Meerabai Jayanti 2020 Wishes in Hindi: भगवान श्रीकृष्ण (Lord Krishna) की भक्ति में अपना सर्वस्व समर्पित करने वाली मीरा बाई की आज (31 अक्टूबर) जयंती मनाई जा रही है. हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार, शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima) के दिन मीरा बाई की जयंती (Meerabai Jayanti) मनाई जाती है. मीरा बाई (Meera Bai) की वास्तविक जन्मतिथि का कोई ऐतिहासिक रिकॉर्ड या स्रोत नहीं है, लेकिन कई ग्रंथों और स्रोतों के अनुसार, यह कहा जाता है कि 16वीं शताब्दी में करीब 1498-1546 के बीच उनका जन्म हुआ था, जिसके मुताबिक इस साल मीरा बाई की 522वीं जयंती मनाई जा रही है. मीरा बाई जोधपुर के मेड़ता महाराज के छोटे भाई रतन सिंह की एकमात्र संतान थीं, जब वो दो साल की हुईं तो उनकी माता की मृत्यु हो गई, जिसके बाद उनके दादा राव दूदा की देखरेख में उनका पालन पोषण हुआ. मीरा बाई बचपन से ही कृष्ण भक्ति में रम गई थीं और बालपन से लेकर यौवन व मृत्यु तक उन्होंने श्रीकृष्ण को ही अपना सब कुछ माना.
भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में अपना पूरा जीवन बिताने वाली मीरा बाई को लेकर कहा जाता है कि उनकी मृत्यु भी भगवान कृष्ण की मूर्ति में समा कर हुई थी. कान्हा की परम भक्त मीरा बाई की जयंती पर आप इन शानदार विशेज, वॉट्सऐप स्टिकर्स, फेसबुक मैसेजेस, जीआईएफ इमेजेस, ग्रीटिंग्स, कोट्स, एसएमएस, वॉलपेपर्स के जरिए अपने प्रियजनों को शुभकामनाएं (Meerabai Jayanti Wishes) दे सकते हैं.
1- मीरा परम प्रेम ज्ञान,
राधा से तुलना हो जिनकी,
दोनों हैं एक समान,
श्याम रहते हैं हृदय में जिनके.
मीरा बाई जयंती की शुभकामनाएं
2- त्याग कर सारा राज-पाठ,
वैराग्य जीवन को अपनाया,
खोकर अपनी सुध-बुध सारी,
कृष्णभक्ति को रोम-रोम में बसाया.
मीरा बाई जयंती की शुभकामनाएं
3- मैं मीरा हूं मोहन की,
मैं जोगन हूं कान्हा की.
मीरा बाई जयंती की शुभकामनाएं
4- मैं नहीं राधा जिसे कृष्ण के नाम से जुड़ने का मान मिला,
मैं नहीं रुक्मिणी जिसे अर्द्धांगिनी का स्थान मिला,
मैं वही मीरा हूं जिसका प्रेम पागलपन कहलाया था,
भगवान से तुम्हें प्रेम कैसा यह सवाल दुनिया ने मुझसे पूछा था.
मीरा बाई जयंती की शुभकामनाएं
5- प्रभु की भक्ति में डूबकर,
मीरा खुद को भुल गईं,
प्रेम सीढ़ी लगाकर,
वे प्रभु संग झुम गईं.
मीरा बाई जयंती की शुभकामनाएं
कहा जाता है कि मीरा बाई श्रीकृष्ण को ही अपना पति मानती थीं, इसलिए वो किसी और से विवाह नहीं करना चाहती थीं, लेकिन मीरा बाई की इच्छा के विरुद्ध जाकर घरवालों ने उनका विवाह मेवाड़ के राजकुमार भोजराज के साथ कर दिया था. विवाह के कुछ समय बाद उनके पति की मृत्यु हो गई. पति की मृत्यु के बाद मीरा बाई की कृष्ण के प्रति भक्ति दिन-ब-दिन बढ़ती गई. वो मंदिर में जाकर घंटों तक श्रीकृष्ण की मूर्ति के सामने नाचती रहती थीं. इससे नाराज उनके परिजनों ने कई बार उन्हें विष देकर मारने की कोशिश भी की, लेकिन श्रीकृष्ण की कृपा से मीरा बाई को कुछ नहीं हुआ. मान्यता है कि जीवनभर कृष्ण भक्ति में लीन रहने वाली मीरा बाई की मृत्यु भी कान्हा की भक्ति करते हुए ही हुई थी. कहा जाता है कि साल 1547 में द्वारका में वो श्रीकृष्ण की भक्ति करते-करते उनकी मूर्ति में समा गई थीं.