Savitri Bai Fule Jayanti 2021: देश की पहली महिला टीचर और प्रिंसिपल, शुरु किया पहला महिला स्कूल!

भारत में स्त्री-शिक्षा के प्रति लंबे समय तक निष्क्रियता रही है. महिलाओं की जिंदगी रसोईघर में खाना बनाने से लेकर वंश परंपरा को आगे बढ़ाने तक सीमित था. लेकिन इस पुरानी सोचवाले समाज की परंपरा को ध्वस्त किया, सावित्री बाई फुले ने, जिसने अशिक्षित होने के बावजूद शादी के बाद पति की प्रेरणा से शिक्षा हासिल किया

सावित्रीबाई फुले जयंती, (Photo Credits: Facebook)

भारत में स्त्री-शिक्षा के प्रति लंबे समय तक निष्क्रियता रही है. महिलाओं की जिंदगी रसोईघर में खाना बनाने से लेकर वंश परंपरा को आगे बढ़ाने तक सीमित था. लेकिन इस पुरानी सोचवाले समाज की परंपरा को ध्वस्त किया, सावित्री बाई फुले ने, जिसने अशिक्षित होने के बावजूद शादी के बाद पति की प्रेरणा से शिक्षा हासिल किया और महिलाओं को शिक्षित करने का मिशन चलाते हुए पहला स्कूल खोला. वे पहली महिला शिक्षिका ही नहीं, बल्कि महिला स्कूल की पहली प्रिंसिपल भी बनीं. आज जब देश सावित्री बाई फुले की 189 वीं जयंती मना रहा है, आइए जानें एक छोटे से गांव की औरत कैसे समाज के थपेड़ों को सहते-जूझते देश की पहली महिला शिक्षिका बनीं.

पति के साथ खेत में शिक्षा हासिल किया:

सावित्री बाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के सतारा जिले में एक माली जाति के किसान परिवार में हुआ था. चूंकि उन दिनों लड़कियों को शिक्षा देने के प्रचलन नहीं था. लिहाजा दिलचस्पी होने के बावजूद सावित्री बाई पढ़ाई शुरु नहीं कर सकीं. 9 साल उम्र में उनका विवाह 12 वर्षीय ज्योतिराव फुले से हो गया. सावित्री बाई ने पति से पढ़ाई करने की इजाजत मांगी, मगर ससुराल वालों ने सावित्री की शिक्षा का खुलकर विरोध किया. ज्योति राव भी चाहते थे कि सावित्री शिक्षा प्राप्त करे. उन्होंने एक युक्ति निकाली. सावित्री बाई जब उनके लिए खाना लेकर खेत में जातीं तो ज्योतिराव वहीं पर उन्हें दो घंटे पढ़ाते थे. प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद ज्योति राव ने उन्हें तमाम विरोधों के बावजूद सावित्री बाई को स्कूल में दाखिला दिलवाया. इसके पश्चात ज्योतिराव ने उन्हें दो साल का टीचर प्रशिक्षण कोर्स करवाया. सावित्री बाई को पढ़ते देख ज्योतिराव के पिता पर समाज के लोगों ने दबाव डालना शुरु किया. इस दबाव के कारण ज्योतिराव के पिता ने उनसे कहा कि तुम्हें पत्नी अथवा घर में से एक को चुनना है. ज्योतिराव घर छोड़ कर पत्नी के साथ अलग रहने लगे. इसके बाद सावित्री बाई ने गांव की स्त्रियों को इकट्ठा कर उन्हें शिक्षित करने की योजना बनाई. यह भी पढ़ें: Savitribai Phule Jayanti 2021: देश की पहली शिक्षिका, जिसने महिला शिक्षा, समाज-उत्थान एवं दलितों की सेवा करते हुए शहादत दे दी

पहला गर्ल्स स्कूल, पहली शिक्षिका, पहली महिला प्रिसिंपल:

साल 1848 में पति के सहयोग से सावित्री बाई ने पुणे जिले में एक बालिका विद्यालय शुरु किया. सावित्री बाई इस स्कूल में शिक्षिका भी थीं और प्रिंसिपल भी. पहला महिला स्कूल, पहली शिक्षिका और प्रिंसिपल बनने वाली भारत की पहली महिला थीं सावित्री बाई. लेकिन इस स्कूल को चलाने के लिए सावित्री बाई को बहुत पापड़ बेलने पड़े. जब वे स्कूल जातीं तो गांव के स्त्री शिक्षा का विरोध करने वाले उन पर गोबर, मिट्टी कभी-कभी पत्थर भी फेंकते थे. लेकिन सावित्री बाई कभी भी हताश या निराश नहीं हुईं. उन्होंने गांव की स्त्रियों को पढ़ाना जारी रखा.

सामाजिक कार्य बनी जानलेवा:

सावित्री बाई फुले और ज्योतिराव फुले ने समाजोत्थान के लिए स्त्री-शिक्षा के अलावा, कन्या भ्रूण हत्या के लिए आवाज उठाई. उन दिनों अकसर कुछ गरीब महिलाएं बच्चा पैदा करने के उन्हें कूड़े-कचरे में फेंक देती थीं. सावित्री बाई ऐसे लावारिस बच्चों की परवरिश के लिए बाल हत्या प्रतिबंधक गृह के नाम से केयर सेंटर शुरु किया. सावित्री बाई एवं ज्योतिराव की कोई संतान नहीं थी. उन्होंने एक विधवा महिला के बेटे यशवंत राव को गोद लेकर उसकी परवरिश की. 1897 में पुणे ने जब महामारी का रूप ले लिया, तब ज्योतिराव फुले और सावित्री फुले ने प्लेग ग्रस्त लोगों के इलाज के लिए एक क्लिनिक शुरु किया. यहां फुले दंपत्ति खुद मरीजों की सेवा करते थे. दूर-दराज गांवों में रहने वाले प्लेग ग्रस्त रोगियों को लेकर वह क्लिनिक आती थीं. इस सेवा-सत्कार में वह स्वयं भी प्लेग की चपेट में आ गईं. अंततः 10 मार्च 1897 को इस महान स्वयंसेवी का निधन हो गया.

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