Papankusha Ekadashi Vrat 2021: पापांकुशा व्रत रखने से मिलती है, सारे पापों से मुक्ति! जानें व्रत का महात्म्य, पूजा विधि एवं व्रत कथा!
सनातन धर्म के अनुसार अश्विन मास के शुक्लपक्ष की पापांकुशा एकादशी मानवहित से जुड़ी बताई गयी है. मान्यता है कि पापांकुश एकादशी का व्रत एवं श्रीहरि की पूजा करने से जीवन के सारे पाप नष्ट होते हैं और जीवन में मान-समान एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है. माता लक्ष्मी की विशेष कृपा से धनागम के नये स्त्रोत्र खुलते हैं.
सनातन धर्म के अनुसार अश्विन मास के शुक्लपक्ष की पापांकुशा एकादशी मानवहित से जुड़ी बताई गयी है. मान्यता है कि पापांकुश एकादशी का व्रत एवं श्रीहरि की पूजा करने से जीवन के सारे पाप नष्ट होते हैं और जीवन में मान-समान एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है. माता लक्ष्मी की विशेष कृपा से धनागम के नये स्त्रोत्र खुलते हैं. इस एकादशी को पापांकुशा एकादशी के नाम से जाना जाता है. इस वर्ष यानी 2021 में यह एकादशी आज 16 अक्टूबर, शनिवार के दिन मनाई जायेगी.
पापांकुशा एकादशी का महात्म्य
पापांकुशा के संदर्भ में ‘ब्रह्मा वैवर्त पुराण’ में उल्लेखित है कि यह व्रत करने से जातक द्वारा किये गये जाने-अनजाने सभी पापों से मुक्ति मिलती है. एक बार भगवान श्रीकृष्ण ने भी पापंकुशा एकादशी व्रत के महात्म्य के संदर्भ में धर्मराज युधिष्ठिर के पूछने पर बताया था कि इस व्रत को करने से हजारों साल के जप-तप से भी जो पुण्य नहीं मिलता, वह पापांकुशा व्रत रखने से मिल जाता है. जीवन में अच्छा स्वास्थ्य, सुख एवं सम्पदा की प्राप्ति होती है. श्रीकृष्ण के अनुसार इस व्रत में दान-पुण्य का भी समान महत्व होता है. व्रती अगर जरूरतमंदों को अनाज, वस्त्र, छाता, जूते-चप्पल एवं पशु-दान करता है तो उसे इस व्रत का संपूर्ण फल प्राप्त होता है.
पूजा की विधि
साल के प्रत्येक एकादशी का व्रत दशमी की शाम से शुरु हो जाता है. इस दिन शाकाहारी खाना ही खाना चाहिए और सूर्यास्त के पश्चात कुछ भी नहीं खाना चाहिए. यह एक कठिन व्रत माना जाता है. इस व्रत का पारण द्वाद्वशी के दिन सुबह शुभ मुहूर्त के अनुरूप करना चाहिए. इस दिन कुछ लोग मौन उपवास भी रखते हैं. सुबह सूर्योदय से पूर्व स्नान-ध्यान करने के पश्चात नये वस्त्र पहनकर भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत एवं पूजन का संकल्प लेना चाहिए. घर के मंदिर में भगवान विष्णुजी की फोटो अथवा प्रतिमा पर गंगाजल छिड़कने के पश्चात सामने एक कलश स्थापना करना चाहिए. अब श्रीहरि के सामने धूप-दीप प्रज्जवलित करने के पश्चात श्रीहरि का ध्यान करते हुए उनका आह्वान करना चाहिए. आह्वान के समय इस मंत्र का उच्चारण करनी चाहिए. यह भी पढ़ें : Papankusha Ekadashi 2021 Wishes: पापांकुशा एकादशी पर श्रीहरि के इन HD Images, WhatsApp Stickers, Facebook Messages, Wallpapers के जरिए दें शुभकामनाएं
‘ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि।
ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि।’
मंत्रोचारण के पश्चात श्रीहरि के पुष्प, तुलसी दल, हल्दी, इत्र, पीला चंदन, सुपारी, पान एवं प्रसाद में मौसमी फल और दूध की मिठाई अर्पित करें. अब श्रीहरि की आरती उतारें. इसके बाद चढ़े हुए प्रसाद लोगों में बांट दें. एकादशी का व्रत रखने वालों को रात में जागरण कर भगवान श्रीहरि का कीर्तन भजन करना चाहिए. श्रीहरि की पौराणिक कथा सुनना अथवा सुनाना चाहिए.
पापांकुश एकादशी व्रत कथा
प्राचीनकाल में एक बहुत ही क्रूर शिकारी क्रोधना विंध्य पर्वत पर रहता था. उसने अपनी पूरी जिंदगी निरीह पशुओं को सताने एवं तमाम तरह के दुष्ट कर्म किये थे. जीवन के अंतिम मोड़ पर जब यमराज ने क्रोधना की को लाने के लिए अपने दूतों को आदेश दिया. क्रोधना को जब इस बात का पता चला तो वह मौत के भय से त्राहि-त्राहि करता हुए अंगारा नामक ऋषि के पास पहुंचा और अपनी सारी व्यथा बताई. ऋषि ने उसे पापंकुश एकादशी का महात्म्य बताते हुए कहा कि आश्विन माह की शुक्लपक्ष के दिन भगवान विष्णु के नाम का व्रत रखते हुए नियम-विधान से पूजा करे. क्रोधना ने पूरी निष्ठा के साथ व्रत रखते हुए भगवान श्रीहरि की पूजा किया. श्रीहरि उसकी पूजा से प्रसन्न होकर उसके सारे पाप नष्ट कर देते हैं और पूरी जिंदगी जीने के बाद उसे मोक्ष प्रदान करते हैं.