International Plastic Bag Free Day 2019: प्लास्टिक बैग मुक्त दिवस’ पर लें संकल्प, और कहें इसे 'बाय बाय'!
पिछले करीब 5 से 6 दशकों में प्लास्टिक निर्मित वस्तुओं की बढ़ती उपयोगिता ने इंसान को प्लास्टिक का मोहताज बना दिया है. महंगे कपड़ों से लेकर रेस्टोरेंट में चाय की बिक्री तक में भिन्न-भिन्न किस्मों की प्लास्टिक के उपयोग ने अपनी जड़ें जमा ली हैं. इसका नुकसान मासूम पशु-पक्षियों से लेकर पर्यावरण तक को हो रहा है. इस संदर्भ में जागरुक देशों ने जो सर्वे किया है, उसका सीधा आशय यही निकलता है कि हम पृथ्वी और प्रकृति के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं, जिसका खामियाजा हमारी ही आगामी पीढ़ियों को भुगतना होगा.
International Plastic Bag Free Day 2019: पिछले करीब 5 से 6 दशकों में प्लास्टिक निर्मित वस्तुओं की बढ़ती उपयोगिता ने इंसान को प्लास्टिक का मोहताज बना दिया है. महंगे कपड़ों से लेकर रेस्टोरेंट में चाय की बिक्री तक में भिन्न-भिन्न किस्मों की प्लास्टिक के उपयोग ने अपनी जड़ें जमा ली हैं. इसका नुकसान मासूम पशु-पक्षियों से लेकर पर्यावरण तक को हो रहा है. इस संदर्भ में जागरुक देशों ने जो सर्वे किया है, उसका सीधा आशय यही निकलता है कि हम पृथ्वी और प्रकृति के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं, जिसका खामियाजा हमारी ही आगामी पीढ़ियों को भुगतना होगा. मुंबई, दिल्ली, हरियाणा राजस्थान, दक्षिण भारत के कुछ महानगरों पर प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाए जाने के बावजूद चोरी-छिपे प्लास्टिक का प्रयोग धड़ल्ले से हो रहा है. प्लास्टिक बैग के उपयोग को जड़ से खत्म करने के लिए 3 जुलाई 2009 से संपूर्ण विश्व में ‘अंतर्राष्ट्रीय प्लास्टिक बैग मुक्त दिवस’ शुरू किया गया.
अगर कहा जाए कि ‘पर्यावरण से लेकर हमारे निजी जिंदगी तक को प्लास्टिक ने बंधक बना लिया है.’ तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगा. प्लास्टिक का पर्यावरण पर बुरा प्रभाव तेजी से भयंकर रूप अख्तियार कर रहा है. ऐसा नहीं कि हम या हमारी संतानें यह सब नहीं जानती हैं, बावजूद इसके थोड़ी-सी सुविधा के लिए हम अपनी आनेवाली पीढ़ी की जिंदगियों में जहर घोल रहे हैं. तमाम सरकारी गैरसरकारी प्रतिबंधों के बावजूद प्लास्टिक कंपनिया प्लास्टिक निर्मित वस्तुओं का धड़ल्ले से उत्पादन कर रही हैं. इस संदर्भ में भारत के तमाम प्रदेशों के उच्च न्यायालयों ने राज्य सरकारों एवं प्रशासनिक अधिकारियों को फटकार लगाई लेकिन प्लास्टिक पूर्ण प्रतिबंध लगाने में हम अभी तक सफल नहीं हुए हैं. देश की सड़कों और गलियों में प्लास्टिक के अवशेषों का अंबार आसानी से देखा जा सकता है.
