Navratri 2018: महाअष्टमी का दिन है मां महागौरी को समर्पित, धन और ऐश्वर्य पाने के लिए ऐसे करें पूजन
महागौरी को 8 साल की उम्र में ही अपने पूर्व जन्म की घटना का आभास हो गया था और उन्होंने उसी उम्र से भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए तपस्या शुरू कर दी थी, आठ वर्ष की आयु में शिव के लिए तपस्या में लीन होने के कारण अष्टमी के दिन इनका पूजन किया जाता है.
नवरात्रि के आठवें दिन यानी महाअष्टमी को मां दुर्गा के आठवें स्वरूप मां महागौरी की पूजा की जाती है. मां महागौरी का रंग अत्यंत गोरा है इसलिए इन्हें महागौरी के नाम से जाना जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, अपनी कठिन तपस्या से मां महागौरी ने गौर वर्ण प्राप्त किया था, तभी से इन्हें उज्जवला स्वरूपा महागौरी, धन ऐश्वर्य प्रदायिनी, चैतन्यमयी त्रैलोक्य पूज्य मंगला, शारीरिक मानसिक और सांसारिक ताप का हरण करने वाली माता महागौरी का नाम दिया गया. जो लोग धन और ऐश्वर्य पाने की कामना रखते हैं उन्हें नवरात्रि की अष्टमी तिथि को मां महागौरी की उपासना करनी चाहिए.
शिवपुराण के अनुसार, महागौरी को 8 साल की उम्र में ही अपने पूर्व जन्म की घटना का आभास हो गया था और उन्होंने उसी उम्र से भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए तपस्या शुरू कर दी थी, आठ वर्ष की आयु में तपस्या में लीन होने के कारण अष्टमी के दिन इनका पूजन किया जाता है.
ऐसा है मां महागौरी का स्वरूप
गौर वर्ण होने के कारण ही मां महागौरी की उपमा शंख, चंद्र और कुंंद के फूल से दी गई है. ये सफेद रंग के वस्त्र धारण करती हैं, इसलिए इन्हें श्वेतांबरधरा भी कहा गया है. मां का वाहन वृषभ यानी बैल है इसलिए इन्हें वृषारूढ़ा भी कहा जाता है. इनकी चार भुजाएं हैं, इनके ऊपर वाला दाहिना हाथ अभय मुद्रा में है और नीचे वाले हाथ में मां ने त्रिशूल धारण किया है. ऊपर वाले बाएं हाथ में मां ने डमरू धारण किया है और नीचे वाला बायां हाथ वर मुद्रा में है. कहा जाता है कि भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए महागौरी ने कठोर तपस्या की थी, जिसके चलते इनका शरीर काला पड़ गया था, लेकिन तपस्या से प्रसन्न होकर शिव जी ने इनके शरीर को गंगा के पवित्र जल से धोकर कांतिमय और गौर वर्ण का बना दिया. यह भी पढ़ें: Navratri 2018: मां कालरात्रि के पूजन से होते हैं भक्तों को कई लाभ, सप्तमी तिथि की रात में ऐसे करें उपासना
इस विधि से करें पूजन
- महाअष्टमी तिथि को मां महागौरी के पूजन के लिए सबसे पहले पूजा के स्थान को गंगाजल या गौमूत्र से शुद्ध करें, फिर चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछाकर महागौरी और गणेश जी की प्रतिमा को स्थापित करें.
- तत्पश्चात चौकी पर तांबे या मिट्टी के कलश में जल भरकर उस पर नारियल रखकर कलश स्थापित करें. इसके बाद व्रत, पूजन का संंकल्प लें और वैदिक एंव सप्तशती मंत्रों द्वारा गणेश और महागौरी का पूजन करें.
- माता के आह्वान के बाद उनका पूजन आसन, आचमन, स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधित द्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य आदि से संपन्न करें.
- अगर आप अष्टमी तिथि पर महागौरी का पूजन करते हैं तो पूजा के बाद कन्याओं को भोजन कराने से धन और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है.
इस मंत्र से करें ध्यान
श्वेत वृषे समारूढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचि:।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा॥
नारियल का भोग लगाएं
मां महागौरी को नारियल अति प्रिय है इसलिए महाअष्टमी के दिन पूजन के दौरान इन्हें नारियल का भोग लगाना चाहिए. यह भी पढ़ें: Navratri 2018: कन्या पूजन के बाद ही संपन्न होता है नवरात्रि का व्रत, जानें कितनी होनी चाहिए उनकी उम्र?
धन-ऐश्वर्य का देती हैं वरदान
मां महागौरी देवी दुर्गा की आठवीं शक्ति हैं, जिनके तेज से संपूर्ण विश्व प्रकाशमान है. आठवें दिन इनकी आराधना करने से मन को शांति मिलती है, भक्तों के सभी कष्ट दूर होते हैं. इनकी उपासना से भक्त जीवन में पवित्र और अक्षय पुण्यों का अधिकारी बनता है. ये अपने भक्तों को धन और ऐश्वर्य का वरदान देती हैं.