Parivartini Ekadashi: पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, चार मास के लिए जब भगवान विष्णु (Lord Vishnu) गहन निद्रा में जाते हैं तो भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि को श्रीहरि क्षीरसागर में शयन करते हुए करवट बदलते हैं, इसलिए इस एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी (Parivartini Ekadashi) कहा जाता है. परिवर्तिनी एकादशी आज (9 सितंबर 2019) को मनाई जा रही है. इसे जलझूलनी एकादशी (Jaljhulani Ekadashi) और वामन एकादशी (Vaman Ekadashi) के नाम से भी जाना जाता है. कहा जाता है कि परिवर्तिनी एकादशी के दिन ही राजा बलि (Raja Bali) ने भगवान विष्णु के वामन अवतार (Vaman Avtar) की पूजा की थी और प्रसन्न होकर श्रीहरि के वामन अवतार ने राजा बलि की मनोकामनाएं पूर्ण की थी. इस दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा बहुत धूमधाम से की जाती है.
इस दिन भगवान विष्णु के निमित्त व्रत रखने और विधि-विधान से उनकी पूजा-अर्चना करने का विधान है. इस दिन सात प्रकार के अनाजों को मिट्टी के बर्तन में भरकर रखना चाहिए और अगले दिन बर्तन समेत उन अनाजों का दान करना चाहिए. चलिए जानते हैं परिवर्तनी एकादशी की व्रत कथा, पूजा विधि और शुभ मुहूर्त.
शुभ मुहूर्त-
एकादशी प्रारंभ- 8 सितंबर की रात 10.41 बजे से,
एकादशी समाप्त- 10 सितंबर मध्य रात्रि 12.31 बजे तक.
पारण का समय- 10 सितंबर सुबह 7.04 से 8.13 बजे तक.
पूजा विधि-
- सुबह उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान करें और नए वस्त्र धारण करें.
- पूजा स्थल की सफाई करके भगवान विष्णु-माता लक्ष्मी की प्रतिमा को चौकी पर स्थापित करें.
- फिर तुलसी दल, पीले फूल, फल, चंदन, धूप, घी का दीपक, अगरबत्ती इत्यादि से उनका पूजन करें.
- श्रीविष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करें, ओम् नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जप करें और व्रत की कथा पढ़ें.
- रात्रि जागरण कर भगवान का भजन-कीर्तन करें और अपनी गलतियों के लिए प्रभु से क्षमा मांगे.
- दूसरे दिन स्नान के बाद भगवान विष्णु का पूजन करें और ब्राह्मणों को भोजन कराकर उन्हें दक्षिणा दें.
- इसके बाद सभी को प्रसाद बांटे और फिर स्वयं प्रसाद ग्रहण करके अपने व्रत का पारण करें.
- परिवर्तिनी एकादशी के दिन अन्न का सेवन नहीं करना चाहिए, सिर्फ फलाहार करना चाहिए. यह भी पढ़ें: Devshayani Ekadashi 2019: मोक्षदायिनी होती है देवशयनी एकादशी, जानिए इसका महत्व और इससे जुड़ी पौराणिक कथा
व्रत कथा-
परिवर्तिनी या वामन एकादशी की कथा इस प्रकार है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, त्रेतायुग में बलि नाम का एक दैत्य राजा हुआ करता था. वह बहुत दयालु, दानी और सत्यवादी थी. राजा बलि अपने कठिन तप और यज्ञ के बल पर अधिक शक्तिशाली हो गया और उसने अपनी शक्ति से देवराज इंद्र की गद्दी छीन ली. इंद्रलोक पर राजा बलि ने अपना अधिकार जमा लिया, जिसके बाद देवताओं ने भगवान विष्णु से मदद के लिए गुहार लगाई. भगवान विष्णु ने देवताओं की मदद के लिए वामन अवतार लिया. वामन अवतार में भगवान विष्णु राजा बलि के पास पहुंचे और बलि से तीन पग भूमि मांगी.
दानी राजा बलि ने वामन को तीन पग भूमि लेने की आज्ञा दे दी. इसके बाद वामन भगवान ने पहले पग में भूमि, दूसरे पग में आकाश नाप लिया. जब तीसरे पग के लिए कुछ नहीं बचा तब राजा बलि ने अपना सिर उनके पैरों के नीचे रख दिया. इस तरह राजा बलि पर भी भगवान विष्णु का अधिकार हो गया. भगवान विष्णु राजा बलि को पाताल लोक ले गए, जहां राजा बलि ने भगवान विष्णु से पाताल लोक का पहरेदार बनने की विनती की. भाद्रपद महीने के शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि को ही वामन भगवान ने राजा बलि की मनोकामना पूर्ण की थी, इसलिए इस दिन को परिवर्तिनी एकादशी, जलझूलनी या वामन एकादशी के नाम से जाना जाता है.