Pongal 2022: कब है पोंगल? जानें इस चार दिवसीय पर्व में कब, किसकी और क्यों पूजा की जाती है?

प्रकृति और मानव के अटूट संबंधों की एक कड़ी है पोंगल. यह पर्व संपूर्ण भारत में विभिन्न नामों एवं रीति-रिवाज के साथ मनाया जाता है. पोंगल का संबंध कृषि की पृष्ठभूमि से जुड़ा है. दरअसल यह वह समय होता है, जब खेत में गन्ना एवं धान की फसल पककर तैयार होती है.

पोंगल 2022 रंगोली डिजाइन्स (Photo Credits: Daily Rangoli Designs, Easy & Simple Rangoli YouTube)

प्रकृति और मानव के अटूट संबंधों की एक कड़ी है पोंगल. यह पर्व संपूर्ण भारत में विभिन्न नामों एवं रीति-रिवाज के साथ मनाया जाता है. पोंगल का संबंध कृषि की पृष्ठभूमि से जुड़ा है. दरअसल यह वह समय होता है, जब खेत में गन्ना एवं धान की फसल पककर तैयार होती है. चूंकि एक अच्छी फसल के तैयार होने में प्रकृति की अहम भूमिका होती है, इसलिए इस दिन कृषक समुदाय प्रसन्न होकर प्रकृति के प्रति आभार प्रकट करते हैं. सूर्य के उत्तरायण होने पर चार दिन तक मनाये जाने वाले पोंगल (मकर संक्रांति) पर्व को चार विभिन्न नामों यानी पहले दिन भोगी पोंगल, दूसरे दिन सूर्य पोंगल, तीसरे दिन मट्टू पोंगल और चौथे दिन कात्या पोंगल (कन्नूम पोंगल) से मनाया जाता है. इन चारों दिन सूर्य देव, इंद्र देव, गाय-बैल आदि की पूजा होती है. 14 जनवरी से शुरु होनेवाले इन चारों पोंगल के बारे में आइये जानें विस्तार से,

भोगी पोंगल

पोंगल के पहले दिन भोगी पोंगल मनाया जाता है. यह दिन वर्षा के देवता भगवान इंद्र को समर्पित होता है. भोगी पोंगल के दिन किसान इंद्र देव की पूजा-अर्चना कर अच्छी बारिश एवं समृद्धिदायक फसल की कामना करते हैं. इस दिन चंदन का खास लेप बनाकर इससे सूर्य एवं पृथ्वी की विधिवत तरीके से पूजा की जाती है. इस दिन घर की सफाई कर पुरानी वस्तुओं को गाय के गोबर से बने उपले में जलाकर इनकी जगह नई वस्तुओं को लाया जाता है. इसे बुराई और घर की नकारात्मक शक्तियों को दूर करने के तौर पर देखा जाता है.

सूर्य पोंगल

सूर्य पोंगल को थाई पोंगल के नाम से भी पुकारा जाता है. इस दिन को थाई नववर्ष या तमिल नये वर्ष की शुरुआत मानी जाती है. इस वर्ष यह पर्व 15 जनवरी को मनाया जायेगा. मान्यतानुसार यह दिन भगवान सूर्यदेव को समर्पित होता है, इसलिए इस दिन सूर्यदेव की पूजा कर उनसे कामना की जाती है कि नई फसल के लिए आवश्यक ऊर्जा प्रदान करने की प्रार्थना की जाती है. इस दिन नई फसल के चावल की खीर बना कर सूर्यदेव को भोग लगाया जाता है. मान्यता है कि इस दिन से ठंड की तीव्रता कम होने लगती है. यह भी पढ़ें : World Hindi Day 2022: प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन की वर्षगांठ मनाने के लिए नेटिज़न्स ने ट्विटर विशेज और कोट्स शेयर कर ‘हिंदी दिवस’ की दी बधाई

मट्टू पोंगल:

पोंगल के तीसरे दिन को मट्टू पोंगल कहते हैं. यहां बैल को मट्टू कहते हैं. इस दिन शिवजी के वाहन नंदी के प्रतीक बैल की पूजा होती है. किसी भी किसान के लिए बैल पशु धन समान होता है. इस दिन किसान अपने-अपने बैलों की पूजा करते हैं, तथा चावल की उत्तम फसल की कामना करते हैं. इस पर्व को लेकर मान्यता है कि एक बार भगवान शिव ने नंदी बैल से कहा कि वह पृथ्वी पर जाकर मनुष्यों को संदेश दें कि वे महीने में केवल एक बार खाना खाएं लेकिन तेल से रोज मालिश करें और स्नान करें. नंदी ने पृथ्वीवासियों से जाकर कहा कि रोज खाना खाओ और महीने में एक दिन मालिश करो. शिव नंदी पर क्रोधित हो गए कि तुमने मनुष्यों को उल्टा संदेश दिया है. इसलिए अब तुम्हें पृथ्वी पर ही रहकर लोगों के खेत जोतने होंगे ताकि वे अधिक अनाज उपजा सकें.

कात्या पोंगल (कन्नूम पोंगल)

कन्नुम तमिलनाडु में चार दिनों तक चलनेवाले पोंगल का आखिरी कन्नुम पोंगल मनाया जाता है. इस दिन पूरा परिवार साथ एकत्र होकर स्वादिष्ट भोजन का लुत्फ़ उठाता है. कन्नुम को तमिल में यात्रा कहते हैं. इसलिए इस दिन लोग अपने करीबियों और रिश्तेदारों के घर जाकर एक दूसरे को शुभकामनाएं देते हैं. इसलिए इस दिन का काफी महत्व होता है. इस दिन तमिलनाडु के कुछ गांवों में किसान 7 कुंवारी देवी की पूजा-अर्चना करते हैं. इन्हें सप्त कनिमार भी कहते हैं.

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