भारत में मुगलों के आगमन के बाद यही धारणा लोगों के मन में है कि मुगल बादशाहों ने हिंदुस्तान के मंदिरों को तुड़वाकर मस्जिदें बनवाई. इसके ठीक विपरीत कुछ मुगल बादशाहों एवं बेगमों ने न केवल मंदिरों का निर्माण करवाया बल्कि पूरी श्रद्धा से उसका संचालन भी किया. ऐसा ही एक मंदिर है लखनऊ के अलीगंज क्षेत्र में. स्थानियों का कहना है कि अवध के चौथे नवाब मोहम्मद अली शाह की बेगम ने इस हनुमान मंदिर का निर्माण करवाया था. इस अतिप्राचीन हनुमान मंदिर के निर्माण की बड़ी रोचक कहानी है.
लखनऊ के लगभग केंद्र में अलीगंज स्थित यह हनुमान मंदिर सौ साल से भी ज्यादा पुराना है. एक बड़े से बाग के परिसर में स्थित हनुमान जी की एक विशाल प्रतिमा है. मंदिर के निकट ही एक जलाशय भी है, जिसका सही मेंटेनेंस न होने के कारण जीर्ण-शीर्ण हालत में है.
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बेगम ने सपने में देखा जमीन के भीतर दबी हनुमान प्रतिमा
हनुमान जी के इस मंदिर के बारे में यहां के लोगों का कहना है कि मुगलकाल में मोहम्मद अली शाह की बेगम राबिया ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था. बताया जाता है कि एक रात नवाब की बेगम ने स्वप्न देखा कि उनके महल के करीब जमीन के नीचे एक हनुमान जी की प्रतिमा दबी हुई है. किसी अदृश्य शक्ति ने उन्हें कहा कि हनुमान जी की इस प्रतिमा को एक मंदिर में स्थापित करवायें. इससे उनकी सारी समस्याओं का समाधान हो जायेगा. मगर बेगम ने इसे महज सपने की तरह लिया और बात आई गयी हो गयी. कुछ दिनों के बाद बेगम को एक पुत्र पैदा हुआ, तो पुनः उन्हें वही सपना दिखायी दिया. उन्होंने सपने की बात अपने पति नवाब शाह को बताई. नवाब ने बेगम के बताए स्थान पर खुदाई करवायी, तो वाकई वहां हनुमान जी की प्रतिमा दिखलाई पड़ी. सपने पर विश्वास नहीं करने वाले नवाब और उनकी बेगम इस सच को देखकर हैरान रह गये. नवाब ने तत्काल बड़े इमामबाड़े के पास एक भव्य मंदिर बनवाकर वहां खुदाई में प्राप्त हनुमान जी की प्रतिमा को ससम्मान स्थापित करवाने का आदेश दिया. नवाब के आदेश पर हनुमान जी की उस प्रतिमा को एक हाथी पर लादकर बडे इमामबाड़े की ओर प्रस्थान किया गया. कहते हैं कि चलते-चलते हाथी अलीगंज के पास एक जगह आराम करने के लिए बैठ गया. कुछ पल आराम करने के बाद जब हाथी को उठाया गया तो वह टस से मस नहीं हो सका. हाथी को वहां से उठाने की महावत ने बहुत कोशिश की मगर कोई फायदा नहीं हुआ. इस पर अलीगंज के एक संत ने नवाब को सुझाव दिया कि अगर हाथी आगे नहीं जा रहा है तो इसका यही संकेत हो सकता है कि हनुमान जी का मंदि.र यहीं अलीगंज में बनवाया जाए.
अंततः नवाब के आदेश पर अलीगंज में उसी स्थान पर एक दिव्य मंदिर बनवाया गया. हनुमान जी का वह मंदिर आज भी है. पास स्थित तालाब के बारे में कहा जाता है कि हनुमान जी का दर्शन करने से पूर्व भक्त इसी तालाब में स्नान करते थे. लेकिन रखरखाव के अभाव में यह तालाब खंडहर सरीखा बन गया और भक्तों की भी संख्या भी लगातार गिरती गयी. लेकिन जब से यहां बड़ा मंगल का आयोजन शुरु हुआ, मंदिर में भारी संख्या में भक्तों का आना शुरू हो गया. इस दिन आने वाले सभी भक्तों के लिए यहां भोजन और प्रसाद की व्यवस्था रहती है. इस मंदिर में बड़ा मंदिर को लेकर भी एक रोचक कथा है.
हनुमान मंदिर और बड़ा मंगल को लेकर रोचक किस्सा
कहा जाता है कि एक बार नवाब का बेटा गंभीर रूप से बीमार पड़ा. चिकित्सकों की तमाम कोशिशों के बावजूद उसकी हालत बदतर होती जा रही थी. तब मंदिर के पुजारी ने बेगम को सलाह दिया कि तुम अपने बेटे को हनुमान जी की प्रतिमा के पास लिटाकर वापस चली जाओ. बाद में आकर बच्चे को लेती जाना. तब तक बच्चा पूरी तरह स्वस्थ हो जायेगा. थोडी देर बाद जब वह मंदिर में वापस आयी तो बच्चे को हंसते-खेलते देख उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा. नवाब और बेगम ने पुजारी को दक्षिणा देनी चाही तो पुजारी ने कहा कि तुम दक्षिणा देने के बजाय यहां एक मेले का आयोजन करवा दो. इससे दूर-दूर से यहां भक्त आयेंगे. इससे इस मंदिर के बारे में सबको पता भी चल जायेगा. तब पुजारी के कहने पर नवाब और बेगम ने बड़ा मंगल के दिन मंदिर में विशाल मेले का आयोजन करवाया. कहा जाता है कि इसके बाद से प्रत्येक बड़ा मंगल के दिन केवल इसी मंदिर में नहीं बल्कि दूसरे हनुमान मंदिर पर भी बड़ा मंगल का आयोजन किया जाने लगा. यह मेला पूरे चार मंगल तक चलता है. जगह-जगह लोगों को मुफ्त भोजन और शर्बत वितरित किया जाता है.
इस मंदिर में कई रातें गुजारी थी सुनील दत्त ने
मंदिर के आसपास के लोग बताते हैं कि अभिनेता सुनील दत्त यहां काफी समय तक रहे. बंटवारे के बाद पाकिस्तान से वह सर्वप्रथम यहीं आये थे. यहां उन्होंने कई रातें गुजारीं थीं. एक रात किसी ने सुनील दत्त को स्वप्न में आदेश दिया कि अगर कुछ विशेष हासिल करना चाहते हो तो तुम्हें लखनऊ से मुंबई जाना होगा. सुनील दत्त तुरंत लखनऊ से मुंबई की ओर रवाना हो गये. लेकिन मृत्यु से पूर्व वे जब भी लखनऊ आते तो इस मंदिर में वह जरूर आते थे.