Vijayadashami 2019: अस्तित्व एवं आस्था के बीच मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम, वनवास काल में बिताए पलों की निशानियां आज भी हैं मौजूद!
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के संदर्भ में हमारे वेदों, पुराणों, रामकथाओं से संबंधित ग्रंथों वाल्मिकी रामायण एवं तुलसीदास कृत श्रीरामचरित मानस में बहुत कुछ उल्लेखित है. इन सभी पौराणिक पुस्तकों पर हिंदू समाज की अगाध आस्था है, लेकिन इनकी प्रमाणिकता तय करना इतना आसान नहीं है. विजयादशमी के अवसर पर हम वर्तमान की कुछ ऐसी ही निशानियों को चिह्नित कर रहे हैं.
Vijayadashami 2019: मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम (Shri Ram) के संदर्भ में हमारे वेदों, पुराणों, रामकथाओं से संबंधित ग्रंथों वाल्मिकी रामायण (Ramayan) एवं तुलसीदास कृत श्रीरामचरित मानस (RamCharit Manas) में बहुत कुछ उल्लेखित है. इन सभी पौराणिक पुस्तकों पर हिंदू समाज की अगाध आस्था है, लेकिन इनकी प्रमाणिकता तय करना इतना आसान नहीं है. यद्यपि राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तरों पर हुए शोधों, उनसे जुड़ी कुछ निशानियों, ग्रंथों में उल्लेखित स्थलों एवं उनसे जुड़े घटना क्रम श्रीराम के ऐतिहासिक वजूद की काफी हद तक तुष्टि भी करते हैं और पुष्टि भी. विजयादशमी (Vijayadashami) के अवसर पर हम वर्तमान की कुछ ऐसी ही निशानियों को चिह्नित कर रहे हैं, जिनका उल्लेख रामायण एवं श्रीरामचरित मानस में किया गया है.
तुलसीदास कृत श्रीरामचरित मानस में उल्लेखित एवं तमाम शोधों से निकले निष्कर्ष के अनुसार जब श्रीराम अपने पिताश्री महाराज दशरथ के आदेश पर 14 वर्ष के वनवास के लिए निकले, तब श्रीराम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अपनी वनवास-यात्रा अयोध्या से शुरू करते हुए प्रयागराज, चित्रकूट, नासिक से होते हुए रामेश्वरम एवं तदुपरांत श्रीलंका पहुंचे थे. लंका में रावण का संहार कर पुष्पक विमान से माता सीता, लक्ष्मण एवं हनुमान जी के साथ अयोध्या लौटे थे. माना जाता है कि रामायण में उल्लेखित 14 वर्ष के वनवासकाल में जितनी भी घटनाएं जहां-जहां घटित हुईं, उनमें से लगभग 250 घटनास्थलों की पहचान आज भी मौजूद हैं.
श्रीराम की जन्मस्थली अयोध्या
लगभग सभी पौराणिक ग्रंथों में श्रीराम का जन्मस्थान अयोध्या में बताया गया है. वर्तमान में वही अयोध्या उप्र के फैजाबाद जिले के निकट मौजूद है, अयोध्या को लगभग स्पर्श करती सरयू नदी आज भी मौजूद है, जिसके बारे में कहा जाता है कि श्रीराम ने अंतिम समय में इसी नदी में जल समाधि लेकर बैकुंठधाम पहुंच गये थे. कुछ पुरातत्व शास्त्रियों के अनुसार आज भी अयोध्या में श्रीराम के जन्म एवं शैशवकाल से जुड़े स्थान मौजूद हैं. वर्तमान में अयोध्या शहर भले ही खंडहर में बदल चुका है, लेकिन यहां के नागेश्वर मंदिर, देवकाली, राम की पैड़ी, कनक भवन, हनुमान गढी और बिड़ला मंदिर जैसे अति प्राचीन मंदिर श्रीराम की निशानियों को उजागर करती हैं. हालांकि श्रीराम जन्मस्थली को लेकर आज भी अदालत में विवाद चल रहा है. यह भी पढ़ें: Navratri 2019: जब श्रीराम और रावण ने विजय प्राप्त करने के लिए की मां चंडी की पूजा, किसे मिली जीत, जानें रोचक कथा
श्रीराम का ससुराल जनकपुर
काठमाण्डु (नेपाल) स्थित जनकपुर प्राचीनकाल में मिथिला प्रदेश की राजधानी हुआ करती थी. सीता जी के माता-पिता क्रमशः सुनयना और राजा जनक यहीं रहते थे. एक बार राजा जनक की भक्ति से प्रसन्न होकर शिवजी ने उन्हें अपना धनुष दे दिया. रामायण में उल्लेखित है कि यहीं पर धनुष स्वयंवर के माध्यम से श्रीराम-सीता का विवाह हुआ था. जहां पर धनुष स्वयंवर हुआ था, वह जगह आज जिला धनुषा के नाम से आज भी मौजूद है. इसके अलावा यहां भव्य जानकी मंदिर भी है.
