प्रयागराज (Prayagraj) में अर्ध कुंभ (Ardh Kumbh) की शुरुआत हो चुकी है. स्नान के लिए लाखों की संख्या में साधु संत आए हैं. यहां साधु संतों की अलग- अलग वेश भूषा लोगों के आकर्षण का केंद्र बनी हुई है. कुंभ में अब नागा साधुओं के अलावा जंगम जोगी साधु लोगों के आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार जंगम जोगी साधुओं की उत्पत्ति शिव-पार्वती के विवाह में हुई थी. जब भगवान शिव ने ब्रम्हा और विष्णु को विवाह करने की दक्षिणा देनी चाही तो उन्होंने उसे स्वीकार करने से मना कर दिया. तब भगवान शिव ने अपनी जांघ पीटकर जंगम साधुओं को उत्पन्न किया. उन्होंने ही महादेव से दान लेकर विवाह में गीत गाए और दक्षिणा ली.
भगवान शिव के विवाह में जंगम जोगी साधुओं ने ही सारी रस्में की थी. जिससे खुश होकर भगवान शिव ने उन्हें मुकुट और नाग प्रदान किया था. माता पार्वती ने कर्णफूल, नदी ने घंटी और विष्णु ने मोर मुकुट दिया था. इन सारी वस्तुओं से मिलकर जंगम साधुओं का स्वरुप बना. तभी से ये अखाड़ों में जाकर साधुओं के बीच शिव का गुणगान करते हैं.
जंगम संप्रदाय में करीब पांच हजार साधु संत हैं. वे देश भर में घूमते हैं और भगवान शिव का गुणगान करते हैं. सुबह उठकर जंगम साधुओं की टोली सुबह से ही दशनामी अखाड़ों के संतों के शिविर में जाकर भगवान शिव के गीत गाते हैं. इसके बदले में वे दान स्वरूप जो भी देते हैं, उसे खुशी-खुशी स्वीकार कर लेते हैं. अखाड़ों के दान से इनका परिवार पलता है. भगवान शिव ने कहा था कि कभी माया को हाथ में नहीं लेना, इसलिए ये दान भी हाथ में नहीं लेते. ये सफेद रंग के वस्त्र धारण करते हैं.
जंगम साधुओं के परिवार में बचपन से ही बच्चों को शिव कथा, शिवपुराण, शिव स्त्रोत सिखाया जाता है. जंगम साधुओं का परिवार ही इस परंपरा को आगे बढ़ा सकते हैं और कोई नहीं.