Janmashtami 2024 Aarti: बाल गोपाल के आगमन पर भजन-सोहर से करें स्वागत! विधान पूर्वक पूजा के बाद उतारें आरती, तभी होगी मनोकामनाएं पूरी!

देश ही नहीं दुनिया भर में कृष्ण जन्मोत्सव की तैयारियां शुरू हो गई हैं. कम लोगों को ही पता होगा कि साल में जन्माष्टमी के अलावा भगवान श्रीकृष्ण की विशेष पूजा अर्चना नहीं होती.

कृष्ण जन्माष्टमी 2024 (Photo Credits: File Image)

देश ही नहीं दुनिया भर में कृष्ण जन्मोत्सव की तैयारियां शुरू हो गई हैं. कम लोगों को ही पता होगा कि साल में जन्माष्टमी के अलावा भगवान श्रीकृष्ण की विशेष पूजा अर्चना नहीं होती. इसके पीछे भागवद् गीता में एक विशेष वजह बताया गया है, कि जिस तरह कोई भी पूजा-अनुष्ठान आदि करने से पूर्व प्रथम पूज्य के रूप में भगवान गणेश की पूजा अनिवार्य है, उसी तरह साल में किसी भी दिन किसी भी देवी-देवता की पूजा करने से भगवान श्रीकृष्ण की पूजा स्वयमेव हो जाती है. अतः जन्माष्टमी के अवसर पर हमें भगवान श्रीकृष्ण की पूरे विधि-विधान से पूजा-अर्चना करनी चाहिए. यहां बता दें कि अभीष्ठ देवी-देवता की पूजा उनकी आरती के बिना पूरी नहीं होती, यानी आरती के बिना भक्त को कोई पुण्य फल प्राप्त नहीं होता. यही बात जन्माष्टमी पर भी लागू होता है. जन्माष्टमी पर पूरे दिन व्रत रखने के बाद मध्य रात्रि से पूर्व तक भगवान श्री कृष्ण के आगमन की खुशी में भजन-सोहर आदि गाने की प्रथा है. भगवान श्रीकृष्ण का जन्म होने उन्हें गंगाजल, पंचामृत एवं सुगंधित जल आदि से स्नान कराकर पीतांबर पहनाया जाता है. इसके बाद उन्हें पालने पर झुलाकर जन्म दिन मनाया जाता है. उन्हें छप्पन भोग चढ़ाए जाते हैं. अंत में बाल गोपाल की आरती उतारने की परंपरा का निर्वाह होता है. ऐसा करने से भगवान कृष्ण जरूर प्रसन्न होते हैं और आपकी सभी मनोकामनाओं की पूर्ति करेंगे....

श्री कृष्ण भगवान की आरती

आरती कुंजबिहारी की,

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

आरती कुंजबिहारी की,

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला।

श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला।

गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली। लतन में ठाढ़े बनमाली

भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चंद्र सी झलक,

ललित छवि श्यामा प्यारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

आरती कुंजबिहारी की...॥

कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं । गगन सों सुमन रासि बरसै ।

बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग, ग्वालिन संग,

अतुल रति गोप कुमारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥

आरती कुंजबिहारी की...॥

जहां ते प्रकट भई गंगा, सकल मन हारिणि श्री गंगा। स्मरन ते होत मोह भंगा

बसी शिव सीस, जटा के बीच, हरै अघ कीच,

चरन छवि श्री बनवारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

आरती कुंजबिहारी की...॥

चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू. चहुँ दिसि गोपी ग्वाल धेनू

हंसत मृदु मंद, चांदनी चंद, कटत भव फंद,

टेर सुन दीन दुखारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

आरती कुंजबिहारी की...॥

आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

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