Mahalaya 2024: कब और क्यों मनाया जाता है महालया पर्व? जानें इस पर्व का पितृ पक्ष एवं नवरात्रि के बीच क्या संबंध है!
महालया’ पर्व पितरों की अंतिम विदाई के साथ ही देवी दुर्गा स्वरूपा मां भगवती के पृथ्वी पर आगमन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है. मान्यता है कि इस दिन आदि शक्ति माँ दुर्गा भगवान शिव के निवास कैलाश पर्वत से अपने मायके पृथ्वी लोक पर अवतरित हुई थीं.
‘महालया’ पर्व पितरों की अंतिम विदाई के साथ ही देवी दुर्गा स्वरूपा मां भगवती के पृथ्वी पर आगमन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है. मान्यता है कि इस दिन आदि शक्ति माँ दुर्गा भगवान शिव के निवास कैलाश पर्वत से अपने मायके पृथ्वी लोक पर अवतरित हुई थीं. महालया के दिन परिवार के मृत परिजनों को श्रद्धा सुमन देने का अंतिम दिन होता है. इस दिन परिवार के मुखिया अपने दिवंगत पितरों को तिल एवं जल का तर्पण इत्यादि देते हैं. इस वर्ष महालया का पर्व 2 अक्टूबर 2024, दिन बुधवार को मनाया जाएगा. आइये जानते है महालया के बारे में कुछ रोचक जानकारियां
महालया की महिमा!
महालया, जिसे महालया अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है, यह दिन पितृ पक्ष के अंत और देवी पक्ष की शुरुआत का प्रतीक है. वस्तुतः महालया शब्द संस्कृत के दो शब्दों ‘महा’ और ‘आलय’ से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है, ‘महान निवास’ या ‘देवी का घर’ इत्यादि. इन नौ दिनों तक देवी दुर्गा पृथ्वीलोक को अपना आवास बनाती हैं. महालया के दिन पितरों की संतुष्टि के निमित्त ब्राह्मणों को भोजन कराने का विधान है. ऐसा करने से व्यक्ति को पितृ दोष से मुक्ति मिलती है.
वहीं पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन माँ दुर्गा पृथ्वी पर अवतरित होती हैं, और दशमी तक यहीं पर प्रवास करती हैं. इस दौरान माँ दुर्गा के सभी नौ रूपों की क्रमशः पूजा होती है, कुछ लोग नौ दिन उपवास रखते हैं, जबकि कुछ लोग प्रतिपदा और अष्टमी के दिन उपवास रखते हैं. विजयादशमी के दिन ‘सिंदूर खेला’ के बाद उनकी विदाई होती है. यह दिन उनके आगमन के शगुन के रूप में देखा जाता है.
महालय का रोचक इतिहास
देवी पुराण के अनुसार एक बार महाबलशाली राक्षस महिषासुर ने ब्रह्मा जी से ऐसी शक्ति प्राप्त कर ली थी, जिसके अनुसार पृथ्वी का कोई भी देवी, देव, किन्नर उसका संहार नहीं कर सकता. इससे निर्भय होकर महिषासुर ने पृथ्वी पर अत्याचार करने लगा. इसके बाद उसने स्वर्ग लोक पर आक्रमण करके उस पर अधिकार कर लिया. तब उसके संहार हेतु ब्रह्मा, विष्णु और महेश (शिव) ने अपनी शक्ति पुंज से आदि शक्ति देवी दुर्गा की रचना की. सभी देवी-देवताओं ने उन्हें अपना दिव्य अस्त्र-शस्त्र प्रदान किया. देवी दुर्गा ने लंबे संघर्ष के बाद आश्विन शुक्ल पक्ष की दसवें दिन महिषासुर का संहार करने में सफल रहीं. इसलिए माँ दुर्गा को शक्ति की देवी माना जाता है.