तीर्थराज प्रयाग (इलाहाबाद)
उत्तर प्रदेश (भारत) का यह शहर तमाम पौराणिक ग्रंथों में तीर्थराज प्रयाग के नाम से उल्लेखित है. करीब साल 1500 में मुगल बादशाहों द्वारा इस शहर का नाम बदलकर इलाहाबाद कर दिया गया. गत वर्ष इसे पुनः प्रयागराज नाम दिया गया. कहते हैं कि अयोध्या से चित्रकूट पहुंचने से पूर्व श्रीराम प्रयागराज स्थित महर्षि भारद्वाज के आश्रम में ठहरे थे. उन्हीं से आशीर्वाद एवं दिशानिर्देशन प्राप्त कर श्रीराम, सीता एवं लक्ष्मण चित्रकूट के लिए रवाना हुए थे. चित्रकूट जाने से पहले उन्होंने संगम में स्नान कर महर्षि भारद्वाज जी का आशीर्वाद प्राप्त किया था. उस समय की ये सारी निशानियां आज भी मौजूद हैं.
चित्रकूटः जहां राम ने वनवास के 11 साल गुजारे थे
रामकथा में चित्रकूट की महत्वपूर्ण भूमिका है. उप्र और मप्र की सीमा पर बसा यह शहर आज भी अपनी प्राचीन पहचान के साथ मौजूद है. मान्यता है कि पिता दशरथ की मृत्यु की सूचना देने और श्रीराम को वापस अयोध्या ले जाने के लिए भरत एवं शत्रुघ्न यहीं आये थे. आज वहां पर भरतमिलाप मंदिर निर्मित है. मान्यता है कि श्रीराम ने सीता और लक्ष्मण के साथ वनवासकाल के 14 में से 11 वर्ष चित्रकूट में ही बिताए थे, इसीलिए गोस्वामी तुलसीदास ने इसी स्थान पर रहकर श्रीरामचरित मानस की रचना पूरी की थी. यहां करीब में ही मंदाकिनी नदी के तट पर रामघाट निर्मित है. कहते हैं श्रीराम यहीं पर नित्य स्नान करते थे. रामघाट से करीब 2 किमी दूर जानकी कुण्ड है. जनकपुत्री होने के नाते सीता जी को जानकी भी कहते हैं. कहा जाता है कि सीताजी इसी कुण्ड में स्नान करती थीं. अयोध्या से चित्रकूट आने के बाद श्रीराम जहां रुके हुए थे. आज वहां राम जानकी मंदिर स्थित है.
दण्डकारण्यः जहां लक्ष्मण ने शूर्पनखा के नाक-कान काटे
प्राचीनकाल का दण्डकारण्य वन वस्तुतः उड़ीसा, आंध्रप्रदेश एवं छतीसगढ़ की सीमाओं से लगा विशाल हरा-भरा क्षेत्र है. इस क्षेत्र में श्रीराम सीता और लक्ष्मण के निवास के चिह्न आज मौजूद हैं. कहते हैं कि इसी स्थान पर रावण की बहन शूर्पनखा ने श्रीराम एवं लक्ष्मण के साथ विवाह का प्रस्ताव रखा था. अंततः लक्ष्मण ने शूर्पनखा के नाक-कान काट दिये थे. इस घटना के बाद श्रीराम और रावण आमने सामने आये और अंतत युद्ध की नींव तैयार हुई.
पंचवटी स्थित सीता गुफा
दण्डकारण्य के करीब स्थित है पंचवटी, जिसे आज नासिक के नाम से जाना जाता है. मान्यता है कि इसी स्थान पर सीता ने मामा मारीच के मायावी रूप स्वर्ण मृग देखा था और श्रीराम से उसे लाने का अनुरोध किया था. यहीं से सीताजी का हरण रावण ने किया था. आज भी श्रीराम के निवास के प्रमाण एवं सीता गुफा यहां मौजूद हैं.
