Jamat-ul-Wida2024: रमजान में क्यों खास होता है अलविदा जुम्मा? जानें इस्लाम धर्म में जमात-उल-विदा का महत्व!
Jamaat-ul-Wida (img: File photo)

‘अलविदा जुमा’ अथवा ‘जुमा-तुल-विदा’ इस्लामी धर्म में बेहद महत्वपूर्ण दिन होता है, जो रमजान के आखिरी जुमे को मनाया जाता है. यह दिन जुमा की विदाई का प्रतीक भी माना जाता है, क्योंकि यह रमजान माह का आखिरी जुमा होता है. इसके बाद ईद-उल-फितर का त्यौहार मनाया जाता है. अलविदा जुमा के दिन मुस्लिम समुदाय के लोग अल्लाह की इबादत करते हैं, कुरान की तिलावत करते हैं और नमाज पढ़ते हैं. इस दिन मुसलमान एक दूसरे की दुआओं में याद करते हैं, और एक दूसरे के लिए भलाई की कामना करते है. इस अवसर पर लोग अपने गुनाहों के लिए माफी मांगते हैं. अल्लाह से ताकीद करते हैं कि वे भविष्य में भी सीधा रास्ता चुनें. यह दिन लोगों के बीच खैर-खुशी का माहौल लाता है, लोग एक दूसरे के साथ इफ्तार और सहूर का अनुभव साझा करते हैं. इस साल ‘अलविदा जुमा’ 5 अप्रैल 2024 को मनाया जायेगा. अलविदा जुम्मा के दिन माहे रमजान का आखिरी 29 वां रोजा रखा जाएगा और शाम को लोग इफ्तार के बाद चांद का दीदार करेंगे. अगले दिन ईद-उल-फितर मनाई जाएगी.

क्यों खास है जमात-उल-विदा का दिन?

जमात-उल-विदा के संदर्भ में मान्यता है कि इसी दिन पैगंबर मोहम्मद साहब ने अल्लाह की विशेष इबादत की थी. इसलिए रमजान के अन्य जुम्मे की तुलना में ‘अलविदा जुम्मा’ को ज्यादा महत्वपूर्ण माना गया है. कहा जाता है कि अलविदा जुमा के दिन अच्छे दिल और आस्था के साथ पढ़ी गई नमाज से अल्लाह की रहमत एवं बरकत हासिल होती है, तथा अल्लाह पिछले सारे गुनाह माफ कर देता है. इस्लाम धर्म की मान्यताओं के अनुसार अल्लाह तआला ने जुमे के दिन आदम अलैहिस्सलाम को जन्म दिया था, जुमे के दिन उन्हें आसमान से पृथ्वी पर उतारा, और जुमे के दिन ही उनकी वफात (मृत्यु) भी हुई थी. रमजान का पाक महीना हमें मोहब्बत और अल्लाह के बताए रास्ते पर चलने की सीख देता है, जबकि अलविदा जुम्मा या जमात-उल-विदा रमजान की रुखसती का प्रतीक होता है. यह भी पढ़ें : Shab-E-Qadr 2024: कब है शब-ए-कद्र? क्यों इसे रमजान की सबसे ‘पाक’ रात माना जाता है! जानें कैसे करते हैं सेलिब्रेशन!

जमात उल विदा का इतिहास

इस्लामी संस्कृति में जुम्मा को सप्ताह का सबसे पवित्र दिन माना जाता है, जिसे ‘जुमुआ’ या 'जुम्मा' भी कहते हैं. मुस्लिम धर्म गुरुओं के अनुसार यदि मुसलमान जुमा को प्रार्थना एवं इबादत के साथ पवित्र कुरान पढ़ते हैं, तो सप्ताह के बाकी दिनों में अल्लाह उन्हें सुरक्षा प्रदान करता है, यद्यपि मुसलमान हर जुमा को विशेष मानते हैं, लेकिन रमजान के अंतिम जुमे का खास महत्व होता है. जमात-अल-विदा के इतिहास के अनुसार, अल्लाह द्वारा भेजा एक दूत मस्जिद में प्रवेश करता है और इमाम को सुनता है. जमात-उल-विदा पर नमाज के लिए सुबह-सुबह मस्जिद जाने पर लोगों को इनाम मिलता है. पैगंबर मोहम्मद के अनुसार, अल्लाह उन लोगों के सभी पापों को माफ कर देगा जो नियमित रूप से जुमे की नमाज अदा करते हैं.

