Jagannath Rath Yatra 2022: क्यों इतना लोकप्रिय है भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा? जानें रथ यात्रा की दिव्य झलकियां!
प्रत्येक वर्ष वैशाख मास की द्वितीया के दिन भगवान जगन्नाथ अपने भ्राता बलभद्र एवं बहन सुभद्रा के साथ शाही रथ में सवार होकर अपनी मौसी के घर गुंडिचा मंदिर जाते हैं और वहां 9 दिनों का प्रवास कर वापस आते हैं.
प्रत्येक वर्ष वैशाख मास की द्वितीया के दिन भगवान जगन्नाथ अपने भ्राता बलभद्र एवं बहन सुभद्रा के साथ शाही रथ में सवार होकर अपनी मौसी के घर गुंडिचा मंदिर जाते हैं और वहां 9 दिनों का प्रवास कर वापस आते हैं. भगवान जगन्नाथ की यह रथयात्रा पूरे विश्व में विख्यात है.
‘जग’ और ‘नाथ’ से मिल बना है ‘जगन्नाथ’, यानी ‘ब्रह्माण्ड के भगवान’ अर्थात भगवान विष्णु के अवतारों में एक भगवान श्रीकृष्ण, और इन्हीं की स्मृति में यह महोत्सव हर वर्ष मनाया जाता है. इस रथ यात्रा के साथ कई किंवदंतियां जुड़ी हैं. यह जगन्नाथ मंदिर से 3 किमी दूर गुंडिचा मंदिर तक तीनों रथों का काफिला निकाला जाता है. रथों के साथ लाखों श्रद्धालु ढोल-नगाड़ों, एवं शंख-करताल की ध्वनि के बीच भजन-मंत्र गाते-नाचते आगे बढ़ते हैं. हर श्रद्धालु की कोशिश होती है कि रथ खींचने में वह भी भागीदार बने. स्थानीय पुजारियों का मानना है कि शुद्ध भक्ति में संलग्न होने के पश्चात ही भगवान जगन्नाथ का इतना विशाल रथ खींचा जा सकता है. मान्यता है कि रथ खींचने वाले भक्त के जाने-अनजाने हुए सारे पाप नष्ट हो जाते हैं. यह यात्रा गुंडिचा यात्रा, रथ महोत्सव, दशावतार एवं नवदीना यात्रा के नाम से भी लोकप्रिय है. आइये जानें इस रथ-यात्रा सिलसिलेवार विवरण
ऐसे शुरु होती है भगवान जगन्नाथ की रथ-यात्रा
रथ यात्रा से पूर्व भगवान जगन्नाथ, बलभद्र एवं बहन सुभद्रा को 108 बाल्टी खुशबू वाले पानी से स्नान कराते हैं, इसे ‘स्नान-पूर्णिमा’ कहते हैं. इससे पूर्व उन्हें आइसोलेशन में रखते हैं, क्योंकि मान्यता है कि भगवान अस्वस्थ थे. इसे ‘अंसारा’ कहते हैं. अब पूरे विधि-विधान एवं मंत्रोच्चारण के साथ गर्भगृह में भगवान की पूजा-अनुष्ठान सम्पन्न किया जाता है. यह अनुष्ठान छेरा पहाड़ ओडिशा के शाही उत्तराधिकारी द्वारा किया जाता है. इस बीच नगर का राजा सोने के हैंडल वाले झाड़ू से रथ की सफाई करते हैं और उस पर चंदन पाउडर छिड़कते हैं, और राजा ही पूरे रथ को फूलों से सजाते हैं. इसके बाद चेहरा पहाड़ अनुष्ठान के दरम्यान राजा अपने सहयोगियों की सहायता से भगवान को रथों में बिठाते हैं. राजा द्वारा किया गया यह कार्य इस बात का प्रतीक है कि भगवान कि नजर में राजा एवं प्रजा सभी समान हैं. यह भी पढ़ें : Rath Yatra 2022: राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने जगन्नाथ रथ यात्रा पर देशवासियों को दी शुभकामनाएं
अब जयघोष के साथ तीनों रथ अपने गंतव्य स्थान की ओर बढ़ते हैं. रथ काफी विशाल होने और भक्तों द्वारा खींचे जाने के कारण धीमी रफ्तार से आगे बढ़ते हैं. तीनों रथ मौसी के घर गुंडिचा मंदिर पहुंचते हैं. यहां वे 9 दिनों का प्रवास करते हैं. इस दरम्यान दोनों समय उनकी विधिवत पूजा-अर्चना की जाती है. भक्तों को प्रसाद एवं लंगर खिलाया जाता है. इसके बाद तीनों रथ एवं भक्तगण गुंडिचा मंदिर से वापस आते हैं. इस प्रक्रिया को बहुदा यात्रा कहते हैं.
रथ सायंकाल जगन्नाथ मंदिर पहुंचते हैं. रथ को यहीं रोका जाता है. पूरी रात भक्तगण भगवान का दर्शन लाभ लेते हैं. अगले दिन सुबह तीनों भगवान को मंत्रोच्चारण के साथ स्नान कराकर नये वस्त्र पहनाये जाते हैं. इस पूरे अनुष्ठान को वेसा के नाम से जाना जाता है. इसके बाद राजा अपने सहयोगियों के साथ भगवान को रथ से उतारकर गर्भगृह में स्थापित करते हैं. और इस तरह यह रथ-यात्रा सम्पन्न होता है.