Vat Purnima 2019: पत्नियां अपने पति की लंबी उम्र के लिए रखती हैं व्रत, जानें इस दिन का महत्त्व
इस दिन जहां-जहां पर वटवृक्ष होते हैं, वहां रंग-बिरंगे एवं परंपरागत परिधान पहनकर पतिव्रता स्त्रियां पूरी विधि विधान से पूजा-अर्चना करती दिखेंगी. विशेष बात यह है कि वटवृक्ष की पूजा महिलाएं बिना पुजारियों की मदद के करती हैं.
स्कंद पुराण एवं भविष्य पुराण के अनुसार वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा के दिन रखा जाता है. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस बार यह व्रत 16 जून 2019 को पड़ रहा है. महिलाओं के लिए इस तिथि का बहुत महत्व है, जो अपने पति के सौभाग्य एवं लंबी उम्र के लिए यह व्रत करती है. इस दिन सुहागन महिलाएं नए वस्त्र पहन कर सोलह श्रृंगार करके वटवृक्ष की पूजा-अर्चना करती हैं.
मान्यता है कि ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा के दिन वटवृक्ष की सामूहिक परिक्रमा करते हुए पूजा करने वाली सुहागन महिलाओं को ब्रह्मा-विष्णु-महेश का अखण्ड सौभाग्यवती होने का वरदान प्राप्त होता है.
वट पूर्णिमा की पूजा का विधान
इस दिन जहां-जहां पर वटवृक्ष होते हैं, वहां रंग-बिरंगे एवं परंपरागत परिधान पहनकर पतिव्रता स्त्रियां पूरी विधि विधान से पूजा-अर्चना करती दिखेंगी. विशेष बात यह है कि वटवृक्ष की पूजा महिलाएं बिना पुजारियों की मदद के करती हैं. ये महिलाएं इस सामूहिक पूजा-अर्चना में 24 पूरियों के साथ-साथ 24 किस्म के व्यंजन ओर इतने ही किस्म के फल एवं अऩाज भी चढाती हैं. इसके बाद वटवृक्ष के तने के चारों ओर धागा लपेटकर स्त्रियां अखण्ड सौभाग्यवती होने का वरदान मांगती हैं. कहीं-कहीं वटवृक्ष की पूजा के लिए सुहागन स्त्रियां समूह में तो कहीं अकेले ही गुलगुले, पूरी, खीर व हलुआ जैसे व्यंजन प्रसाद के रूप में बना कर लाती हैं. कुछ महिलाएं पंचामृत भी घर से ही बनाकर लाती हैं. यहां आकर वे वटवृक्ष के तनें के 3 अथवा 5 फेरे लगाकर सूत के धागे लपेटे जाते हैं. इसके पश्चात नये वस्त्र के साथ चंदन, अक्षत, हल्दी, रोली, फूलमाला, चूड़ी, बिंदी, मेहंदी आदि पेड़ के तने के नीचे सजाकर पति के लिए लंबी उम्र का आशीर्वाद प्राप्त करती हैं. सबसे अंत में जो प्रसाद आपने चढाया है, उसे ही वहां उपस्थित लोगों प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है.
वट पूर्णिमा व्रत का महात्म्य
वट पूर्णिमा का व्रत करने से महिलाओं को सौभाग्य की प्राप्ति होती है. इस व्रत को करने से संतान और पति की उम्र बढ़ती है. इस व्रत के प्रभाव से अनजाने में किए गए पाप भी खत्म् हो जाते हैं. ये व्रत ज्येष्ठ माह में पड़ता है. इसलिए इस व्रत का महत्व और ज्यादा है. हिन्दू धर्म में ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा का विशेष महत्त्व है. इस दिन गंगा स्नान कर पूजा करने से मनोकामना पूरी होती है इस दिन से ही लोग गंगा जल लेकर अमरनाथ यात्रा के लिये निकलते हैं।
क्यों की जाती है पूजा
वट पूर्णिमा व्रत की लोकप्रिय कथा के अनुसार सावित्री जो कि अश्वपति की कन्या थी. उसका विवाह सत्यवान के साथ हुआ था. शादी के बाद उसे पता चला कि उसका पति बहुत शीघ्र मृत्यु को वहन करेगा, लेकिन चूंकि तब तक सावित्री की शादी हो चुकी थी, उसने तय कर लिया कि अब वह अपने अल्पायु पति के साथ ही जीवन गुजारेगी, चाहे कुछ भी हो जाये. सत्यवान रोजाना जंगल से लकड़ियां काटकर लाता और बाद में उन्हें बेच कर पति-पत्नी का गुजारा करता था. एक दिन सावित्री ने देखा कि सत्यवान बहुत कमजोर महसूस कर रहे हैं. सावित्री के साधु की बात याद आ गयी. अब वह लगातार उसके साथ रहते हुए उस पर नजर रखती थी. एक दिन सत्यवान को लकड़ियां काटते समय चक्कर आ गया. वह पेड़ से उतरकर नीचे बैठ गया. तभी सावित्री को भैंसे पर सवार यमराज आते हुए दिखायी दिये. सावित्री ने यमराज से प्रार्थना की कि वे उसके पति की जान बख्श दें. यम ने कहा तुम्हारे भाग्य में पति का तुम्हारे साथ बस इतने ही दिनों का साथ था. अब तुम लौट जाओ, मगर सावित्री वापस नहीं लौटी. सावित्री के पतिव्रत धर्म से प्रसन्न होकर यमराज ने उसके नेत्रहीन सास-ससुर की आंखों की रोशनी वापस दिलवा दी. लेकिन इसके बाद भी सावित्री यमराज के पीछे-पीछे चलती रही. यमराज ने उसे कहा कि वह सत्यवान को जीवनदान देने के अलावा कोई एक वरदान और मांग कर वापस चली जाये. इस पर सावित्री ने पुत्रवती होने का वरदान मांगा. यमराज ने तथास्तु कहा. बाद में उन्हें ध्यान आया कि उन्होंने तो अप्रत्यक्ष रूप से उसे सौभाग्यवती का वरदान दे चुके हैं. लेकिन अब यमराज कुछ नहीं कर सकते थे, उन्होंने सत्यवान की जान सावित्री को वापस सौंपने के पश्चात अंतिम सांस ली.
नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को प्रचलित मान्यताओं के आधार पर सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है और यह लेखक की निजी राय है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं. इसके बारे में हर व्यक्ति की सोच और राय अलग-अलग हो सकती है.