‘अलविदा जुमा’ अथवा ‘जुमा-तुल-विदा’ इस्लामी धर्म में बेहद महत्वपूर्ण दिन होता है, जो रमजान के आखिरी जुमे को मनाया जाता है. यह दिन जुमा की विदाई का प्रतीक भी जाता है, क्योंकि यह रमजान माह का आखिरी जुमा होता है. इसके बाद ईद-उल-फितर का त्यौहार मनाया जाता है. अलविदा जुमा के दिन मुस्लिम समुदाय के लोग अल्लाह की इबादत करते हैं, कुरान की तिलावत करते हैं और नमाज पढ़ते हैं. इस दिन मुसलमान एक दूसरे के दुआओं में याद करते हैं, और एक दूसरे के लिए भलाई की कामना करते है. इस अवसर पर लोग अपने गुनाहों के लिए माफी मांगते हैं. अल्लाह से ताकीद करते हैं कि वे भविष्य में भी सीधा रास्ता चुनें. यह दिन लोगों के बीच खैर-खुशी का माहौल लाता है, लोग एक दूसरे के साथ इफ्तार और सहूर का अनुभव साझा करते हैं. इस साल ‘अलविदा जुमा’ 5 अप्रैल 2024 को मनाया जायेगा. अलविदा जुम्मा के दिन माहे रमजान का आखिरी 29 वां रोजा रखा जाएगा और शाम को लोग इफ्तार के बाद चांद का दीदार करेंगे. अगले दिन ईद-उल-फितर मनाई जाएगी.

क्यों खास है जमात-उल-विदा का दिन?

जमात-उल-विदा के संदर्भ में मान्यता है कि इसी दिन पैगंबर मोहम्मद साहब ने अल्लाह की विशेष इबादत की थी. इसलिए रमजान के अन्य जुमे की तुलना में ‘अलविदा जुम्मा’ को ज्यादा महत्वपूर्ण माना गया है. कहा जाता है कि अलविदा जुमा के दिन सच्चे दिल और आस्था के साथ पढ़ी गई नमाज से अल्लाह की रहमत एवं बरकत हासिल होती है, तथा अल्लाह पिछले सारे गुनाहों को माफ कर देता है. इस्लाम धर्म की मान्यताओं के अनुसार अल्लाह तआला ने जुमे के दिन आदम अलैहिस्सलाम को जन्म दिया था, जुमे के दिन उन्हें आसमान से पृथ्वी पर उतारा, और जुमे के दिन ही उनकी वफात (मृत्यु) भी हुई थी. रमजान का पाक महीना हमें मोहब्बत और अल्लाह के बताए रास्ते पर चलने की सीख देता है, जबकि अलविदा जुम्मा या जमात-उल-विदा रमजान की रुखसती का प्रतीक होता है.

जमात-उल-विदा का इतिहास

इस्लामी संस्कृति में जुमा को सप्ताह का सबसे पवित्र दिन माना जाता है, जिसे ‘जुमुआ’ या 'जुम्मा' भी कहते हैं. मुस्लिम धर्म गुरुओं के अनुसार यदि मुसलमान जुमा को प्रार्थना एवं इबादत के साथ पवित्र कुरान पढ़ते हैं, तो सप्ताह के बाकी दिनों में अल्लाह उन्हें सुरक्षा प्रदान करता है, यद्यपि मुसलमान हर जुमा को विशेष मानते हैं, लेकिन रमजान के अंतिम जुमे का खास महत्व होता है. जमात-अल-विदा के इतिहास के अनुसार, अल्लाह द्वारा भेजा एक दूत मस्जिद में प्रवेश करता है और इमाम को सुनता है. जमात-उल-विदा पर नमाज के लिए सुबह-सुबह मस्जिद जाने पर लोगों को इनाम मिलता है. पैगंबर मोहम्मद के अनुसार, अल्लाह उन लोगों के सभी पापों को माफ कर देगा जो नियमित रूप से जुमे की नमाज अदा करते हैं.