Vaishakh Durga Ashtami 2024: दुर्गा अष्टमी पर दुर्गा के अपराजिता स्वरूप की पूजा करें! शत्रुओं पराजित होंगे! जानें महत्व, पूजा-विधि एवं व्रत-कथा इत्यादि!
हिंदू धर्म शास्त्रों में वैशाख शुक्ल अष्टमी जिसे वैशाख दुर्गा अष्टमी भी कहा जाता है, का विशेष महत्व बताया गया है. इस दिन माँ दुर्गा के अष्टम स्वरूप की विधि-विधान एवं सच्ची निष्ठा के साथ पूजा-अर्चना की जाती है.
हिंदू धर्म शास्त्रों में वैशाख शुक्ल अष्टमी जिसे वैशाख दुर्गा अष्टमी भी कहा जाता है, का विशेष महत्व बताया गया है. इस दिन माँ दुर्गा के अष्टम स्वरूप की विधि-विधान एवं सच्ची निष्ठा के साथ पूजा-अर्चना की जाती है. मान्यता है कि इस दिन व्रत एवं पूजा करनेवाले जातक और उसके पारिवारिक जीवन के सारे कष्ट एवं सारे पाप नष्ट होते हैं, जीवन में सरलता, सहजता और समृद्धि आती है. इस माह दुर्गा अष्टमी व्रत एवं पूजा की तिथि को लेकर दुविधा है, कि 15 मई 2024 को मनाई जायेगी अथवा 16 मई 2024 को. वैशाख दुर्गा अष्टमी के बारे में आइये जानते हैं, वास्तु शास्त्री संजय शुक्ल क्या कहते हैं..
वैशाख दुर्गा अष्टमी मूल तिथि एवं शुभ मुहूर्त
ब्रह्म मुहूर्तः 04.07 AM से 04.48 AM तक
विजय मुहूर्तः 02.33 PM से 03.28 PM तक
गोधूलि मुहूर्तः 07.04 PM से 07.25 PM तक
अमृत कालः 01.40 PM से 03.25 PM तक
निशिता मुहूर्तः 11.57 PM से 12.38 PM तक
वैशाख शुक्ल अष्टमी प्रारंभः 04.19 AM, (15 मई 2024, बुधवार)
वैशाख शुक्ल अष्टमी समाप्तः 06.22 AM, (16 मई 2024, गुरूवार)
उदया तिथि के अनुसार दुर्गा अष्टमी का व्रत एवं अनुष्ठान 15 मई 2024 को रखे जाएंगे.
वैशाख दुर्गा अष्टमी व्रत एवं पूजा की नियम
वैशाख शुक्ल पक्ष अष्टमी को माँ दुर्गा के अपराजिता स्वरूप की पूजा की जाती है. इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करें. यद्यपि कुछ जातक इस दिन आमरस की कुछ बूंदें सामान्य जल में मिलाकर स्नान करते हैं. माँ दुर्गा का ध्यान कर व्रत एवं पूजा का संकल्प लें. इसके पश्चात मंदिर की अच्छे से सफाई करें. माँ दुर्गा की प्रतिमा को पहले जटामासी युक्त जल से तत्पश्चात गंगाजल से स्नान कराएं. धूप दीप प्रज्वलित करें, और निम्न मंत्र का जाप जारी रखते हुए पूजा-अनुष्ठान जारी रखें.
सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणि नमोस्तुते॥
दुर्गा जी को लाल या हरी चुनरी, इत्र, सिंदूर एवं श्रृंगार आदि वस्तुएं चढ़ाएं. इसके पश्चात लाल चंदन, लाल पुष्प, पान, सुपारी अर्पित करें. दूध से बनीं मिठाई एवं फल का भोग लगाएं. व्रत कथा सुनें अथवा सुनाएं. अंत में माँ दुर्गा की आरती उतारें, और सबको प्रसाद वितरित करें.
व्रत कथा
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार एक बार माँ दुर्गा के भक्त राजा इंद्र को ऋषि विश्वामित्र ने श्राप देकर उन्हें राज्य एवं सारी शक्तियों से विहीन कर दिया था. इंद्र देव ने देवी दुर्गा की सच्ची श्रृद्धा के साथ पूजा-अर्चना की. इससे माँ दुर्गा ने प्रसन्न होकर इंद्र को श्राप से मुक्ति दिलाई. इंद्र की भक्ति से प्रसन्न होकर देवी दुर्गा ने उन्हें वरदान दिया कि प्रत्येक वर्ष वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को जो भी भक्त उनकी पूजा-व्रत करेगा, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी. इसके बाद से ही वैशाख शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मासिक दुर्गाष्टमी का त्योहार मनाया जाने लगा.