Fruit Super Sensor: फल कितने पके हैं यह जानने के लिए आईआईटी ने विकसित किया सुपर सेंसर

आईआईटी जोधपुर के शोधकर्ताओं ने फल कितने पके हैं यह पता लगाने के लिए एक सस्ता और बहुत सेंसिटिव टेक्टाइल प्रेसर सेंसर विकसित किया है. यह सेंसर नैनोनीडल टेक्सचर वाला पीडीएमएस (पॉलीडिमिथाइलसिलोक्सेन) को बतौर डाइइलेक्ट्रिक लेयर उपयोग करता है और यह लिथोग्राफी-मुक्त है.

Fruits

नई दिल्ली, 29 मार्च : आईआईटी जोधपुर के शोधकर्ताओं ने फल कितने पके हैं यह पता लगाने के लिए एक सस्ता और बहुत सेंसिटिव टेक्टाइल प्रेसर सेंसर विकसित किया है. यह सेंसर नैनोनीडल टेक्सचर वाला पीडीएमएस (पॉलीडिमिथाइलसिलोक्सेन) को बतौर डाइइलेक्ट्रिक लेयर उपयोग करता है और यह लिथोग्राफी-मुक्त है. यह लचीला है और इसका बड़े स्तर पर निर्माण करना भी आसान है. आईआईटी जोधपुर की टीम ने कैपेसिटिव टैक्टाइल सेंसर की सेंसिटिविटी और हिस्टीरिक्स प्रतिक्रिया की विशेषता बताई और इसकी बदलती प्रतिक्रिया का परीक्षण भी किया.

शोधकर्ताओ ने इलास्टिक माड्युलस और कैपेसिटेंस को माप कर अलग-अलग किस्म के टमाटरों की परिपक्वता का सफलतापूर्वक आकलन किया है. आईआईटी जोधपुर के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग में प्रोफेसर और प्रमुख डॉ. अजय अग्रवाल ने आईआईटी दिल्ली तथा सीएसआईआर-सीईईआरआई, पिलानी के शोधकर्ताओं के साथ मिल कर यह शोध पत्र विश्व विख्यात 'आईईईई सेंसर जर्नल' में प्रकाशित किया है. यह भी पढ़ें : Invest In India Big Hit: रंग लाई PM मोदी की मेहनत, Insurance क्षेत्र में एशिया में टॉप-4 में भारत

दरअसल फलों की ताजगी और गुणवत्ता बनाए रखने के लिए बागानों में उनके पकने का ध्यान रखना आवश्यक है. फलों को चुनने (साटिर्ंग) और उनके पकने का पता लगाने के लिए विभिन्न माइक्रोसेंसर हैं. उदाहरण के लिए कुछ ऐसे डिवाइस हैं जो फलों में मौजूद शर्करा और स्टार्च का रासायनिक विश्लेषण कर अपना काम करते हैं, जबकि कुछ अन्य इलेक्ट्रोकेमिकल सेंसिंग, इमेज प्रोसेसिंग, इलेक्ट्रॉनिक्स आवाज और टेक्टाइल सेंसिंग का उपयोग करते हैं.

लेकिन फलों का रासायनिक विश्लेषण विनाशकारी है और पकने की सभी अवस्थाओं में यह नहीं किया जा सकता. जहां तक इलेक्ट्रोकेमिकल सेंसिंग की बात है इसके लिए महंगे उपकरण चाहिए. इमेज प्रासेसिंग की प्रक्रिया फलों की कुछ फसलों में ही कारगर है. कीवी, आम और ब्लूबेरी जैसे कुछ फलों का रंग बदलना उनके पक जाने का विश्वसनीय सूचक नहीं है.

आईआईटी का कहना है कि वहीं दूसरी ओर, फलों का कसाव उनकी परिपक्वता मापने का भरोसेमंद तरीका है और यह स्वचालित है. ऐसे में यह जरूरी है कि हम रोबोटिक सिस्टम में अधिक सेंसिटिव टेक्टाइल सेंसर लगाएं जो फल की फसल काटने और परिवहन के दौरान फलों को लेकर दबाव, मैकेनिकल स्टिफनेस और कसाव जैसी जानकारियां दे.

शोध की विशिष्टताएं यह है कि सेंसर निर्माण के लिए नई कम लागत वाली प्रक्रिया का विकास किया गया है. यह उपकरण विभिन्न किस्मों के फलों के पकने का सटीक आकलन करेंगे. साथ ही यह कैपेसिटिव सेंसर बहुत सेंसिटिव है.

अनुसंधान का महत्व बताते हुए डॉ. अजय अग्रवाल, प्रोफेसर और प्रमुख, इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग, आईआईटी जोधपुर ने कहा, "हमने काफी सेंसिटिव टेक्टाइल प्रेसर सेंसर बनाया है और इसे रोबोटिक सिस्टम से जोड़ने की जरूरत है. इसकी मदद से महंगे फलों को चुनने (साटिर्ंग) के तरीकों में बड़े बदलाव आने की उम्मीद है. फलों की फसल काटने और परिवहन के दौरान उनके पकने का सटीक और विश्वसनीय अनुमान देने का काम यह सेंसर कम खर्च पर कर देगा. इस तरह फलों की गुणवत्ता और उनके पकने के आधार पर भारी मात्रा में फलों को चुनना (साटिर्ंग) आसान होगा. यह सिस्टम फल उद्योग के लिए बहुत लाभदायक होगा. इससे यह काम बेहतर होगा और बरबादी कम होगी. फलों का शेल्फ लाइफ बढ़ेगा और गुणवत्ता बढ़ने से फलों का निर्यात भी बढ़ेगा."

यह सेंसर चूंकि फलों का चुनाव उनकी परिपक्वता के अनुसार करता है इसलिए इसे रोबोटिक आर्म से जोड़ कर भारी मात्रा में फलों को उनकी परिपक्वता और गुणवत्ता के आधार पर चुनना आसान होगा. फल की फसल काटने या फिर परिवहन का काम, इस सेंसर से आसान हो जाएगा. यह सिस्टम सस्ता भी है इसलिए खास कर महंगे फलों को दूर-दूर तक भेजने में

Share Now

\