Kartik Purnima 2025: कार्तिक पूर्णिमा की रात, जब धरती पर आकर देवताओं ने किया था दीपदान
कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को देव दीपावली मनाई जाती है. मान्यता है कि इस दिन देवता खुद धरती पर आकर गंगा स्नान करके दीपकों को जलाकर देव दीपावली मनाते हैं. एक पौराणिक कथा के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा पर भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध किया था.
नई दिल्ली, 5 नवंबर : कार्तिक माह (Kartik Month) के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को देव दीपावली मनाई जाती है. मान्यता है कि इस दिन देवता खुद धरती पर आकर गंगा स्नान करके दीपकों को जलाकर देव दीपावली मनाते हैं. एक पौराणिक कथा के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा पर भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध किया था. इस कारण से कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) पर देवताओं ने खुश होकर दीपावली मनाई थी. तभी से कार्तिक पूर्णिमा को 'देव दीपावली' कहा जाने लगा क्योंकि सभी देवता पृथ्वी पर दीपावली मनाने आए थे.
देव दीपावली मनाने के पीछे एक कहानी प्रचलित है, जिसमें महाभारत के कर्णपर्व में एक कथा प्रचलित है. इस कथा के अनुसार, त्रिपुरासुर दैत्यराज तारकासुर के तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली तीन पुत्र थे. तीनों ने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए कठिन तपस्या की और ब्रह्माजी से अमरता का वरदान मांगते हुए कहा कि हमारी मृत्यु तभी हो सकती है, जब तीनों पुरियां (नगर) अभिजित नक्षत्र में एक सीध में आएं और कोई एक ही बाण से हमें मार दे. वरदान के बाद तीनों ने मिलकर स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल लोक में आतंक मचाना शुरू कर दिया था. वे जहां जाते, वहां पर आतंक मचाना शुरू कर देते थे. यह भी पढ़ें : Kartik Purnima ko Kya Daan Karna Chahiye: कार्तिक पूर्णिमा के इन चीजों का दान करने से बरसेगी भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की कृपा
उनके अत्याचार से परेशान होकर ऋषि-मुनि और देवताओं ने भगवान शिव से प्रार्थना की. इसके बाद भगवान शिव ने वध करने का फैसला लिया. वध करने के लिए भोलेनाथ ने एक खास दिव्य रथ बनवाया, जिसमें उन्होंने पृथ्वी को रथ का आधार बनाया, सूर्य और चंद्रमा को पहिए, मेरु पर्वत को धनुष और वासुकी नाग को धनुष की डोर. भगवान विष्णु स्वयं बाण बने. शिव उस रथ पर सवार हुए. कार्तिक पूर्णिमा के दिन अभिजित नक्षत्र में तीनों पुरियां एक पंक्ति में आईं. शिव ने एक ही बाण से तीनों को भेद दिया और त्रिपुरासुर को भस्म कर दिया. इस विजय से शिव 'त्रिपुरारी' कहलाए. वध के बाद खुश होकर देवताओं ने काशी में दीप दान कर उत्सव मनाया. मान्यता है कि इसके बाद से ही कार्तिक पूर्णिमा को 'देव दीपावली' कहा जाने लगा. कार्तिक पूर्णिमा के दिन वाराणसी में देव दीपावली धूमधाम से मनाई जाती है.