Swami Vivekananda Jayanti 2025 Quotes: स्वामी विवेकानंद जयंती पर प्रियजनों संग शेयर करें उनके ये 10 महान और प्रेरणादायी विचार
स्वामी विवेकानंद ने खुद अपनी मौत की भविष्यवाणी करते हुए कहा था कि वो 40 वर्ष की आयु तक भी जीवित नहीं रह पाएंगे. उनकी भविष्यवाणी के अनुसार, उनका निधन महज 39 साल की उम्र में 4 जुलाई 1902 को हो गया था. दुनिया भर में भारतीय संस्कृति और आध्यात्म की एक अमिट छाप छोड़ने वाले स्वामी विवेकानंद जी जयंती पर आप उनके इन 10 महान और प्रेरणादायी विचारों को प्रियजनों संग शेयर कर सकते हैं.
Swami Vivekananda Jayanti 2025 Quotes: हर साल 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद जी की जयंती (Swami Vivekananda Jayanti) मनाई जाती है, जिसे राष्ट्रीय युवा दिवस यानी नेशनल यूथ डे (National Youth Day) के तौर पर धूमधाम से सेलिब्रेट किया जाता है. स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda) का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता के एक साधारण परिवार में हुआ था, उनका असली नाम नरेंद्रनाथ दत्त था. उनके पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाईकोर्ट के वकील थे, जबकि मां भुवनेश्वरी देवी धार्मिक विचारों वाली एक घरेलू महिला थीं. स्वामी विवेकानंद बचपन से ही योगियो के स्वभाव वाले थे, इसलिए बचपन से ही उनका मन हमेशा ध्यान और अध्ययन में लगा रहता था. कहा जाता है कि जब स्वामी विवेकानंद जी का मन आध्यात्म की ओर झुकने लगा, तब उन्होंने 25 वर्ष की आयु में ही संन्यास ले लिया. घर-द्वार छोड़कर संन्यास धारण करने के बाद उनका नाम स्वामी विवेकानंद पड़ा.
युवावस्था में ही स्वामी विवेकानंद को दमा और शुगर जैसी बीमारियां हो गई थीं. उन्होंने खुद अपनी मौत की भविष्यवाणी करते हुए कहा था कि वो 40 वर्ष की आयु तक भी जीवित नहीं रह पाएंगे. उनकी भविष्यवाणी के अनुसार, उनका निधन महज 39 साल की उम्र में 4 जुलाई 1902 को हो गया था. दुनिया भर में भारतीय संस्कृति और आध्यात्म की एक अमिट छाप छोड़ने वाले स्वामी विवेकानंद जी जयंती पर आप उनके इन 10 महान और प्रेरणादायी विचारों को प्रियजनों संग शेयर कर सकते हैं.
ज्ञात हो कि रामकृष्ण परमहंस से स्वामी विवेकानंद की मुलाकात सन 1881 में कलकत्ता के दक्षिणेश्वर काली मंदिर में हुई थी और अधिकांश लोगों का ऐसा मानना है कि उन्हें स्वामी विवेकानंद नाम उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस ने दिया था, जबकि सच्चाई कुछ और ही है. कहा जाता है कि एक बार अमेरिका जाने के लिए स्वामी जी के पास पैसे नहीं थे, तब राजपूताना के खेतड़ी नरेश ने उनका सारा खर्च उठाया था.
इतना ही नहीं उन्होंने ही नरेंद्रनाथ दत्त को स्वामी विवेकानंद नाम दिया था, जिसका जिक्र फ्रांसिसी लेखक रोमां रोलां की किताब 'द लाइफ ऑफ विवेकानंद एंड द यूनिवर्सल गोस्पल' में मिलता है. कहा जाता है कि सन 1891 में शिकागो में आयोजित विश्वधर्म संसद में जाने के लिए उन्होंने खेतड़ी नरेश के कहने पर इस नाम को स्वीकार किया था.