Diwali 2019: दिवाली की शुरुआत कब और कैसे हुई! जानें क्या है रोचक कथा!
महापर्व का आगाज हो चुका है. धनतेरस और छोटी दिवाली के बाद मुख्य दिवाली मनाने की शुरुआत हो चुकी है. दिवाली पर माता लक्ष्मी की ही पूजा क्यों होती है और इसकी शुरुआत कब और कैसे हुई? ऐसी ही एक प्रचलित कथा का जिक्र हम यहां कर रहे हैं. पौराणिक ग्रंथों के अनुसार समुद्र मंथन के बाद धन एवं समृद्धि की देवी माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु वैकुण्ठधाम चले गये.
महापर्व का आगाज हो चुका है. धनतेरस और छोटी दिवाली के बाद मुख्य दिवाली (Diwali) मनाने की शुरुआत हो चुकी है. लेकिन दिवाली पर माता लक्ष्मी की ही पूजा क्यों होती है और इसकी शुरुआत कब और कैसे हुई? इस संदर्भ में बहुत सी किंवदंतियां एवं कथाएं प्रचलित हैं. हर कथाओं को लेकर लोगों का अपना मत अपना विश्वास है. ऐसी ही एक प्रचलित कथा का जिक्र हम यहां कर रहे हैं. पौराणिक ग्रंथों के अनुसार समुद्र मंथन के बाद धन एवं समृद्धि की देवी माता लक्ष्मी (Lakshmi) और भगवान विष्णु (Lord Vishnu) वैकुण्ठधाम चले गये.
कुछ समय विश्राम करने के बाद भगवान विष्णु ने पृथ्वीवासियों के हालात जानने के उद्देश्य से पृथ्वी पर भ्रमण करने की योजना बनाई. उन्होंने माता लक्ष्मी को यह बात बताई तो उन्होंने भी साथ चलने का आग्रह किया. लक्ष्मी जी के आग्रह को मानकर दोनों पृथ्वी की ओर चल पड़े. पृथ्वी पर भ्रमण करते-करते भगवान विष्णु ने लक्ष्मी जी को एक स्थान पर रुकने को कहकर स्वयं दक्षिण दिशा में जाने की इच्छा दर्शाई. विष्णु जी ने लक्ष्मी जी को जहां छोड़ा था वह एक हरा-भरा गांव था. जहां चारों ओर सरसों की फसलें उन पर खिले पीले फूल और गन्ने प्रकृति को एक सौंदर्य का दर्शन करवा रहे थे.
लक्ष्मी जी को वहां से कहीं और नहीं जाने की बात कहकर विष्णु जी दक्षिण दिशा की ओर प्रस्थान कर गये. हरे भरे सरसों और गन्ने के खेतों ने लक्ष्मी जी का मनमोह लिया. भगवान विष्णु के दक्षिण दिशा की ओर प्रस्थान करने के पश्चात माता लक्ष्मी को चारों तरफ सरसों की लहलहाती फसलें और उन पर पीले रंग के फूलों का चादर सदृश्य और सरसराते गन्नों के खेत बहुत पसंद आए. वह खुद को रोक नहीं सकीं और सरसों के खेत में प्रवेश कर गईं.
उन्होंने सरसों के पीले फूल तोड़कर अपना साज-श्रृंगार किया. इसके बाद वह गन्ने के खेत में जाकर गन्ना चखा. उन्होंने गन्ने के रस का जी भरकर आनंद लिया. कुछ समय बाद भगवान विष्णु वापस आये तो लक्ष्मी जी को गन्ने के खेत में देख नाराज होकर भगवान विष्णु जी ने कहा, कि आपने किसान की फसल चोरी करके खाई है, आपको इसका दण्ड मिलेगा. दण्ड स्वरूप आप कुछ समय तक इस किसान की खेत पर ही रहेंगी. दण्ड की अवधि पूरी होने पर मैं आपको लेने आ जाऊंगा. यह कहकर भगवान विष्णु अकेले वैकुण्ठ लोक गये.
उधर लक्ष्मी जी की चंचल और मनोहर व्यवहार को देख उस खेत का किसान और उसका परिवार मंत्र-मुग्ध हो गया. थोड़े ही समय में माता लक्ष्मी ने सबका दिल जीत लिया था. दण्ड की अवधि पूरी होने पर भगवान विष्णु लक्ष्मी जी को साथ ले जाने के लिए पृथ्वी पर आए और लक्ष्मी जी को वैकुण्ठ चलने के लिए कहा. लक्ष्मी जी को विष्णु जी के साथ जाते देख किसान और उसका पूरा परिवार परेशान होकर विलाप करने लगा. किसान की स्थिति देख लक्ष्मी जी भी दुःखी हो गईं. उन्होंने किसान को समझाते हुए कहा परेशान मत हो.
मैं यहां तुम्हारे घर एक कलश में विद्यमान रहूंगी, लेकिन तुम्हें इस कलश की नियमित पूजा करनी होगी. देवी ने किसान की भक्ति पर खुश होकर उसे वरदान दिया कि वह प्रतिवर्ष इसी दिन यानी कार्तिक मास की अमावस्या के दिन सशरीर यहां पधारेंगी. देवी लक्ष्मी से समृद्धि और सुखी रहने का आशीर्वाद पाकर किसान मान गया.
इसके बाद माता लक्ष्मी विष्णु जी के साथ वैकुण्ठधाम की ओर प्रस्थान कर गयीं. अगले वर्ष कार्तिक अमावस्या के दिन किसान ने देवी के आगमन पर घर को खूब सजाया, हर दीप जलाकर पृथ्वी को रौशन कर दिया. कहा जाता है कि इसी के बाद से दिवाली मनाने की परंपरा की शुरुआत हुई. इसके बाद से प्रतिवर्ष कार्तिक मास की अमावस्या के दिन शुभ मुहूर्त पर लोग अपने घरों में माता लक्ष्मी जी के थ गणेश जी का आह्वान करते हैं, उनके स्वागत में दीप जलाते हैं उनकी पूजा अर्चना कर दीपोत्सवी की खुशियां सेलीब्रेट हैं.