नई दिल्ली, 19 सितंबर (आईएएनएस). लैंसेट की एक स्टडी में वायु प्रदूषण को लेकर चौंकाने वाला खुलासा हुआ है. अध्ययन में पाया गया है कि धूम्रपान के समान ही वायु प्रदूषण ब्रेन स्ट्रोक के लिए सबसे बड़ा खतरा है. लैंसेट के एक अध्ययन में पाया गया कि हवा में मौजूद छोटे ठोस और तरल कण ब्रेन स्ट्रोक के लिए हानिकारक हैं, जिसका जोखिम धूम्रपान के बराबर है. भारत, अमेरिका, न्यूजीलैंड, ब्राजील और यूएई के शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम के नेतृत्व में किए गए अध्ययन से पता चला कि वायु प्रदूषण ने धूम्रपान के समान इस गंभीर स्ट्रोक के कारण होने वाली मृत्यु और विकलांगता की दर में 14 प्रतिशत का योगदान दिया है.
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स्टडी में पाया गया है कि वायु प्रदूषण, उच्च तापमान के साथ-साथ मेटाबॉलिक डिसऑर्डर के कारण पिछले तीन दशकों में स्ट्रोक के वैश्विक मामलों और मौतों में वृद्धि दर्ज की गई है. साल 2021 में दुनिया भर में नए स्ट्रोक से पीड़ित लोगों की संख्या बढ़कर एक करोड़ से अधिक हो गई है, जिसमें साल 1990 के बाद से 70 प्रतिशत की वृद्धि है. इसके अलावा 1990 के बाद से स्ट्रोक से मरने वालों की संख्या 70 लाख से अधिक दर्ज की गई है, जिसमें 44 प्रतिशत का इजाफा है.
अध्ययन में पाया गया है कि साल 2021 में स्ट्रोक के लिए जिम्मेदार 23 जोखिम फैक्टरों की पहचान की गई है. इसमें स्ट्रोक के लिए पांच प्रमुख वैश्विक जोखिम कारण सामने आए हैं, इसमें हाई सिस्टोलिक ब्लड प्रेशर, पार्टिकुलेट मैटर वायु प्रदूषण, धूम्रपान, हाई एलडीएल कोलेस्ट्रॉल और घरेलू वायु प्रदूषण शामिल हैं.
वॉशिंगटन विश्वविद्यालय के स्वास्थ्य मीट्रिक्स और मूल्यांकन संस्थान (आईएचएमई) में मुख्य शोध वैज्ञानिक तथा सह-लेखक डॉ. कैथरीन ओ. जॉनसन ने कहा, "स्ट्रोक के मुख्य कारणों की 84 प्रतिशत वजह 23 परिवर्तनीय जोखिम हैं, इसलिए नई पीढ़ी के लिए स्ट्रोक के जोखिम को कम करने के कई अवसर हैं. वायु प्रदूषण तापमान और जलवायु परिवर्तन से पारस्परिक रूप से जुड़ा हुआ है. वायु प्रदूषण को कम करने के लिए तत्काल जलवायु कार्रवाई और उपायों के महत्व को कम करके नहीं आंका जा सकता है."
उन्होंने कहा, "स्ट्रोक अब दुनिया भर में हृदय रोग और कोविड-19 के बाद मृत्यु का तीसरा प्रमुख कारण है, इसलिए मोटापे और मेटाबॉलिक डिसऑर्डर पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है."
उन्होंने स्वच्छ वायु क्षेत्र और सार्वजनिक धूम्रपान प्रतिबंध जैसे उपायों का भी आह्वान किया है. अध्ययन में यह भी पाया गया कि दुनिया भर में स्ट्रोक के कारण विकलांगता, बीमारी और समय से पहले मृत्यु के केसों में 1990 और 2021 के बीच 32 प्रतिशत का इजाफा हुआ है.