Ganga Saptami 2022: क्यों माना जाता है गंगा को पतित पावनी? जानें गंगा सप्तमी का महत्व, पूजन विधि एवं गंगा के उद्गम की दिव्य एवं रोचक कथा!

हिंदू धर्म शास्त्रों में गंगा नदी को पतित पावनी माना जाता है. गंगा स्नान, एवं गंगा पूजन करने से मनुष्य को उसके सभी पापों से मुक्ति मिलती है. उसे किसी भी तरह की बीमारियां नहीं होती. पावन गंगा के कारण ही जो तीर्थ स्थल गंगा तट पर बसे हुए हैं, वे अन्य की तुलना में ज्यादा पवित्र माने जाते हैं.

Ganga Saptami (Photo Credits: File Photo)

हिंदू धर्म शास्त्रों में गंगा नदी को पतित पावनी माना जाता है. गंगा स्नान, एवं गंगा पूजन करने से मनुष्य को उसके सभी पापों से मुक्ति मिलती है. उसे किसी भी तरह की बीमारियां नहीं होती. पावन गंगा के कारण ही जो तीर्थ स्थल गंगा तट पर बसे हुए हैं, वे अन्य की तुलना में ज्यादा पवित्र माने जाते हैं. इसीलिए गंगा सप्तमी का सनातन धर्म में बहुत महत्व है. हिंदू पंचांग के अनुसार, शुक्लपक्ष के वैशाख माह की सप्तमी को गंगा सप्तमी मनाई जाती है. इस दिन प्रयागराज, ऋषिकेश, हरिद्वार एवं वाराणसी जैसे शहरों में भारी संख्या में श्रद्धालु पवित्र गंगा नदी में डुबकियां लगाकर पुण्य अर्जित करते हैं. इस बार गंगा सप्तमी 8 मई, रविवार 2022 को मनाई जायेगी.

गंगा सप्तमी की पूजा विधि!

गंगा जयंती के दिन सूर्योदय से पूर्व गंगा नदी में स्नान के बाद, एक तांबे के लोटे कच्चा दूध, सिक्के, और पुष्प आदि डालकर गंगा में प्रवाहित करें. दाईं हथेली में फूलों की माला एवं फूल लेकर गंगा को अर्पित करते हुए निम्न मंत्र का जाप करें,

गांगं वारि मनोहारि मुरारिचरणच्युतम्।

त्रिपुरारिशिरश्चारि पापहारि पुनातु माम्।

बहुत से भक्त माँ गंगा को जगाने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए गंगा जी की आरती उतारते हैं. संध्याकाल में श्रद्धालुओं द्वारा असंख्य दीप जलाकर गंगा नदी में प्रवाहित करते हैं. इसे अत्यधिक शुभ माना जाता है भक्त गंगा जी को दीप-दान करते हुए जो भी मन्नत मांगते हैं, मां गंगा की कृपा से वे सभी पूरे होते हैं.

कब है गंगा सप्तमी

गंगा को धरती पर मोक्षदायनी माना गया है. इस बार गंगा सप्तमी 08 मई 2022, रविवार को है. सप्तमी तिथि 07 मई 2022 को दोपहर 02.56 से प्रारंभ होकर 08 मई, 2022 को शाम 05.00 बजे तक रहेगी. उदया तिथि के हिसाब से ये पर्व 8 मई को मनाया जाएगा.

गंगा सप्तमी का महत्व?

मान्यता है कि गंगा का जन्म भगवान विष्णु के पैरों से हुआ था. साथ ही वे शिवजी की जटाओं में निवास करती हैं. गंगा सप्तमी का पर्व विशेष रूप से उन स्थानों पर बड़े धूमधाम से मनाया जाता है, जहां गंगा एवं उसकी सहायक नदियां बहती हैं. संध्याकाल में गंगा के तटों की दिव्य छटा देखते बनती है. लगता है कि गंगा को स्वर्णाभूषणों से अलंकृत किया गया है. गंगा की अक्षुण्ण पवित्रता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इस दिन जो भी व्यक्ति गंगाजी में डुबकियां लगाते हैं, वे अपने सारे पापों से मुक्ति पा लेते हैं. हिंदू धर्म अनुसार जिस व्यक्ति की अंत्येष्टि गंगा नदी के तट पर की जाती है, उसे प्रत्यक्ष मोक्ष की प्राप्ति होती है. ज्योतिषियों के अनुसार कोई व्यक्ति मंगल के दुष्प्रभाव से पीड़ित होता है तो उसे गंगा सप्तमी के दिन गंगा में स्नान करके शास्त्र सम्मत विधि से गंगा मइया की पूजा करनी चाहिए. उसे राहत मिलती है.

गंगा की उद्गम कथा!

विभिन्न पुराणों में गंगा के उद्गम की अलग-अलग कथाएं हैं. पद्मपुराण के अनुसार आदिकाल में ब्रह्माजी ने सृष्टि की 'मूल प्रकृति' से विनय स्वरूप कहा, -हे मां, तुम समस्त लोकों का आदिकारण बनो, मैं तुमसे संसार की सृष्टि प्रारंभ करूँगा. इस पर मूल प्रकृति गायत्री, सरस्वती, लक्ष्मी, उमादेवी, शक्तिबीजा, तपस्विनी एवं धर्मद्रवा स्वरूपों में प्रकट हुईं. ब्रह्माजी ने 'धर्मद्रवा' को सभी धर्मों में प्रतिष्ठित मानकर अपने कमंडल में धारण कर लिया. राजा बलि के यज्ञ में जब वामन अवतार में विष्णुजी ने एक पग से आकाश एवं ब्रह्माण्ड को भेदकर ब्रह्माजी के समक्ष उपस्थित हुए, तब ब्रह्माजी ने अपने कमंडल के जल से विष्णुजी के चरण धोकर पूजन किया. चरण धोते समय श्री विष्णु का चरणोदक हेमकूट पर्वत पर गिरा. वहां से शिवजी के पास पहुंचकर गंगा के रूप में उनकी जटाओं में समा गया. सहस्त्र कालों तक गंगाजी शिव की जटाओं में थीं. शास्त्रों में उल्लेखित है कि गंगा धरती (मृत्युलोक) आकाश (देवलोक) एवं रसातल (पाताल लोक) को अपनी तीन मूल धाराओं भागीरथी, मंदाकिनी और भगवती के रूप में अभिसिंचित करती हैं.

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