गणपति को दूर्वा पसंद है तुलसी नहीं! क्यों कहते हैं उन्हें एकदंत? कैसे बना चूहा उनका वाहन? जानिये रोचक कथा
श्रीगणेश की प्रतिमा की पूजा-अर्चना करते हुए कुछ बातें जिज्ञासा उत्पन्न करती हैं, मसलन श्रीगणेश जी को दूर्वा (दूब) क्यों चढ़ाया जाता है? तुलसी से परहेज क्यों है? मोदक का भोग क्यों लगाते हैं?, अथवा भारी भरकम पेट वाले श्रीगणेश जी की सवारी चूहा कैसे हो सकता है? इससे ज्यादा हैरानी इन सवालों के जवाब देखकर होती है. आखिर क्या है इन सवालों के जवाब? सर्वप्रथम हम उनके पसंदीदा भोग मोदक की बात करेंगे.
श्रीगणेश (Shree Ganesh) की प्रतिमा की पूजा-अर्चना करते हुए कुछ बातें जिज्ञासा उत्पन्न करती हैं, मसलन श्रीगणेश जी को दूर्वा (दूब) क्यों चढ़ाया जाता है? तुलसी से परहेज क्यों है? मोदक का भोग क्यों लगाते हैं?, अथवा भारी भरकम पेट वाले श्रीगणेश जी की सवारी चूहा कैसे हो सकता है? इससे ज्यादा हैरानी इन सवालों के जवाब देखकर होती है. आखिर क्या है इन सवालों के जवाब? सर्वप्रथम हम उनके पसंदीदा भोग मोदक की बात करेंगे.
क्यों चढ़ाते हैं गणपति को मोदक?
मोदक दो शब्दों से मिलकर बना है, ‘मोद’ और ‘क’. यानी जिसे हाथ में रखने मात्र से आनंद की अनुभूति हो. ऐसा प्रसाद जब गणपति (Ganpati) जी को चढाया जाता है तो सुख की अनुभूति होना स्वाभाविक है. शास्त्रों में मोदक को ज्ञान का प्रतीक भी माना गया है, यानी जिस तरह ज्ञान का प्रतीक कहा जानेवाला मोदक मीठा होता है, उसी तरह ज्ञान का प्रसाद भी मीठा होता है. मोदक का थोड़ा-थोड़ा और धीरे-धीरे खाने पर स्वाद और मिठास दोनों का आनंद देर तक मिलता है. प्रसाद के रूप में मोदक खाने के पश्चात तृप्ति महसूस होती है.
गणपति की सवारी चूहा क्यों?
गणपति जी को हम मूसक सवार के रूप में भी जानते हैं. अब गणेश जी जैसे विशालकाय उदर वाले देवता का वाहन भला छोटा-सा मूषक कैसे हो सकता है. यह सवाल मन में जिज्ञासा उत्पन्न करती है, लेकिन जब इस बात की गहराई में जाते हैं तो मन के सारे भ्रम दूर हो जाते हैं. दरअसल चूहे की प्रवृत्ति कुतरने की होती है. इस प्रवृति को कुतर्क का प्रतीक मानते हैं. मूषक इस बात का प्रतीक है कि बुद्धि के विकास के लिए कुतर्कों पर नहीं तर्कों पर चलना चाहिए. कुतर्कों से व्यक्ति भ्रम के भंवर में फंसकर लक्ष्य से भटक जाता है. इस संदर्भ में एक लोककथा भी प्रचलित है.
प्राचीनकाल में पर्वत के समान एक विशालकाय चूहा (क्रोंच) रहता था. वह देखते-देखते पूरे पर्वत को कुतर देता था. उसके इस आतंक से सभी मनुष्य एवं जीव-जंतु परेशान थे. धीरे-धीरे उसका आतंक बढने लगा. क्रोंच के उत्पात से मुक्ति के लिए महर्षि परमार ने श्रीगणेश जी धरती पर आमंत्रित किया. श्रीगणेश जी के भोग के दौरान महर्षि ने उनसे क्रोंच के आतंक की बात बताई. कहा जाता है कि गणेश जी ने एक फंदा बनाकर क्रोंच पर फेंका और उसे खींच कर करीब लाए और उस पर बैठ गये. क्रोंच गणेश जी के शरीर से दबने लगा, तब क्रोंच ने अपने आतंक के लिए गणेश जी से छमा मांगी. इसके बाद से ही क्रंच को उन्होंने अपना वाहन बना लिया.
