Varah Jayanti 2024: बुरी शक्तियों एवं शत्रुओं से मुक्ति हेतु ऐसे करें भगवान वराह की पूजा-अर्चना! जानें इनका महात्म्य, एवं मुहूर्त!
हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार जब-जब पृथ्वी पर आतताइयों का अत्याचार बढ़ा, भगवान विष्णु ने अवतार लेकर उसका दमन किया. इसी क्रम में एक बार महाबलशाली राक्षस हिरण्याक्ष का पृथ्वी पर ऋषि-मुनियों, नागरिकों पर अत्याचार बढ़ने लगा, तब भगवान विष्णु ने वाराह (सुअर) का अवतार लेकर उसका संहार कर पृथ्वी पर सुरक्षा, संतुलन और व्यवस्था को बहाल किया.
हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार जब-जब पृथ्वी पर आतताइयों का अत्याचार बढ़ा, भगवान विष्णु ने अवतार लेकर उसका दमन किया. इसी क्रम में एक बार महाबलशाली राक्षस हिरण्याक्ष का पृथ्वी पर ऋषि-मुनियों, नागरिकों पर अत्याचार बढ़ने लगा, तब भगवान विष्णु ने वाराह (सुअर) का अवतार लेकर उसका संहार कर पृथ्वी पर सुरक्षा, संतुलन और व्यवस्था को बहाल किया. मान्यताओं के अनुसार भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया को श्रीहरि ने वाराह के रूप में अवतार लिया था, इसलिए इस दिन बड़ी धूमधाम एवं विधि-विधान से वाराह जयंती मनायी जाती है. इस वर्ष 6 सितंबर 2024, शुक्रवार को वाराह जयंती मनाई जाएगी. आइये जानते हैं, इस दिन का महत्व, मुहूर्त, एवं पूजा विधि इत्यादि के बारे में. यह भी पढ़ें : Ganeshotsav & Vastu 2024: वास्तु के इन नियमों के अनुसार करें गणपति बप्पा की स्थापना, पूजा एवं विसर्जन!
वराह जयंती मूल तिथि एवं पूजा का शुभ मुहूर्त
भाद्रपद शुक्ल पक्ष तृतीया प्रारंभः 12.21 PM अपराह्न, (05 सितंबर 2024, गुरुवार)
भाद्रपद शुक्ल पक्ष तृतीया समाप्तः 03.01 PM अपराह्न, (06 सितंबर 2024, शुक्रवार)
उदया तिथि के अनुसार 6 सितंबर 2024 को वराह जयंती मनाई जाएगी.
पूजा मुहूर्तः 01.35 PM से 04.06 PM तक (06 सितंबर 2024)
वराह जयंती का महत्व
भाद्रपद शुक्ल पक्ष तृतीया को भगवान विष्णु द्वारा वराह के रूप में तीसरा अवतार लिये जाने के उपलक्ष्य में वराह जयंती मनाई जाती है. पौराणिक कथाओं के अनुसार महाबलशाली राक्षस हिरण्याक्ष ने जब पूरे ब्रह्माण्ड को महासागर में डुबोने की कोशिश की, तब विष्णु जी ने एक शक्तिशाली वराह (सुअर) के रूप में अवतरित होकर ब्रह्मण्ड को अपने मस्तष्क पर लेकर इसकी रक्षा की थी. यह पर्व महज वराह जयंती तक सीमित नहीं रहता, बल्कि प्रतिकूल परिस्थितियों में धार्मिकता, साहस और विश्वास को बनाए रखने के महत्व को भी दर्शाता है. यह पर्व अधर्म पर धर्म एवं अन्याय पर न्याय की विजय को भी प्रतिबिंबित करता है.
पश्चात वराह पूजा विधि
वराह जयंती पर भगवान विष्णु की पूजा-अनुष्ठान का विधान है. इस दिन सुबह सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान-ध्यान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें. मंदिर के सामने एक चौकी रखें, इस पर स्वच्छ वस्त्र बिछाकर भगवान वराह की तस्वीर के साथ भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें. चौकी के सामने रोली से स्वास्तिक बनाएं. प्रतिमा को गंगाजल से प्रतीकात्मक स्नान कराएं. स्वास्तिक पर धूप दीप रखकर प्रज्वलित करें. निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए पूजा की प्रक्रिया शुरू करें.
‘ॐ नमः श्रीवराहाय धरण्युद्धारणाय स्वाहा’
अब भगवान के समक्ष पीले फूल, तुलसी दल, अक्षत, हल्दी, मौली, पीला चंदन, एवं पान-सुपारी अर्पित करें. इसके गायत्री और विष्णु सहस्त्रनाम का जाप करें. अंत में विष्णु जी की आरती उतारें. इसके बाद प्रसाद का वितरण करें. मान्यता है कि वराह जयंती के अवसर पूजा-अनुष्ठान करने से बुरी शक्तियों, शत्रुओं का नाश होता है, तथा घर परिवार में सुख एवं शांति आती है.