हिंदी धर्मानुसार मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा का विशेष महत्व है. गंगा-स्नान, विष्णुजी की पूजा एवं दान-धर्म के लिए यह सर्वश्रेष्ठ महीना माना जाता है. श्रीमद्भागवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं उल्लेख किया है, -‘मैं ही मार्गशीर्ष का पवित्र माह हूं.’ इस माह की पूर्णिमा को मार्गशीर्ष पूर्णिमा कहते हैं. पुराणों में इस दिन गगा-स्नान एवं दान-धर्म आदि धार्मिक क्रम-काण्डों का विशेष महत्व वर्णित है. इस दिन हरिद्वार, प्रयागराज, वाराणसी और मथुरा में श्रद्धालु पवित्र गंगा अथवा यमुना तट पर स्नान-दान करते हैं. इस दिन व्रत एवं पूजन करने से सुख, चैन एवं समृद्धि की प्राप्ति होती है, तथा मृत्युलोक के सुख भोगकर जातक को मोक्ष मिलता है.
मार्गशीर्ष पूर्णिमा की पूजा-विधि
पूर्णिमा के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान-ध्यान करें. संभव हो तो गंगा अथवा किसी पवित्र नदी में स्नान करें. अगर यह संभव नहीं है तो स्नान के जल में गंगाजल मिलाकर स्नान करने से भी गंगा-स्नान के समान पुण्य फलों की प्राप्ति होती है. स्नान के पश्चात पीले रंग का वस्त्र पहनें. भगवान विष्णु और माँ लक्ष्मी की प्रतिमा पर गंगा जल का छिड़काव कर धूप-दीप प्रज्ज्वलित कर निम्न मंत्र का जाप करते हुए श्रीहरि का आह्वान करें. श्रीहरि और माँ लक्ष्मी को पीले फूल अर्पित कर चावल और रोली का तिलक लगाएं. इसके पश्चात दही का पंचामृत एवं आटे की पंजीरी का भोग लगाएं. पूर्णिमा के दिन माँ लक्ष्मी को खीर का भोग भी लगाया जाता है. बहुत से लोग इस दिन सत्य नारायण भगवान की कथा सुनते या सुनाते हैं. पूजा के बाद सभी को प्रसाद वितरित करें और स्वयं भी ग्रहण करें. मान्यता है कि इस दिन व्रत एवं पूजा करने वाले को सुख, चैन एवं समृद्धि प्राप्त होती है. यह भी पढ़ें : Gita Jayanti 2021 Quotes: गीता जयंती पर शेयर करें श्रीमद्भगवत गीता के ये 10 अनमोल उपदेश, जिनमें छुपा है जीवन का सार
‘ऊँ नमोः नारायण, ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय’
मार्गशीर्ष पूर्णिमा का महात्म्य
पुराणों के अनुसार मार्गशीर्ष मास शुक्लपक्ष की पूर्णिमा के दिन किसी पवित्र नदी, सरोवर या कुण्ड में स्नान करने से श्रीहरि की विशेष कृपा प्राप्त होती है. इस दिन किये जाने वाले दान का शुभ फल अन्य पूर्णिमा की तुलना में 32 गुना ज्यादा प्राप्त होता है. इसीलिए बहुत सी जगह पर इसे बत्तीसी पूर्णिमा भी कहा जाता है. बहुत से लोग इस दिन भगवान श्री सत्यनारायण की कथा भी सुनते हैं. कथा के पश्चात गरीबों को भोजन एवं वस्त्रें का दान देने से श्रीहरि एवं माँ लक्ष्मी बहुत प्रसन्न होते हैं. पौराणिक ग्रंथों एवं वेदों के अनुसार मार्गशीर्ष मास से ही सतयुग काल आरंभ हुआ था. इस दिन चंद्र-दर्शन का भी विशेष महात्म्य बताया जाता है.
मार्गशीर्ष पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त
पूर्णिमा प्रारंभः 07. 24 AM (18 दिसंबर, शनिवार 2021) से
पूर्णिमा समाप्त 10.05 AM (19 दिसंबर, रविवार 2021) तक
विशेषः ऐसी स्थिति में मार्गशीर्ष पूर्णिमा 18 दिसंबर 2021 को मनाई जाएगी.