Shakambhari Navratri 2021: कौन हैं माता शाकंभरी और कब से शुरु हो रहा है शाकंभरी नवरात्रि, जानें पूजा विधि और पौराणिक कथा

देवी भागवतम् के अनुसार पौष मास के शुक्लपक्ष की अष्टमी से शाकंभरी नवरात्र प्रारंभ होता है, जो पौष मास की पूर्णिमा तक मनाया जाता है. पूर्णिमा के दिन माता शाकंभरी की जयंती मनाई जाती है. इस पर्व के दौरान तंत्र-मंत्र के साधक अपनी सिद्धि के लिए वनस्पति की देवी मां शाकंभरी की आराधना करते हैं. हिंदू धर्म में शाकम्भरी नवरात्रि का भी बहुत महत्व है.

देवी शाकम्भरी (Photo Credits: Facebook)

Shakambhari Navratri 2021: देवी भागवतम् के अनुसार पौष मास के शुक्लपक्ष की अष्टमी से शाकंभरी नवरात्र (Navratri) प्रारंभ होता है, जो पौष मास की पूर्णिमा तक मनाया जाता है. पूर्णिमा के दिन माता शाकंभरी की जयंती मनाई जाती है. इस पर्व के दौरान तंत्र-मंत्र के साधक अपनी सिद्धि के लिए वनस्पति की देवी मां शाकंभरी (Goddess Shakambhari) की आराधना करते हैं. हिंदू धर्म में शाकम्भरी नवरात्रि का भी बहुत महत्व है. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष यानी 2021 में शाकम्भरी नवरात्रि 21 जनवरी से 28 जनवरी तक मनाया जायेगा.

शाकम्भरी पूर्णिमा का महत्व

शाकंभरी नवरात्रि की पूर्णिमा का बहुत महत्व है. भारत में विभिन्न स्थानों पर, इस दिन को पौष पूर्णिमा के रूप में भी मनाया जाता है. इस्कॉन के अनुयायी या वैष्णव सम्प्रदाय इस दिन की शुरुआत पुष्य अभिषेक यात्रा से करते हैं, क्योंकि यह पवित्र माघ मास की शुरुआत भी है जो हिंदू कैलेंडर के अनुसार धार्मिक मितव्ययिता का महीना है. इस विशेष दिन पर पवित्र नदी अथवा सरोवरों में स्नान करने वालों की जिंदगी खुशियों से भर जाती है, माता लक्ष्मी की उन पर विशेष कृपा बरसती, देह त्यागने के पश्चात जातक को मोक्ष की भी प्राप्ति होती है.

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कौन हैं माता शाकम्भरी

दुर्गा के सभी अवतारों में से रक्तदंतिका, भीमा, भ्रामरी, शाकंभरी का देवी पुराण में विस्तार से वर्णन किया गया है. इन्हीं में एक हैं माँ शाकम्भरी. बहुत-सी जगहों पर इन्हें 'हरियाली का प्रतीक' भी कहा जाता है. इसीलिए पुराणों में सभी शाकाहारी खाद्य उत्पादों को माता शाकम्भरी के प्रसाद के रूप में उल्लेख किया गया है. माता शाकम्भरी को मां दुर्गा का अत्यंत विनम्र एवं दयालू अवतार माना जाता है

मां शाकम्भरी की पूजा-विधि

माता के श्रद्धालु पौष मास की अष्टमी से पूर्णिमा तक प्रातःकाल उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर मां शाकम्भरी का ध्यान करते हैं. कुछ लोग पूरे नौ दिन व्रत एवं पूजा-अर्चना करते हैं तो कुछ अष्टमी एवं पूर्णिमा के दिन यानी चढ़ती-उतरती व्रत रखते हैं और माता शाकम्भरी की पूरे विधि-विधान से पूजा करते हैं. पूजा में माता शाकम्भरी की प्रतिमा या तस्वीर पर गंगाजल का छिड़काव कर उनके चारों ओर ताजे फल और मौसमी सब्जियां चढ़ाते हैं.अगर संभव है तो माता शाकम्भरी के मंदिर में जाकर उनकी पूजा-अर्चना कर माता को पवित्र भोजन, जिसे प्रसादम् भी कहा जाता है का भोग लगाना चाहिए. पूजा के आखिर में माता शाकम्भरी की आरती उतारते हैं. इसके पश्चात सभी उपस्थितजनों को पवित्र भोजन वितरित किया जाता है. व्रत रखने वाले व्यक्ति को शाकम्भरी कथा अवश्य पढ़नी चाहिए.

क्या है शाकम्भरी कथा

देवी भागवतम के अनुसार, एक बार दुर्गम नाम का एक दानव, जिसने तमाम कष्ट और तपस्या के बाद भगवान को प्रसन्न कर चारों वेदों का अधिग्रहण कर लिया था. उसे यह भी वरदान प्राप्त था कि देवताओं के लिए की जानेवाली सभी पूजा और प्रार्थनाएं उसके पास पहुंचेगी. इतनी शक्तियां पाने के बाद उसने सभी को परेशान करना शुरू कर दिया. चारों ओर त्राहिमाम त्राहिमाम मच गया. परिणाम यह हुआ कि लंबे समय तक पृथ्वी पर बारिश नहीं हुई, जिससे गंभीर अकाल की स्थिति पैदा हो गई. सभी तपस्वी, साधु एवं ऋषि-मुनि हिमालय की गुफाओं में चले गए. उन्होनें देवी माँ से सहायता हासिल करने के लिए निरंतर यज्ञ और तप शुरु कर दिया.

उनके कष्टों को सुनकर, आदि देवी ने मां शाकम्भरी को अनाज, फल, जड़ी-बूटियाँ, दालें, सब्जियाँ, और साग-भाजी आदि वितरित करने का आदेश दिया. इस तरह देवी, शाकम्भरी देवी के नाम से प्रसिद्ध हुई. कहा जाता है कि लोगों की दुर्दशा देखकर माता शाकम्भरी की आंखों से 9 दिनों निरंतर आँसू बहते रहे, जो शीघ्र ही एक नदी में परिवर्तित हो गया. शीघ्र ही अकाल हमेशा के लिए लोप हो गया.

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