समुद्र भी अछूता नहीं रहा
एक शोध के अनुसार विश्व स्तर पर, करीब 80 लाख टन प्लास्टिक प्रतिदिन देश के महासागरों तक पहुंचते हैं. आप इसे 'प्लास्टिक प्रदूषण' का नाम भी दे सकते हैं. ये खतरनाक प्लास्टिक सबसे गहरे महासागर की गहराई में डूबते-उतराते देखा जा सकता है. जिसका बुरा असर जलचरों पर पड़ रहा है. कहा जा रहा है कि अगर समुद्र यूं ही प्लास्टिक की वस्तुएं अपनी आगोश में लेता रहा तो 2025 तक मछलियों से कई गुना ज्यादा प्लास्टिक हम यहां से पाएंगे, जिसकी खामियाजा का अंदाजा लगाना भी मुश्किल होगा. नियंत्रण पाना तो दूर की बात है.
कब और क्यों जरूरत पड़ी इस दिवस विशेष की
प्लास्टिक संबंधी वस्तुओं पर हर तरह से प्रतिबंध लगाए जाने के बावजूद जब पाया गया कि इसका कोई सकारात्मक परिणाम नहीं निकल रहा है. तब इस ज्वलंत मुद्दे के प्रति जागरुकता बढ़ाने के लिए 3 जून 2009 से अंतर्राष्ट्रीय प्लास्टिक बैग मुक्त दिवस मनाने का संकल्प लिया गया. इस दिवस विशेष को मनाने का एकमात्र उद्देश्य ‘प्लास्टिक बैग मुक्त दिवस’ के लाभ और नुकसान को जन-जन तक पहुंचाना है. और लोगों से गुजारिश की जा रही है कि इस मिशन में हिस्सा लेकर इसे सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं. लोगों को बताया जाए कि यह ना मुश्किल है ना ही नामुमकिन. बस एक संकल्प की जरूरत है.
परिणाम सकारात्मक हैं मगर
इस दिवस विशेष का एक उद्देश्य यह भी है कि अंतरराष्ट्रीय कंपनियों पर उनके द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली प्लास्टिक को कम से कम उपयोग करने के लिए दबाव डाला जाए. मिशन में शामिल कर्मठ कार्यकर्ताओं को उम्मीद है कि यह प्लास्टिक मुक्त दिवस दुनिया भर के लाखों लोगों के जीवन को आंदोलित करेगा. इस मिशन को कामयाब बनाने के लिए कुछ सामाजिक संगठनों ने पुरस्कार अभियान भी शुरु किया है. संतोष की बात यह है कि लोग इस प्रतियोगिता में बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं.
क्यों बढ़ी है प्लास्टिक की उपयोगिता
प्लास्टिक निर्मित वस्तुओं का प्रसार इस कदर हुआ कि यह दुनिया के हर कोने में दिखेगा, दुर्भाग्य यह है कि इस समूल नष्ट करना लगभग असंभव ही है. क्योंकि आज के दौर में प्लास्टिक निर्मित बर्तनों में हम खाते-पीते हैं,प्लास्टिक की कुर्सियों टेबल पर हम बैठते हैं, प्लास्टिक से बनी कारों में सफर कर रहे हैं, ये वस्तुएं दीर्घकालीन चलें, इसके लिए इन्हें ‘ड्यूरेबल’ बनाया जा रहा है. इसे विविध स्वरूपों, रंगों, मनपसंद आकारों में तैयार किया जाता है, इसमें सीलन नहीं आती और तरल वस्तुएं लीक नहीं होतीं. यह लचीला है, हल्का और बहुत ज्यादा महंगा भी नहीं है. लेकिन इसकी यही खूबियां पृथ्वी और पर्यावरण के लिए खामियां भी साबित हो रही हैं. एक ऐसा खतरा जिसका हल अथवा जवाब इसका ईजाद करने वाले वैज्ञानिकों और पर्यावरण विदों के पास भी नहीं है. इस पर्यावरण दिवस पर हम इसे अगर खत्म नहीं तो कम तो कर ही सकते हैं, जीवन में प्लास्टिक के विकल्प को तो स्वीकार सकते हैं. यह दायित्व हम सभी का है.