सीमा शुल्क में छूट और जीएसटी दर में कटौती के बाद तीन कैंसर रोधी दवाओं के एमआरपी में कटौती करेगी सरकार

रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय ने कहा कि सीमा शुल्क में छूट और जीएसटी दरों में कमी के बाद अब नेशनल फार्मास्यूटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (एनपीपीए) ने दवा निर्माताओं को तीन कैंसर रोधी दवाओं पर एमआरपी कम करने का निर्देश दिया है.

medicines (img: Pixabay)

नई दिल्ली, 29 अक्टूबर : रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय ने कहा कि सीमा शुल्क में छूट और जीएसटी दरों में कमी के बाद अब नेशनल फार्मास्यूटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (एनपीपीए) ने दवा निर्माताओं को तीन कैंसर रोधी दवाओं पर एमआरपी कम करने का निर्देश दिया है. नेशनल फार्मास्यूटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (एनपीपीए) ने 28 अक्टूबर के कार्यालय ज्ञापन में संबंधित निर्माताओं को तीन कैंसर रोधी दवाओं ट्रैस्टुजुमैब ओसिमर्टिनिब और डुरवालुमैब पर एमआरपी कम करने का निर्देश दिया. मंत्रालय ने कहा, ''यह किफायती कीमतों पर दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने की सरकार की प्रतिबद्धता के अनुरूप है.''

केंद्रीय बजट 2024-25 में सरकार ने कैंसर से पीड़ित लोगों के वित्तीय बोझ को कम करने और दवा की आसान उपलब्धता के लिए तीन कैंसर दवाओं पर सीमा शुल्क में छूट दी. सरकार ने इन तीन कैंसर दवाओं पर जीएसटी दर को 12 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत कर दिया. ज्ञापन में कहा गया है, “बाजार में इन दवाओं की एमआरपी में कमी होनी चाहिए और कम करों और शुल्कों का लाभ उपभोक्ताओं को दिया जाना चाहिए.” इसमें निर्माताओं को निर्देश दिया कि वे डीलरों, राज्य औषधि नियंत्रकों और सरकार को परिवर्तन दर्शाते हुए मूल्य सूची या अनुपूरक मूल्य सूची जारी करें और मूल्य परिवर्तन के बारे में सूचना फॉर्म-II/फॉर्म V के माध्यम से एनपीपीए को प्रस्तुत करें. यह भी पढ़ें : Adani Enterprises: अदाणी एंटरप्राइजेज का दूसरी तिमाही में शुद्ध मुनाफा 6.6 गुना बढ़कर 1,741 करोड़ रुपये

ट्रैस्टुजुमैब डेरक्सटेकन का उपयोग स्तन कैंसर के लिए किया जाता है, जबकि ओसिमर्टिनिब का उपयोग फेफड़ों के कैंसर के लिए किया जाता है तथा डुरवालुमैब का उपयोग फेफड़ों के कैंसर और पित्त नली के कैंसर दोनों के लिए किया जाता है. भारत में कैंसर के मामले काफ़ी बढ़ रहे हैं. लैंसेट के एक अध्ययन के अनुसार, 2019 में भारत में कैंसर के लगभग 12 लाख नए मामले दर्ज किए गए और 9.3 लाख मौतें हुईं, जो एशिया में इस बीमारी के बोझ में दूसरा सबसे बड़ा योगदानकर्ता है. अध्ययन से पता चला कि 2020 में यह संख्या बढ़कर 13.9 लाख हो गई, जो 2021 और 2022 में क्रमशः 14.2 लाख और 14.6 लाख थी.

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