Kumbh Mela 2019: कुंभ मेले में स्नान के बाद जरूर करें लेटे हुए हनुमान जी के दर्शन, जिनकी स्वयं मां गंगा करती हैं चरण वंदना
त्रिवेणी स्थित लेटे हुए हनुमान जी का अति मंदिर. मंदिर के गर्भ में शयनावस्था में हनुमान जी की दिव्य प्रतिमा का बखान विभिन्न पुराणों में भी किया गया है. दुनिया की इकलौती इस प्रतिमा की एक खासियत यह है कि प्रत्येक वर्ष गंगा जी हनुमान जी को स्नान कराने स्वयं मंदिर तक आती हैं.
Kumbh Mela 2019: अपने आध्यात्मिक, राजनैतिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासतों के लिए विख्यात प्रयागराज (Prayagraj) का एक आकर्षण है त्रिवेणी (Triveni) स्थित लेटे हुए हनुमान जी का अति मंदिर (Lete Huye Hanuman Ji Temple). मंदिर के गर्भ में शयनावस्था में हनुमान जी (Hanuman ji) की दिव्य प्रतिमा का बखान विभिन्न पुराणों में भी किया गया है. दुनिया की इकलौती इस प्रतिमा की एक खासियत यह है कि प्रत्येक वर्ष गंगा जी हनुमान जी को स्नान कराने स्वयं मंदिर तक आती हैं. शहर का एकमात्र प्राचीनतम मंदिर होने के कारण कुंभ मेला (Kumbh Mela) आये स्नानार्थियों के लिए यह मंदिर इन दिनों आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. इस कुंभ में अब तक करोड़ों श्रद्धालु हनुमान जी का दर्शन लाभ प्राप्त कर चुके हैं.
तीर्थराज प्रयागराज की त्रिवेणी तट पर इन लेटे हुए हनुमान जी के मंदिर के काल और निर्माण को लेकर कई किंवदंतियां प्रचलित हैं. कुछ लोगों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण हिंदू समाज को खुश करने के लिए स्वयं अकबर ने करवाया था, लेकिन चूंकि इस मंदिर का उल्लेख पुराणों में भी है, इसलिए इसे अकबर से जोड़ने का कोई औचित्य ही नहीं रह जाता. मंदिर के पुजारी मिश्रा जी भी कहते हैं कि यह मंदिर अकबर के शहंशाह बनने से कई सौ साल पहले निर्माण किया जा चुका था.
लंका जीतने के बाद यहां किया था हनुमान जी ने विश्राम
मंदिर के इतिहास के संदर्भ में बात चलने पर पुजारी मिश्र जी बताते हैं कि इस मंदिर या मूर्ति के निर्माणकाल और निर्माणक के बारे में कोई प्रामाणिक दस्तावेज उपलब्ध नहीं है. ऐसी भी मान्यता है कि लंका में रावण का वध करने के बाद विभीषण का राजतिलक कर प्रभु राम जब पत्नी सीता और भ्राता लक्ष्मण और हनुमान जी के साथ प्रयाग होते हुए अयोध्या लौट रहे थे, तब हनुमान जी ने सीता जी से विनय निवेदन करते हुए आग्रह किया था कि, माता अगर आपकी अनुमति हो तो कुछ पल मैं प्रयाग में रुककर आराम कर लूं. तब सीता जी ने हनुमान जी को अनुमति दे दी. यह भी पढ़ें: Kumbh Mela 2019: कुंभ मेले में जाएं तो ललिता देवी शक्तिपीठ के दर्शन करना न भूलें, जहां गिरी थीं माता सती के हाथों की 3 उंगलियां
इसके पश्चात हनुमान शांत चित्त होकर यहीं लेट गये थे. स्नानार्थियों एवं विदेशी पर्यटकों का मानना है कि कुछ पल यहां रुकने से चित्त को शांति प्राप्त होती है, और सारी थकान खत्म हो जाती है.
विष्णु की माया ने हनुमान जी को किया निद्रा में लीन
एक अन्य कथा के अनुसार त्रेतायुग में हनुमान जी सूर्यदेव से शिक्षा-दीक्षा लेकर वापस लौट रहे थे, तब हनुमान जी ने सूर्यदेव से विनय निवेदन किया कि गुरुदेव, आप गुरु दक्षिणा ले लें. सूर्यदेव ने कहा कि उचित अवसर पर मैं गुरु दक्षिणा मांग लूंगा, लेकिन हनुमानजी के बारंबार प्रार्थना करने पर सूर्यदेव ने कहा, ठीक है निकट भविष्य में भगवान विष्णु अयोध्या में मेरे वंश में अवतार लेंगे.
इसके पश्चात पिता दशरथ के आदेश पर प्रभु राम, सीता और लक्ष्मण वनवास गमन करेंगे. तब तुम्हें जंगलों में राक्षसों से उनकी रक्षा करनी होगी. हनुमान की शक्ति को जानते हुए भगवान विष्णु ने सोचा कि अगर हनुमान ही सारे राक्षसों का संहार कर देंगे, तो मेरे अवतार लेने का उद्देश्य समाप्त हो जायेगा, तब उन्होंने माया को आदेश दिया कि वह हनुमान को घोर निद्रा में डाल दे.
उस समय हनुमान जी गंगा तट की ओर प्रस्थान कर रहे थे। सूर्यास्त का वक्त हो रहा था. चूंकि भारतीय संस्कृति में रात्रिकाल में नदी को लांघना वर्जित माना जाता है, यह सोचते हुए हनुमान जी ने गंगा तट पर ही रात गुजारने की सोची। बताया जाता है कि इसी समय माया ने उन्हें लंबी निद्रा में सुला दिया, जो आज इस मंदिर में नजर आता है. यह भी पढ़ें: कुंभ मेला 2019: नागा बाबाओं का रहस्यमय जीवन, जानें कहां से आते हैं और कहां हो जाते हैं गुम ?
गंगा करती हैं हनुमान जी की चरण वंदना
गौरतलब है कि प्रत्येक वर्ष गंगा अपने को विस्तार कर हनुमान जी की चरण वंदना करती हैं प्रयागवासियों का कहना है कि जब-जब गंगा जी ने हनुमान जी की चरण वंदना की, शहर और देश तमाम विपत्तियों से मुक्त रहा है. गंगा जी के वापस जाने के पश्चात पुरोहित द्वारा पूरे रीति-रिवाज से हनुमान जी का पूजन-अर्चन किया जाता है. आरती एवं भोग के पश्चात ही श्रद्धालुओं के लिए हनुमान जी के मंदिर के कपाट खोले जाते हैं. मान्यता है कि गंगा जी में स्नान के पश्चात बिना हनुमान जी के दर्शन किये श्रद्धालुओं की मोक्ष का कामना पूरी नहीं होती.