घर में मंदिर या देवालय कहां रखें, ताकि सुख, शांति और समृद्धि की जीवन में न हो कभी कमी

अपने अथवा किराए के घर में प्रवेश करने से पूर्व घर में मंदिर कहां रखा जाए, इसकी जानकारी अपने पुरोहितों से जरूर प्राप्त कर लें. अधिकांश पुरोहितों और वास्तुशास्त्रियों का मानना है कि मंदिर की स्थापना में छोटी-मोटी गलती हो जाए तो पूजा का अभीष्ठ फल प्राप्त नहीं हो पाता.

मंदिर (Photo Credits: Wikimedia commons)

सनातन धर्म में मान्यता है कि घर में देवालय (Temple) के होने से सकारात्मक ऊर्जा (Positive Energy) बनी रहती है. आज हम बेशक 21वीं सदी में जी रहे हों, लेकिन अपने धर्म, संस्कृति और संस्कारों को हम नहीं भूले हैं. यही चीजें हमारा मार्गदर्शन करती हैं, हमें सात्विकता की ओर ले जाती हैं. इसलिए अपने अथवा किराए के घर में प्रवेश करने से पूर्व घर (House) में मंदिर कहां रखा जाए, इसकी जानकारी अपने पुरोहितों से जरूर प्राप्त कर लें. अधिकांश पुरोहितों और वास्तुशास्त्रियों का मानना है कि मंदिर की स्थापना में छोटी-मोटी गलती हो जाए तो पूजा का अभीष्ठ फल प्राप्त नहीं हो पाता. तो आइये जानें मंदिर की स्थापना के लिए वास्तु में क्या नियम और व्यवस्था है.

हिंदुओं के लगभग हर घर में देवी-देवताओं की पूजा जरूर होती है, लेकिन नए घरों के निर्माण के वक्त अक्सर लोग पूजा-घर की परिकल्पना बाद में करते हैं. पूजा-घर अथवा मंदिर की स्थिति अगर वास्तु के नियमों के अंतर्गत ही हो तो बेहतर होता है. वास्तु के अनुरूप मंदिर की दिशा, उसकी जगह, मंदिर किस धातु या लकड़ी से बना है, यह सब देखना बहुत जरूरी होता है.

वास्तु के अनुसार, इसके भी कुछ नियम एवं कायदे हैं. वास्तु को ध्यान में रखकर अगर मंदिर या पूजा-घर स्थापित किया जाए तो सुख, शांति, समृद्धि और मनचाहे धन एवं संसाधनों की प्राप्ति होती है. घर का वातावरण सुख एवं संतोषप्रद होता है. इसलिए घर का निर्माण करवाते समय नक्शे में पूजा-घर को भी वास्तु के अनुरूप जगह देने की कोशिश करें. यह भी पढ़ें: माता सीता ने क्रोधित होकर दिया था ब्राह्मण, गाय, नदी और अग्नि को श्राप, आज भी देखने को मिलता है इसका प्रमाण

ईशान कोण यानी उत्तर-पूर्व दिशा में पूजाघर अथवा मंदिर का होना सर्वोत्तम होता है. प्रख्यात ज्योतिषाचार्य श्री रवींद्र पाण्डेय के अनुसार, घर का मुख किसी भी दिशा में हो, लेकिन पूजा का स्थान ईशान कोण में ही बेहतर होता है. उत्तर-पूर्व दिशा के महत्व के संदर्भ में श्री रवींद्र पाण्डेय का कहना है कि जब वास्तु को धरती पर लाया गया था, तब उनका शीर्ष उत्तर-पूर्व दिशा की ओर था. इसलिए इसे भगवान के मंदिर के लिए सर्वश्रेष्ठ दिशा माना जाता है. इसी दिशा में हमें सूर्य देवता की पहली किरण देखने को मिलती है, जो आध्यात्मिक महत्व के साथ-साथ सेहत के लिए भी लाभकारी होता है और घर में सकारात्मक वातावरण तैयार करता है. मंदिर के भीतर पूर्व या पश्चिम दिशा में देवी-देवता की फोटो अथवा मूर्तियां रखनी चाहिए. हनुमानजी अथवा शनि भगवान का मुख ही दक्षिण की तरफ होना चाहिए.

इसके अलावा देवी-देवताओं की तस्वीरें या प्रतिमाएं आमने-सामने नहीं रखनी चाहिए. पूजाघर अथवा मंदिर का मुखद्वार पश्चिम दिशा में न होकर उत्तर या पूर्व दिशा में रखें तो लाभकारी साबित हो सकता है. घर के भीतर यदि मंदिर स्थापित कर रहे हैं तो इसमें छत पर गुंबद या कलश नहीं होनी चाहिए. मंदिर स्थापित करते समय इस बात का भी जरूर ध्यान रखें कि मंदिर के ठीक सामने शौचालय या स्टोर नहीं होनी चाहिए.

पूजा घर के रंगों का भी खास महत्व होता है. किसी गहरे रंग के बजाय पीले रंग का मंदिर सात्विकता का एहसास कराता है. इसके अलावा बेडरूम में मंदिर हरगिज नहीं रखना चाहिए. यदि स्थानाभाव या किसी अन्य कारण से बेडरूम में मंदिर रखवा ही रहे हैं तो उस पर रात के वक्त परदा जरूर लगाएं, क्योंकि रात के वक्त भगवान विश्राम करते हैं. यह भी पढ़ें: Chaitra Navratri 2019: 6 अप्रैल से शुरू हो रही है चैत्र नवरात्रि, जानें किस दिन करनी चाहिए किस शक्ति की पूजा

पूजा करते समय भी कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए. अगर आप पढ़ाई करनेवाले छात्र हैं तो अपना मुख उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए और घर के लोगों को पूर्व दिशा की ओर मुंह करके पूजा करना श्रेयस्कर होता है. क्योंकि उत्तर दिशा को ज्ञान अर्जन और पूर्व दिशा को धन अर्जन के लिए बेहतर दिशा माना जाता है.

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