क्यों चढ़ाते हैं गणेश जी को दुर्वा
मान्यता है कि गणपति जी को हरियाली बहुत पसंद है. दूर्वा पृथ्वी में हरियाली बिखेरती है. दूब इस बात का भी प्रतीक है कि वह अपने अस्तित्व को बचाते हुए जमीन में अपनी जड़ें जमाते हुए चारों तरफ बढ़ती है और गहराई तक जमीन के भीतर तक जाती है. विपरीत परिस्थितियों में भी यह अपनी पहचान बरकरार रखने समर्थ होती है. दूर्वा शीतल और राहत पहुंचाने वाली वनस्पति है. इसके कोमल अंकुरों के रस में जीवनदायिनी शक्ति होती है. सूर्योदय से पूर्व दूब पर जमी ओस की बूंदों पर नंगे पैर घूमने से आंखों की रोशनी तेज होती है. दूर्वा को गहनता और पवित्रता का प्रतीक भी माना जाता है. दूर्वा की इन्हीं खूबियों के कारण गणपति को यह विशेष रूप से पसंद है. लेकिन वही दूर्वा गणपति जी को चढाना चाहिए जो मंदिर अथवा बगीचे में उगी हुई हो. दूर्वा चढाने से बप्पा भक्त की सारी मनोकामनाएं पूरी करते हैं. गणपति जी को दूर्वा हमेशा जोड़े में चढाना चाहिए. मान्यता है कि ऐसा करने से जीवन में सुख एवं समृद्धि की प्राप्ति होती है.
श्री गणेश के एकदंत होने का रहस्य?
श्री गणेश जी की प्रतिमा में एक दांत टूटा हुआ नजर आता है. इसीलिए उन्हें एकदंत भी कहते हैं. लेकिन यह दांत टूटा क्यों है? इसके पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित है. कहा जाता है एक बार परशुराम शिव से मिलने के लिए कैलाश पर्वत पर पहुंचे. उस समय भगवान शिव माता पार्वती के साथ विश्राम कर रहे थे. गणेश जी ने परशुराम जी को शिव जी के पास जाने से रोका. परशुराम जी ने गणेश जी को समझाने की कोशिश की, लेकिन श्रीगणेश नहीं माने तब परशुराम ने क्रोधित हो उन पर हमला कर दिया. दोनों के बीच भयंकर युद्ध शुरू हो गया. थोड़ी देर बाद शिव जी बाहर आये तो उन्होंने दोनों को शांत किया. लेकिन कहा जाता है कि परशुराम के फरसे से श्रीगणेश जी का एक दांत टूट गया था. पौराणिक ग्रंथों में गणेश जी के एक पूरे दांत और एक आधे दांत को प्रतीकात्मक बताया गया है. इसके अनुसार पूर्ण दांत श्रद्धा का प्रतीक है तथा टूटा हुआ दांत बुद्धि का. मनुष्य को यह प्रेरणा देते हैं कि जीवन में बुद्धि कम होगी तो चलेगा, लेकिन ईश्वर के प्रति पूरा विश्वास रखना चाहिए.
भगवान गणेश को क्यों नहीं चढ़ाई जाती है तुलसी
पौराणिक कथाओं में तुलसी का विशेष महात्म्य है. विष्णु जी की पूजा बिना तुलसी के पूरी नहीं होती, तथा मृत व्यक्ति के मुंह में तुलसी का एक पत्ता रखने मात्र से वह वैकुण्ठधाम पहुंच जाता है. लेकिन वहीं ऐसी भी मान्यता है कि श्रीगणेश की पूजा में तुलसी का किंचित उपयोग वर्जित है. इस संदर्भ में पौराणिक ग्रंथों में एक कथा बहुत प्रचलित है. प्राचीनकाल में तुलसी नामक लड़की भगवान विष्णु की अनन्य भक्त हुआ करती थी. वह सदा विष्णुजी की पूजा-पाठ करती रहती थी. एक दिन एक सुंदर-सी बगिया में उसे श्रीगणेश के दर्शन हो गये. श्रीगणेश उस बगिया में ध्यानमग्न हो तपस्या में लीन थे. उस समय गणेश जी ने पीतांबर पहन रखा था तथा उनके पूरे शरीर पर लेप लगा हुआ था. श्रीगणेश तुलसी उन पर मोहित हो गयीं. उन्होंने श्रीगणेश जी के सामने शादी का प्रस्ताव रखा. तुलसी द्वारा इस तरह तपस्या में विघ्न डालने से श्रीगणेश नाराज ने होकर तुलसी जी को श्राप दिया कि कि उसकी शादी शंखचूर्ण नामक राक्षस से होगी. अब तुलसी को अपनी गलती का अहसास हुआ, उन्होंने गणेश जी से क्षमा मांगते हुए प्रार्थना की कि वे अपना श्राप वापस ले लें. तब गणेश जी ने कहा कि वह भगवान विष्णु और कृष्ण जी की प्रिय होंगी, तथा कलियुग में वह जगत को जीवन और मोक्ष देने वाली होंगी. लेकिन मेरी पूजा में तुलसी चढ़ाना अशुभ माना जाएगा. उसी दिन से भगवान गणेश जी की पूजा में कभी भी तुलसी नहीं चढ़ाई जाती.