International Nurses Day 2020: कोरोना संकट के बीच घर पर बच्चों को छोड़ मरीजों की सेवा कर रही हैं ये महिलाएं सेवा
कोरोना महामारी के बीच आपके मोबाइल पर भी ऐसी कई नर्सों की तस्वीरें आयी होंगी, जो अपने नवजात बच्चों को घर छोड़ कर मरीजों की सेवा में लगी हैं.
International Nurses Day 2020: कोरोना महामारी के बीच आपके मोबाइल पर भी ऐसी कई नर्सों की तस्वीरें आयी होंगी, जो अपने नवजात बच्चों को घर छोड़ कर मरीजों की सेवा में लगी हैं. कई नर्सें हफ्तों से अपने घर नहीं गईं, तो कई घर जाती भी हैं, तो अपने परिवार से दूर रहती हैं. और तो और मुंबई की महापौर किशोरी पेडणेकर के बारे में भी आपने जरूर सुना होगा, जिन्होंने मरीजों की सेवा करने के लिए एक बार फिर नर्स की ड्रेस पहनी और स्वास्थ्य कर्मियों का मनोबल ऊंचा करने के लिए उनके कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी हो गईं.
देश के एक कोने से दूसरे कोने तक जाने मात्र से ही ऐसी हजारों कहानियां सुनने को मिलेंगी. यही कारण है कि नर्स एक ऐसा पेशा है, जिसे हर कोई आदर से नवाज़ता है. यही कारण है कि उन्हें सभी लोग सिस्टर कहकर बुलाते हैं. और दुनिया की ये 'सिस्टर' हर किसी की सेवा एक मदर यानी मॉं के रूप में करती हैं. कोई महामारी हो या युद्ध की विभिषका मरीजों की सेवा करने में नर्सें कभी पीछे नहीं हटतीं। उन्हीं के सम्मान में हर साल 12 मई को अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस मनाया जाता है. यह भी पढ़े: इंदौर के निजी नर्सिंग होम के दो डॉक्टर कोरोना वायरस से संक्रमित पाये गये
नर्स स्वास्थ्य के क्षेत्र में कई अहम भूमिका निभाती हैं। जब डॉक्टर एक मरीज को देख रहे होते हैं तो वो कई दूसरे मरीजों की देख भाल करती हैं. दवाईयों से लेकर उनकी हर एक गतिविधि की रिपोर्ट बनाती हैं। साथ ही नर्स समाज में किसी भी तरह की महामारी, संक्रमण, बीमारी के प्रति जागरूक करने और स्वास्थ्य सेवा में आगे रहती हैं. खास बात यह है कि यह सेवा भाव एक मुस्कुराते हुए चेहरे के साथ होता है. एक मुस्कुराहट के साथ सिर्फ इतने से शब्द, "आप बहुत जल्दी ठीक हो कर घर जाएंगे", न जाने कितने मरीजों का मनोबल बढ़ा देते हैं. गंभीर से गंभीर बीमारी से लड़ने की ताकत देते हैं.
संक्षिप्त इतिहास
समाज सुधारक और आधुनिक नर्सिंग की संस्थापक फ्लोरेंस नाइटिंगल का जन्म 12 मई 1820 को हुआ था। 1965 से यह दिन प्रत्येक वर्ष इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ नर्सेज द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय नर्स दिवस के रूप में मनाया जाता है. दरअसल फ्लोरेंस ने युद्ध में घायलों को सेवा की. जब चिकित्सक चले जाते तब वह रात के गहन अंधेरे में मोमबत्ती जलाकर घायलों की सेवा के लिए निकल पड़ती थीं. जिसके बाद ही उन्हें 'लेडी विद द लैंप' की उपाधि से सम्मानित किया गया. असल में कई जगहों पर बीमार घायलों के उपचार पर उतना ध्यान नहीं दिया जाता था, लेकिन फ्लोरेंस नाइटिंगल ने उनकी सेवा कर इसकी परिभाषा ही बदल दी। पहली बार इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ नर्स (ICN) द्वारा 1965 में मनाया गया था। जनवरी 1974 में 12 मई की तारीख को 'इंटरनेशनल नर्स डे' के रूप में मनाने की घोषणा की गई थी, क्योंकि इसी तारीख को फ्लोरेंस नाइटिंगेल का जन्म हुआ था.
भारत में नर्स डे
भारत में भी नर्सों की सराहनीय सेवा को याद करते हुए भारत सरकार के परिवार एवं कल्याण मंत्रालय ने 1973 में राष्ट्रीय फ्लोरेंस नाइटिंगल पुरस्कार की शुरुआत की। यह पुरस्कार प्रति वर्ष राष्ट्रपति की ओर से 12 मई को प्रदान किये जाते हैं। भारत में भी स्वास्थ्य क्षेत्र में नसिंग के कई पाठ्यक्रम चलाए जा रहे हैं. इस प्रशिक्षण में केवल चिकित्सीय कार्य नहीं सिखाया जाता, बल्कि मरीजों का मनोबल बढ़ाने की ट्रेनिंग भी दी जाती है. ताकि अस्पताल से छुट्टी मिलते वक्त मरीज शारीरिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक तीनों रूप से स्वस्थ्य हो.