किष्किंधा पर्वत पर आज भी वानर राज्य के साक्ष्य दिखते हैं
किसी समय राजा बालि और छोटे भाई सुग्रीव अपने वानर राज्य के साथ यहीं निवास करते थे. सीता को खोजते हुए श्रीराम की भेंट हनुमान से इसी जगह पर हुई थी. यहीं पर श्रीराम ने बालि का संहार कर सुग्रीव को इस प्रदेश का राजा निर्वाचित किया था. वर्तमान में तुंगभद्रा नदी के तट पर स्थित हम्पी में आज भी वानर राज्य के स्पष्ट प्रमाण देखने को मिलते हैं.
हनुमान जी की बचपन की यादें ताजा करातीं ऋष्यमूक पहाड़ियां
वर्तमान में ऋष्यमूक पर्वत से लगभग सटी हुई हैं अंजनेय पहाड़ियां. मान्यता है कि हनुमान जी की मां अंजनी के नाम पर इन पहाड़ियों का नामकरण किया गया था. मान्यता है कि माता अंजनी ने यहीं पर श्रीराम भक्त हनुमान को जन्म दिया था, इन पहाड़ियों पर हनुमान जी के बचपन की काफी यादें जुड़ी हुई हैं. यह भी पढ़ें: Navratri 2019: रामलीला की पौराणिक कथा में हाईटेक तड़का, उड़ते हनुमान और जलती लंका को देख रोमांचित हो रहे हैं दर्शक
रामेश्वरम के रामसेतु का सत्यापन अमेरिकी शोधकर्ताओं ने किया
रामेश्वर में देवी-देवताओं के अनगिनत मंदिरों की श्रृंखलाएं हैं, जहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ देखी जा सकती है. लेकिन यहां का सबसे ज्यादा आकर्षण का केंद्र है रामसेतु. कहा जाता है कि दक्षिण भारत के इसी स्थान से श्रीराम ने लंका जाने के लिए समुद्र से प्रार्थना की थी. इसके पश्चात रामसेतु का निर्माण हुआ था. रामसेतु के वे चिह्न आज भी मौजूद हैं. हालांकि भारत के ही कुछ राजनीतिज्ञों ने रामसेतु को काल्पनिक मानते हुए इसे ध्वस्त करने की इच्छा जताई थी. लेकिन अमेरिकी भूगर्भ शास्त्रियों ने की एक टीम ने रामसेतु स्थल के पत्थरों और बालू के सैटेलाइट से मिले चित्रों का अध्ययन करने के बाद एक रिपोर्ट जारी की है. इस रिपोर्ट के अनुसार अमेरिकी वैज्ञानिकों ने रामसेतु के अस्तित्व के दावे को सच बताया. वैज्ञानिकों ने इसे एक सुपर ह्यूमन एचीवमेंट माना. पुरातत्व विभाग के अनुसार 1,750,000 वर्ष पूर्व श्रीलंका में सबसे पहले इंसानों के घर होने की बात सामने आई, रामसेतु उसी काल का है.
लंका स्थित अशोक वाटिका एवं तालीमन्नार
लंका नरेश रावण जब सीता जी का हरण करके उन्हें ले गया तब उसने उन्हें अशोकवाटिका में रखा था. वर्तमान के श्रीलंका में नुवरा एलिया शहर का हॉकगाला बॉटेनिकल गार्डन उसी अशोक वाटिका वाली जगह पर स्थित है. इसके साथ कहा जाता है कि श्रीराम जब समुद्र पारकर लंका पहुंचे थे तो उन्होंने जहां अपना खेमा (कैंप) बनाया था, वह स्थान आज तालीमन्नार के नाम से जाना जाता है. स्थानियों के अनुसार रावण से युद्ध करने से लेकर उसका संहार कर विभीषण को लंका नरेश बनाने तक श्रीराम यहीं पर रहे. यहीं पर सीता जी की अग्नि परीक्षा हुई. यह स्थान श्रीलंका के मन्नार आइसलैंड पर स्थित है. ये बातें प्रमाणित करती हैं कि रामायण में वर्णित घटनाएं महज कोरी कथाएं नहीं है.