Kumbh Mela 2019: कुंभ मेले में जाएं तो ललिता देवी शक्तिपीठ के दर्शन करना न भूलें, जहां गिरी थीं माता सती के हाथों की 3 उंगलियां

प्रयागराज में चल रहे कुंभ महोत्सव में श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र 51 शक्तिपीठों में एक माता ललिता देवी शक्तिपीठ भी बन रहा है. ललिता देवी शक्तिपीठ अन्य शक्तिपीठों में इसलिए भी खास माना जाता है, क्योंकि यह दुनिया का इकलौता शक्तिपीठ है, जो 10 महाविद्याओं में अंतिम व परम सिद्धि के वाहक श्रीयंत्र पर व्यवस्थित है.

कुंभ मेला 2019 और ललिता देवी शक्तिपीठ (Photo Credits: PTI)

Kumbh Mela 2019: प्रयागराज (Prayagraj Kumbh Mela) में चल रहे कुंभ महोत्सव में श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र 51 शक्तिपीठों में एक माता ललिता देवी शक्तिपीठ (Lalita Devi Shaktipeeth) भी बन रहा है. मीरापुर मोहल्ले के यमुना तट पर स्थित देश का यह अति प्राचीन शक्तिपीठ मंदिर है. कुंभ में आए अब तक लाखों श्रद्धालु इस शक्तिपीठ का दर्शन लाभ ले चुके हैं. ललिता देवी शक्तिपीठ अन्य शक्तिपीठों में इसलिए भी खास माना जाता है, क्योंकि यह दुनिया का इकलौता शक्तिपीठ है, जो 10 महाविद्याओं (10 Maha Vidyas) में अंतिम व परम सिद्धि के वाहक श्रीयंत्र (Shri Yantra) पर व्यवस्थित है. इसके अलावा ऐसा भी कहा जाता है कि प्रयागराज में गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती मां ललिता देवी के चरण स्पर्श करते हुए प्रवाहित होती हैं. यही वजह है कि संगम स्नान के पश्चात् इस पावन शक्तिपीठ के दर्शन का विशेष महात्मय है.

दुर्गा सप्तशती, तंत्र साहित्य एवं चूड़ामणि के अनुसार भगवान विष्णु (Lord Vishnu) के सुदर्शन चक्र (Sudarshan Chakra) से खंडित हुए सती के विभिन्न अंग, आभूषण एवं वस्त्र जहां-जहां गिरे, वही स्थान कालांतर में शक्तिपीठ कहलाए. भारत के अलावा पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका में ये शक्तिपीठ स्थापित हैं.

शिव का अपमान नहीं सह सकीं सती, दे दी आहुति

शिव पुराण (Shiv Puran)में उल्लेखित है कि एक बार महाराजा दक्ष प्रजापति ने कनखल (आज का हरिद्वार) में 'बृहस्पति सर्व' नामक यज्ञ करवाया. इस यज्ञ में उन्होंने भगवान शिव (Lord Shiva) एवं सती (Mata Sati) को छोड़कर ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र समेत सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया. पति शिव को आमंत्रण नहीं मिलने की पीड़ा के कारण सती पिता को उचित सलाह देने के लिए उनके पास जाना चाहती थीं, मगर शिव नहीं चाहते थे कि पिता के घर जाकर वह और अपमानित हों, लेकिन शिव जी को समझाकर सती पिता के यज्ञ स्थल पर पहुंचीं, मगर राजा दक्ष ने उन्हें स्पष्ट जवाब देते हुए कहा, शिव अमंगलकारी हैं, मैं देवयज्ञ करवा रहा हूं प्रेत यज्ञ नहीं. पिता द्वारा पति का तिरस्कार सती सहन नहीं कर सकीं. उऩ्होंने यज्ञ कुण्ड में कूदकर अपनी आहुति दे दी. यह भी पढ़ें:  कुंभ मेला 2019: नागा बाबाओं का रहस्यमय जीवन, जानें कहां से आते हैं और कहां हो जाते हैं गुम ?

अपने गणों के द्वारा जब शिव जी को यह समाचार प्राप्त हुआ तो वह कुपित हो उठे. उनकी क्रोधाग्नि से उत्पन्न भद्रकाली और वीरभद्र ने संपूर्ण यज्ञ स्थल को नष्ट कर दिया, लेकिन देवताओं के अनुनय विनय पर शिव जी ने यज्ञ तो सम्पन्न करवा दिया, किंतु सती के प्रति उत्पन्न मोह को वह नहीं रोक सके. वह सती के शरीर को लेकर प्रलयकारी तांडव करने लगे। शिव की इस स्थित से सर्वत्र त्राहि-त्राहि मचने लगी, तब विष्णु का आदेश पाकर सुदर्शन चक्र ने सती के देह के खण्ड-खण्ड कर दिया। सती के देह के 51 अंग जहां जहां गिरे, वे सभी स्थान शक्तिपीठ कहलाए.

