Mahashivratri Vrat 2024: शिव पुराण के अनुसार शिव अनादि, आदि, मध्य और अनंत हैं. शिव आरंभ हैं, शिव ही अंत हैं. शिव सनातन धर्म का परम कारण और कार्य हैं. शिव धर्म की जड़ हैं तो धर्म भी शिव हैं. शिव ही धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष हैं. सारी सृष्टि शिव की ही शरण में है. इसलिए जाने-अनजाने शिव का अपमान करनेवाले को सृष्टि कभी क्षमा नहीं करती. महाशिवरात्रि अवसर पर बात करेंगे, शिवजी ने सृष्टि की रचना पूर्व किस तरह से भगवान विष्णु और ब्रह्माजी की उत्पत्ति की. यह भी पढ़े: Mahashivratri 2024 Wishes: महाशिवरात्रि की इन भक्तिमय हिंदी Quotes, WhatsApp Messages, Facebook Greetings के जरिए दें शुभकामनाएं
कौन हैं शिव:
शिव पुराण के अनुसार जिस समय सर्वत्र अंधेरा व्याप्त था, ना सूर्य का अस्तित्व था, ना चंद्रमा और तारों का और ना ही ग्रह नक्षत्रों का अता-पता था. यहां तक कि अग्नि, पृथ्वी, जल एवं वायु आदि कुछ भी नहीं था. आध्यात्मिक ग्रंथों के अनुसार उस समय वहां एकमात्र सत् ब्रह्म अर्थात शिव की ही सत्ता अस्तित्व में थी, जिसे अनादि और चिन्मय कहा जाता है, उन्हीं भगवान सदाशिव को वेद, पुराण और उपनिषद तथा संत महात्मा आदि ईश्वर तथा सर्वलोक महेश्वरम कहते हैं.
सृष्टि की रचना हेतु विष्णु का प्राकट्य:
एक बार शिव के मन में सृष्टि निर्माण की आवश्यकता महसूस हुई. इस विचार के साथ ही सर्वप्रथम शिवजी ने पराशक्ति अम्बिका को प्रकट कर उनसे कहा कि हमें सृष्टि की रचना के लिए किसी पुरुष का सृजन करना चाहिए. जिसे सृष्टि संचालन का भार सौंपकर हम आनंदपूर्वक विचरण कर सकें. यह निश्चय कर शक्ति सहित शिव ने अपने वाम अंग के दसवें भाग पर अमृत मल दिया. उसी समय एक दिव्य पुरुष की उत्पत्ति हुई. उसका सौंदर्य अतुलनीय था. इसमें सत्व गुण की प्रधानता थी. वह शांत और अथाह सागर की तरह गंभीर था. रेशमी पीतांबर में उसकी शोभा द्विगुणित हो रही थी. उनके हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म सुशोभित हो रहे थे.
दिव्य पुरुष ने शिव को प्रणाम करके कहा, -भगवन मेरा नाम निश्चित कीजिये और कार्य बताइये. शिव ने कहा, -वत्स व्यापक होने के कारण आपका नाम विष्णु होगा. सृष्टि का पालन करना आपका परम कर्तव्य होगा. आप तप शुरू करें. शिव का आदेश प्राप्त कर विष्णुजी कठोर तप में लीन हो गए. तपस्या के श्रम से उनके अंगों से जल की धाराएं फूट पड़ीं. जिससे सूना आकाश भर गया. अंततः उन्होंने थककर उसी जल में शयन किया. जल अर्थात नार शयन के कारण उनका नाम नारायण भी पड़ा.
सृष्टि रचना के लिए ब्रह्मा का प्राकट्य
शयन कर रहे नारायण की नाभि से एक कमल प्रकट हुआ. शिव ने अपने दाहिने अंग से चतुर्मुखी ब्रह्मा को प्रकट करके उन्हें कमल पर आसीन किया. महेश्वर की माया से मोहित ब्रह्माजी लंबे समय तक कमल नाल पर भ्रमण करते रहे, किंतु उन्हें अपने उत्पत्ति कर्ता का पता नहीं चला. आकाशवाणी द्वारा तप का आदेश मिलने पर ब्रह्माजी ने अपने जन्मदाता के दर्शनार्थ 12 वर्षों तक कठोर तपस्या करते रहे. तत्पश्चात विष्णु जी प्रकट हुए. शिव की लीला से विष्णुजी और ब्रह्माजी में श्रेष्ठता का विवाद छिड़ गया. सहसा उन दोनों के मध्य एक दिव्य स्तम्भ प्रकट हुआ. काफी प्रयास के बावजूद ब्रह्मा विष्णु उस अग्निपुंज के ओर-छोर का पता नहीं लगा सके. अंततः थककर भगवान विष्णु ने प्रार्थना किया, - महाप्रभु हम आपके स्वरूप को नहीं समझ सके, आप जो कोई भी हो, हमें दर्शन दीजिए.
भगवान विष्णु की स्तुति सुनकर महेश प्रकट हुए और कहा, सुरश्रेष्ठ मैं आप दोनों के तप और भक्ति से अत्यंत संतुष्ट हूं, ब्रह्माजी आप मेरे जगत की सृष्टि करें वत्स विष्णु, तुम इस चराचर जगत का पालन करो. इसके पश्चात शिवजी ने अपने ह्रदय भाग से रुद्र को प्रकट किया और उन्हें संहार का दायित्व सौंपकर वहीं अंतर्ध्यान हो गये.