Govardhan Puja 2024: कब और क्यों होती है गोवर्धन पूजा? जानें पूजा की मूल तिथि, मुहूर्त एवं पूजा-विधि!
दीपावली महोत्सव श्रृंखला की एक कड़ी गोवर्धन पूजा है, जिसे अन्नकूट पूजा भी कहते हैं. सनातन धर्म में इसका विशेष महत्व है, क्योंकि इसका संबंध भगवान श्रीकृष्ण से लेकर प्रकृति पूजा तक है. गोवर्धन पूजा मुख्यतया कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाता है. इस अवसर पर गोवर्धन पर्वत को प्रकृति का प्रतिरूप मानते हुए इसकी पूजा की जाती है.
दीपावली महोत्सव श्रृंखला की एक कड़ी गोवर्धन पूजा है, जिसे अन्नकूट पूजा भी कहते हैं. सनातन धर्म में इसका विशेष महत्व है, क्योंकि इसका संबंध भगवान श्रीकृष्ण से लेकर प्रकृति पूजा तक है. गोवर्धन पूजा मुख्यतया कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाता है. इस अवसर पर गोवर्धन पर्वत को प्रकृति का प्रतिरूप मानते हुए इसकी पूजा की जाती है. इस दिन गाय की भी पूजा का विधान है. इस पर्व की शुरुआत भगवान श्रीकृष्ण की नगरी ब्रज से हुई थी, जो धीरे-धीरे संपूर्ण भारत में मनाया जाने लगा. इस वर्ष पर्व की तिथियों को लेकर चल संशय अन्नकूट तिथि पर भी है. आइये जानते हैं विद्वान रविंद्र पाण्डेय से गोवर्धन पूजा की तिथि एवं पूजा-विधि आदि के बारे में..
गोवर्धन पूजा की मूल तिथि एवं पूजन मुहूर्त
आचार्य के अनुसार गोवर्धन पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाई जाती है.
कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रारंभः 06.16 PM (01 नवंबर 2024, शुक्रवार)
कार्तिक शुक्ल पक्ष समाप्तः 08.21 PM (02 नवंबर 2024, शनिवार)
उदया तिथि के अनुसार इस वर्ष गोवर्धन (अन्नकूट) पूजा 02 नवंबर को ही मनाया जायेगा. पंचांग के अनुसार गोवर्धन पूजा के तीन शुभ मुहूर्त बन रहे हैं.
पहला मुहूर्तः 06.34 AM से 08.46 AM
दूसरा मुहूर्तः 03.23 PM से 08.46 PM
तीसरा मुहूर्तः 05.35 PM से 06.01 PM
क्यों मनाया जाता है गोवर्धन पूजा
गोवर्धन पूजा द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण की जीवन कथाओं से संबंद्ध है. किंवदंतियों के अनुसार ब्रजवासी परंपरागत तरीके से प्रत्येक वर्ष भगवान इंद्र की पूजा-अर्चना कर उन्हें भांति-भांति प्रकार के पकवान चढ़ाते थे. एक बार भगवान कृष्ण यह देख ब्रजवासियों से कहा कि उन्हें इंद्र के बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए, गोवर्धन पर्वत ही उन्हें अन्न जल देता है. ब्रजवासी गोवर्धन की पूजा करने लगे. यह देख इंद्र क्रोधित हो गये. उन्होंने मेघराज को गोकुल में अतिवृष्टि का आदेश दिया. मूसलाधार वर्षा से जब सर्वत्र ब्रजभूमि जलमग्न होने लगा, तब कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगलियों पर उठाकर सारे ब्रजवासियों को गोवर्धन के नीचे बुला लिया. अंततः इंद्र ने अपनी दिव्य दृष्टि से जाना कि कृष्ण सामान्य व्यक्ति नहीं, बल्कि साक्षात परब्रह्म परमेश्वर हैं. उन्हें अपने कृत्य पर पश्चाताप हुआ और श्रीहरि से क्षमा याचना की. तभी से गोवर्धन-पूजा की जा रही है. यह भी पढ़ें : Ban on firecrackers on Diwali 2024: पटाखों पर प्रतिबंध कितना उचित अथवा कितना अनुचित? जाने क्या कहते हैं चिकित्सक!
गोवर्धन-पूजा विधि
सुबह स्नान-ध्यान के पश्चात शुभ मुहूर्त में गाय के गोबर से प्रतीकात्मक पर्वत बनाएं. इसे फूलों से सजाएं. धूप-दीप प्रज्वलित करें. रोली, पुष्प, सुपारी, पान, केसर, रोली, चंदन, लाई, लावा, चिवड़ा एवं गट्टा आदि अर्पित करें. केसर की खीर, मिठाई, फल एवं बताशे का भोग लगाएं. इसके बाद लोटे में जल भरकर प्रतीकात्मक रूप से बने गोवर्धन की सात बार परिक्रमा करें, और इस दरमियान जल गिराते जाएं. साथ ही घर में धन-धान्य के कभी कमी नहीं रहे की याचना भी करें. इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण की आरती उतारें, और भक्तों को प्रसाद वितरित करें, तत्पश्चात भोजन ग्रहण करें.