Sharad Navratri Puja 2022 Day 5: मां स्कंदमाता को समर्पित है नवरात्रि का पांचवां दिन, क्या है इनकी पूजा का महात्म्य? जानें विधि, मंत्र एवं आरती
नवरात्रि के पांचवें दिन (30 सितंबर 2022) आदिशक्ति के पांचवे स्वरूप मां स्कंदमाता की पूजा का विधान है. स्कंदमाता का दिव्य स्वरूप मातृत्व स्नेह को दर्शाता है. देवी पुराण के अनुसार स्कंदमाता की विधि-विधान से पूजा करने से संतान स्वस्थ एवं उज्जवल भविष्य को प्राप्त करता है.
Sharadiya Navratri Puja 2022 Day 5: नवरात्रि (Navratri) के पांचवें दिन (30 सितंबर 2022) आदिशक्ति के पांचवे स्वरूप मां स्कंदमाता (Maa Skandmata) की पूजा का विधान है. स्कंदमाता का दिव्य स्वरूप मातृत्व स्नेह को दर्शाता है. देवी पुराण के अनुसार स्कंदमाता की विधि-विधान से पूजा करने से संतान स्वस्थ एवं उज्जवल भविष्य को प्राप्त करता है तथा जातक सारे सुख भोगकर जीवन के अंत में मोक्ष को प्राप्त करता है. आइये जानें देवी स्कंदमाता का स्वरूप, उनकी पूजा का महात्य, मंत्र, पूजा विधि, एवं आरती…
स्कंदमाता का स्वरूप
स्कंदमाता की स्वरूप बहुत मनमोहक है. कमल के फूल पर आसीन चार भुजाओं वाली देवी स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं. दो हाथों में कमल लिए है, एक में हाथों में शक्ति लिए सुपुत्र कार्तिकेय हैं और एक हाथ आशीर्वाद देने की मुद्रा में है, मां कमल में विराजमान है. स्कंद माता का प्रिय वाहन सिंह है. भगवान स्कंद अर्थात कार्तिकेय की माँ होने के कारण इन्हें स्कन्दमाता कहते हैं. भगवान स्कंद ‘कुमार कार्तिकेय’ नाम से भी जाने जाते हैं. पुराणों में इन्हें कुमार और शक्ति के रूप में बताया गया है.
स्कंदमाता का महात्म्य!
देवी स्कंदमाता की विधि-विधान से की गई पूजा अनुष्ठान से जातक की सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं. यहां तक कि मृत्युलोक में ही उसे परम शांति एवं सुख की अनुभूति होने लगती है. उसके मोक्ष का मार्ग सहज सुलभ हो जाता है. स्कंदमाता की उपासना से भगवान स्कंद (कार्तिकेय) की उपासना भी हो जाती है. यह विशेषता केवल स्कंदमाता को प्राप्त है, इसलिए साधक को स्कंदमाता की उपासना की विधि-विधान से पूजा-अनुष्ठान करनी चाहिए, चूंकि स्कंदमाता सूर्यमंडल की देवी हैं, इससे उपासक भी अलौकिक तेज एवं कांति से संपन्न हो जाता है. एक अलौकिक प्रभामंडल अदृश्य भाव से सदैव साधक के चारों ओर व्याप्त रहता है.
ऐसे करें देवी स्कंदमाता की पूजा-अर्चना
शरद नवरात्रि के पांचवे दिन भोर बेला में स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र पहनें और स्कंदमाता का ध्यान करते हुए उनकी सामर्थ्य तरीके से पूजा-अनुष्ठान का संकल्प लें. अब किसी स्वच्छ आसन पर बैठकर गणेश जी की पूजा-स्तुति करने के पश्चात माँ दुर्गा के सामने धूप-दीप प्रज्वलित करें. कलश की पूजा करें. देवी माँ को ताजा फूलों का हार पहनाएं एवं पुष्प अर्पित करें.
अब देवी माँ को सिंदूर, रोली, कुमकुम, अक्षत चढ़ायें. एक पान में सुपारी, इलायची, बताशा और लौंग चढायें. स्कंदमाता को प्रसाद में केला चढ़ाएं, क्योंकि केला उन्हें बहुत प्रिय है. जल अर्पित करें. इसके बाद स्कंद माता का निम्न मंत्र का जाप करें. या देवी सर्वभूतेषु मां स्कंदमाता रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ सिंहासनगता नित्यं पद्माञ्चित करद्वया। शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥ पूजा के अंत में स्कंद माता की आरती उतारें
स्कंदमाता की आरती
जय तेरी हो स्कंद माता। पांचवा नाम तुम्हारा आता।।
सब के मन की जानन हारी। जग जननी सब की महतारी।।
तेरी ज्योत जलाता रहूं मैं। हरदम तुम्हें ध्याता रहूं मैं।।
कई नामों से तुझे पुकारा। मुझे एक है तेरा सहारा।।
कही पहाड़ो पर हैं डेरा। कई शहरों में तेरा बसेरा।।
हर मंदिर में तेरे नजारे। गुण गाये तेरे भगत प्यारे।।
भगति अपनी मुझे दिला दो। शक्ति मेरी बिगड़ी बना दो।।
इंद्र आदी देवता मिल सारे। करे पुकार तुम्हारे द्वारे।।
दुष्ट दत्य जब चढ़ कर आएं। तुम ही खंडा हाथ उठाएं।।
दासो को सदा बचाने आई। ‘चमन’ की आस पुजाने आई।।