Kumbh Mela 2019: कल्पवास करने से होती है मोक्ष की प्राप्ति, तपस्वियों जैसा कठिन जीवन जीते हैं कल्पवासी
प्रयागराज में कल्पवास करना अति महत्वपूर्ण माना गया है. पौष मास की एकादशी से माघ माह के द्वाद्सी तक त्रिवेणी तट पर शंकराचार्यों और संतों के अलावा गृहस्थ भी कल्पवासी बनकर छोटे-छोटे टेंटों में रहते हैं. इन गृहस्थों को ही कल्पवासी कहा जाता है. कुछ कल्पवासी माघ के पूर्णिमा तक यहां कल्पवास करते हैं.
Kumbh Mela 2019: प्रयागराज (Prayagraj) में गंगा-यमुना-सरस्वती की त्रिवेणी (Triveni Sangam) में प्रत्येक 12 वर्ष बाद कुंभ और छह वर्ष में अर्धकुंभ लगता है. कई हजार स्क्वायर फीट क्षेत्र में दूर-दूर तक फैले रेत पर माघ माह में माघ मेला (Magh Mela) का आयोजन होता है. दूर-दराज से आये संत समाज एवं कल्पवासी (Kalpwasi) यहां टेंट बनाकर रहते हैं. प्रातःकाल सूर्य की पहली किरण निकलने के साथ ही वे त्रिवेणी अथवा गंगा जी में स्नान करते हैं. माघ एवं विश्व के सबसे बड़े मेला कुंभ (Kumbh Mela) के महात्म्य का उल्लेख मत्स्य पुराण में भी मिलता है.
'माघमासे गमिष्यन्ति गंगायमुनसंगमे। ब्रह्माविष्णु महादेवरूद्रादित्यमरूद्गणा:।।' अर्थात् ब्रह्मा, विष्णु, महादेव, रुद्र और आदित्य जैसे तमाम देवता माघ मास में गंगा यमुना और सरस्वती की त्रिवेणी स्थल पर उपस्थित होते हैं.
क्या होता है कल्पवास ?
कल्पवास का आशय त्रिवेणी के तट पूरे माह रहते हुए साधु-संतों के सानिध्य में वेद-पुराणों, भागवद् आदि का अध्ययन एवं दान-ध्यान आदि करना होता है. प्रयागराज में कल्पवास करना अति महत्वपूर्ण माना गया है. पौष मास की एकादशी से माघ माह के द्वाद्सी तक त्रिवेणी तट पर शंकराचार्यों और संतों के अलावा गृहस्थ भी कल्पवासी बनकर छोटे-छोटे टेंटों में रहते हैं. इन गृहस्थों को ही कल्पवासी कहा जाता है. कुछ कल्पवासी माघ के पूर्णिमा तक यहां कल्पवास करते हैं. यह भी पढ़ें: Kumbh Mela 2019: कुंभ मेले में स्नान के बाद जरूर करें लेटे हुए हनुमान जी के दर्शन, जिनकी स्वयं मां गंगा करती हैं चरण वंदना
कैसे हुई शुरुआत कल्पवास की ?
प्रयागराज के कुंभ मेला की दिव्यता और भव्यता देखने देश-विदेश से लोग त्रिवेणी तट पर पहुंच रहे हैं. किसी समय यहां घनघोर जंगल हुआ करता था. प्राचीनकाल में इस पूरे क्षेत्र में भारद्वाज मुनि का आश्रम हुआ करता था. जहां तपस्वी एवं ऋषि-मुनि यज्ञ-तप आदि करते हैं. यह स्थल आज भी मौजूद है। कहा जाता है कि एक बार भगवान ब्रह्मा यहां पधारे और एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया. इससे पूर्व इस तपोभूमि पर पूरे मास साधु-संत ही कल्पवास करते थे. ब्रह्मा द्वारा महायज्ञ करने के बाद गृहस्थ जीवन जी रहे लोग भी यहां कल्पवास करने लगे. माघ अथवा कुंभ में कल्पवास कर रहे गृहस्थों को साधु समाज द्वारा आवश्यक शिक्षा-दीक्षा दी जाती है.
तपस्वियों जैसा कठिन जीवन जीते हैं कल्पवासी
प्रयागराज में चूंकि माघ अथवा कुंभ जनवरी-फरवरी की सर्दी में ही पड़ता है, इसलिए खुले आसमान में रेत पर टेंट लगाकर रहना आसान नहीं. मगर मोक्ष और पुण्य-लाभ के लोभ में सभी गृहस्थ पूरी श्रद्धा के साथ कल्पवासी बनकर संन्यासियों जैसा जीवन व्यतीत करते हैं. जिस टेंट में वे रहते हैं, उसका निर्माण वे स्वयं अथवा उस क्षेत्र के अखाड़ा वाले करते हैं। जिसका भुगतान कल्पवासी अखाड़ा वालों को करते हैं.
कल्पवासी कड़कड़ाती ठंड में दो बार स्नान करते हैं, और एक ही समय भोजन करते हैं. अपने कल्पवास के दौरान पूरे समय कल्पवासियों को मानसिक और शारीरिक रूप से धैर्य, शांति एवं भक्तिभाव में रहना होता है. पद्म पुराण में भी उल्लेखित है कि त्रिवेणी तट पर वास करने वाले सादा, सदाचारी और शांत जीवन जीते है. यह भी पढ़ें: Kumbh Mela 2019: कुंभ मेले में जाएं तो ललिता देवी शक्तिपीठ के दर्शन करना न भूलें, जहां गिरी थीं माता सती के हाथों की 3 उंगलियां
प्रातःकाल स्नान करने के बाद कल्पवासी संतों के प्रवचनों, कीर्तन भजनों और अन्य आध्यात्मिक कार्यों में भाग लेते हैं. साथ ही गरीबों को अन्न-वस्त्र आदि भी दान करते हैं. संत-महात्मा कहते हैं कि जो व्यक्ति नियमबद्ध होकर कल्पवास करता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति जरूर होती है. प्रयागराज के संदर्भ पद्म पुराण में उल्लेखित है...
प्रयागे माघमासे तुत्र्यहं स्नानस्य यद्रवेत्।
दशाश्वमेघसहस्त्रेण तत्फलं लभते भुवि।।
अर्थात प्रयागराज में माघ अथवा कुंभ में दिन में दो बार स्नान कर दस हजार अश्वमेघ यज्ञ जितना लाभ प्राप्त होता है.