें. अंत में वरलक्ष्मी की आरती उतारें और प्रसाद वितरित करें.
कौन हैं वरलक्ष्मी?
वरलक्ष्मी देवी महालक्ष्मी का ही एक स्वरूप हैं, जो वस्तुतः विष्णु प्रिया माता लक्ष्मी ही हैं. माना जाता है कि वह दूधिया सागर से प्रकट हुई हैं, जिसे क्षीर सागर के नाम से भी जाना जाता है. उन्हें दूधिया सागर जैसी दिखने वाली त्वचा के साथ चित्रित किया गया है. देवी वरलक्ष्मी दूध के रंग का वस्त्र धारण करती हैं. मान्यता है कि माता वरलक्ष्मी की विधि-विधान से पूजा करे वाले भक्तों पर प्रसन्न होकर मां वरलक्ष्मी वर देकर उनकी सभी इच्छाएं पूरी करती हैं, इसलिए इन्हें वरलक्ष्मी के नाम से जाना जाता है.