प्रयागराज में गिरी थीं हाथों की तीन उंगलियां

51 शक्तिपीठों में एक है प्रयागराज स्थित ललिता देवी शक्तिपीठ। विभिन्न पौराणिक कथाओं के अनुसार इस स्थल पर सती के दाहिने हाथ की तीन उंगलियां गिरी थी. इस वजह से देवी यहां राज राजेश्वरी त्रिपुर सुन्दरी रूप में विराजमान हुईं. इसीलिए प्रयागराज तीर्थराज के साथ-साथ इस शक्तिपीठ के कारण भी श्रद्धालुओं में विशेष रूप से लोकप्रिय है. ललिता देवी धाम में देवी के दर्शन व पूजा-अर्चना के लिए नवरात्र के साथ ही आम दिनों में भी श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है.

श्रीयंत्र पर व्यवस्थित दुनिया की इकलौती शक्तिपीठ

समूची दुनिया में यह इकलौती शक्ति पीठ है जो दस महाविद्याओं में अंतिम व परम सिद्धि के वाहक श्री यंत्र पर व्यवस्थित है. मंदिर की मुख्य इमारत श्रीयंत्र के स्वरूप में उपस्थित हैं. यहां की दीवारों पर भी जगह-जगह श्रीयंत्र नज़र आते हैं. ललिता धाम में विराजमान देवी के चरणों में 108 श्रीयंत्र अर्पित हैं. इसे शक्ति का प्रतीक भी माना जाता है. मान्यता है कि इसकी अभिमंत्रित साधना भक्तों की दरिद्रता दूर कर ऐश्वर्य, संतान, ज्ञान व शक्ति भी प्रदान करती हैं. माँ ललिता देवी के साथ ही इन श्रीयंत्रों की भी पूजा की जाती है. इसलिए भी श्रद्धालुओं में इस मंदिर के प्रति विशेष श्रद्धा जागृत होती है. यहां आने वाले श्रद्धालु एवं साधक श्रीयंत्रों पर सिंदूर, धूप, शुद्ध घी के दीप, चुनरी एवं पुष्प आदि चढ़ाकर देवी मां से सुख, शांति और समृद्धि की कामना करते हैं. यह भी पढ़ें: कुंभ 2019: इस वजह से 12 वर्षों बाद लगता है कुंभ मेला, पवित्र स्नान से धुल जाते है सारे पाप

वैष्णोदेवी के बाद यहां पूजी जाती हैं महाकाली, महालक्ष्मी व महासरस्वती

ललिता देवी शक्तिपीठ के महंत शिव मूरत मिश्र बतलाते हैं कि जम्मू स्थित वैष्णो देवी धाम के बाद यह दूसरी ऐसी शक्तिपीठ है, जहां एक देवी तीन रूपों महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती रूप में पूजी जाती हैं. दिव्य लालित्य और अनुपम सौन्दर्य के कारण इस पीठ का नाम ललिता देवी पड़ा. मत्स्यपुराण में 108 शक्तिपीठों में भी यहां की देवी का नाम ललिता ही उल्लेखित है. मुख्य मंदिर की दाईं दिशा में संकट मोचन हनुमान, राम, लक्ष्मण सीता जी तथा बाईं ओर नवग्रह की दिव्य मूर्तियां स्थापित हैं. अंदर की ओर राधा-कृष्ण की भव्य मूर्तियां भी भक्तों की श्रद्धा का केंद्र हैं.

तीन मंदिरों का शक्तिपीठ

प्रयागराज में तीन मंदिरों कल्याणी देवी, ललिता देवी और अलोपी देवी को शक्तिपीठ के रूप में पूजा जाता है. मान्यता है कि तीनों ही मंदिर प्रयाग शक्तिपीठ की शक्ति ललिता के हैं, लेकिन मीरा पुर स्थित मंदिर मुख्य सती मंदिर है. यहाँ की शक्ति ललिता तथा भैरव भव हैं.

गौरतलब है कि यहां आने वाले प्रत्येक श्रद्धालुओं को विश्वास होता है कि माँ ललिता देवी उनकी हर मनोकामनाओं को पूरी करती हैं. यहां आने वाला कोई भी भक्त मां के दर से खाली हाथ नहीं जाता.

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