Dr. Vikram Sarabhai's 49th Death Anniversary: भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रमों के जनक विक्रम अंबालाल साराभाई का आज 49वां पुण्यतिथि, जानें उनके जीवन से जुड़े रोचक तथ्य

मनुष्य और समाज की समस्याओं के समाधान के लिए हमें उन्नत प्रौद्योगिकी को लागू करने में किसी से पीछे नहीं रहना चाहिए. इससे ही राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के मध्य हमारी सार्थक भूमिका सुनिश्चित होगी. यह कथन भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक और प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. विक्रम साराभाई का है.

विक्रम अंबालाल साराभाई (Photo Credits: Wikipedia Commons)

Vikram Sarabhai Death Anniversary: मनुष्य और समाज की समस्याओं के समाधान के लिए हमें उन्नत प्रौद्योगिकी को लागू करने में किसी से पीछे नहीं रहना चाहिए. इससे ही राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के मध्य हमारी सार्थक भूमिका सुनिश्चित होगी. यह कथन भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक और प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. विक्रम साराभाई का है. आज डॉ. साराभाई की उनचासवीं पुण्यतिथि है. डॉ. विक्रम साराभाई (Vikram Sarabhai) को भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रमों का जनक कहा जाता है. दरअसल उन्‍होंने ही भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रमों को पहली उड़ान दी थी. यही कारण है कि उनकी स्मृति में तिरूवनंतपुरम में अंतरिक्ष अनुसंधान केन्द्र का नाम डॉ. विक्रम साराभाई अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र रखा गया. अहमदाबाद में जन्मे साराभाई, कैम्ब्रिज से की पढ़ाई गुजरात के अहमदाबाद में 12 अगस्त 1919 को जन्मे विक्रम साराभाई ने इंटरमीडिएट तक की शिक्षा गुजरात कॉलेज से ही पूरी की.

आगे के अध्ययन के लिए उन्होंने कैम्ब्रिज में प्रवेश लिया और वहां से साल 1940 में भौतिकी में ट्राइपोज की डिग्री प्राप्त की. द्वितीय विश्व युद्ध के आरंभ होते ही वे भारत लौट आए और बैंगलोर स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान में कार्य करने लगे. बैंगलोर में उन्होंने प्रख्यात वैज्ञानिक सर सी.वी. रमन के मार्गदर्शन में विकिरणों पर अनुसंधान कार्य किया. कॉस्मिक विकिरणों का काल वितरण विषय पर उनका पहला शोध आलेख भारतीय विज्ञान अकादमी की पत्रिका में प्रकाशित हुआ. वर्ष 1947 में कॉस्मिक विकिरणों पर शोध कार्य के लिए उन्हें कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय द्वारा विद्या वाचस्पति (PHD) की उपाधि प्रदान की गई. विक्रम साराभाई ने रखी इसरो की आधारशिला भारत में अंतरिक्ष कार्यक्रम को प्रारम्भ करने में विक्रम साराभाई अग्रणी रहे हैं.

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साराभाई द्वारा अंतर्राष्ट्रीय भू-भौतिकी वर्ष 1957-58 के लिए भारतीय कार्यक्रम एक अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान रहा. रूस द्वारा प्रथम अंतरिक्ष अभियान स्पूतनिक के प्रमोचन के बाद साराभाई ने भारत सरकार को अंतरिक्ष कार्यक्रम के महत्व से परिचित कराया, जिससे भारत ने भी अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम को आरंभ किया. इसके बाद, उनकी अध्यक्षता में अंतरिक्ष अनुसंधान हेतु भारतीय राष्ट्रीय समिति का गठन किया गया. 1966 में नासा के साथ डॉ.साराभाई के संवाद के परिणामस्वरूप, जुलाई 1975-जुलाई 1976 के दौरान उपग्रह अनुदेशात्मक दूरदर्शन परीक्षण (Satellite Instructional Television Test) का प्रमोचन किया गया, हालांकि इस समय तक डॉ. साराभाई का देहावसान हो गया था. डॉ. साराभाई ने भारतीय उपग्रहों के निर्माण और प्रक्षेपण के लिए परियोजना प्रारंभ की. परिणामस्वरूप, प्रथम भारतीय उपग्रह, आर्यभट्ट, रूसी कॉस्मोड्रोम से 1975 में कक्षा में स्थापित किया गया.

डॉ. साराभाई ने मई 1966 में परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष का पद संभाला. संस्थान निर्माता विक्रम साराभाई विक्रम साराभाई को एक संस्थान निर्माता के रूप में भी याद किया जाता है. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organization) की आधारशिला भी डॉ. साराभाई के द्वारा रखी गई. 11 नवंबर 1947 को मात्र 28 वर्ष की आयु में अहमदाबाद में उन्होंने भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला की स्थापना की. अहमदाबाद में भारतीय प्रबंध संस्थान की स्थापना में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान है. जीवन की अनेक समस्याओं के समाधान में विज्ञान की भूमिका पर उनके विश्वास की परिणति विक्रम साराभाई सामुदायिक विज्ञान केंद्र की स्थापना के रुप में हुई. यह केंद्र अहमदाबाद में स्थित है. विज्ञान से इतर सांस्कृतिक गतिविधियों में भी रुचि रखने वाले डॉ. साराभाई ने अपनी पत्नी के साथ मिलकर अहमदाबाद में दर्पण अकादमी की स्थापना की. यह पूर्णतः मंचन कलाओं को समर्पित है.

डॉ. साराभाई के प्रयासों से अहमदाबाद, कलकत्ता, कलपक्कम, हैदराबाद और जादुगुड़ा, बिहार में अनेक संस्थानों की स्थापना हुई, जिनमें स्पेस एप्लिकेशन सेंटर, फास्टर ब्रीडर टेस्ट रिएक्टर वेरिएबल एनर्जी साइक्लोट्रॉन प्रॉजेक्ट, इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड और यूरेनियम कार्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड मुख्य हैं. देश-विदेश के अनेक पुरस्कारों से हुए सम्मानित अंतरिक्ष जगत में डॉ. विक्रम साराभाई के महती योगदान को देखते हुए उन्हें वर्ष 1962 में शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार, वर्ष 1966 में पदम् भूषण और मरणोपरांत वर्ष 1972 में पदम् विभूषण से सम्मानित किया गया. वहीं, डॉ. साराभाई, वर्ष 1962 में भारतीय विज्ञान कांग्रेस के भौतिकी प्रभाग के अध्यक्ष रहे. इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र संघ के चौथे "आण्विक ऊर्जा के शांतिप्रिय उपयोग" सम्मेलन के उपाध्यक्ष भी रहे. महान वैज्ञानिक डॉ. विक्रम साराभाई का निधन 30 दिसम्बर 1971 को हुआ. वे विज्ञान के प्रायोगिक उपयोगों को आम आदमी तक पहुंचाना चाहते थे.

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