Mahashivratri Shiv Chalisa and Aarti in Hindi: आज देशभर में भगवन भोले का पर्व महाशिवरात्रि मनाया जा रहा है. त्रिनेत्रधारी भगवान शिव (Lord Shiva) को देवों के देव महादेव (Mahadev) कहा जाता है. त्रिदेवों में भगवान शिव ही एक ऐसे देवता हैं जो भक्तों की थोड़ी सी भक्ति से भी प्रसन्न हो जाते हैं और उनकी झोली खुशियों से भर देते हैं. वैसे तो भगवान शिव को सोमवार, त्रयोदशी और चतुर्दथी तिथि अत्यंत प्रिय है, लेकिन फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि का हिंदू धर्म में विशेष महत्व बताया जाता है, जिसे महाशिवरात्रि (Mahashivratri) के तौर पर मनाया जाता है. महाशिवरात्रि यानी भगवान शिव की महान रात्रि, जिसका बहुत महत्व है. महाशिवरात्रि के दिन व्रत रखकर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने से उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है. उन्हें प्रसन्न करने के लिए महाशिवरात्रि के अवसर को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है, इसलिए इस दिन तमाम शिव मंदिरों में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है.
महाशिवरात्रि पर तमाम शिव भक्त जल, गंगाजल, दूध, बेलपत्र, भांग, धतूरा, पुष्प, चीनी, शहद, नारियल पानी, गन्ने का रस, भस्म इत्यादि से शिवलिंग का अभिषेक करते हैं. इसके अलावा इस दिन भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए शिव चालीसा का पाठ किया जाता है और उनकी आरती की जाती है. हम भी महाशिवरात्रि पर खास आपके लिए लेकर आए हैं शिव चालीसा और शिव आरती, जिससे आप भगवान शिव को प्रसन्न कर करके उनका आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं. यह भी पढ़ें: Mahashivratri 2021 Wishes & Images: शिवभक्तों कों दे महाशिवरात्रि की बधाई! भेजें ये आकर्षक WhatsApp Stickers, Facebook Greetings, GIFs और Wallpapers
शिव चालीसा का पाठ
।।दोहा।।
श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत संतन प्रतिपाला॥
भाल चंद्रमा सोहत नीके। कानन कुंडल नागफनी के॥
अंग गौर सि गंग बहाए। मुण्डमाल तन छार लगाए॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देख नाग मुनि मोहे॥
मैना मातु की हवे दुलारी। वाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
नन्दि गणेश सोहै तहं कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥
देवन जबहिं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महं मारि गिरायउ॥
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी॥
दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
वेद नाम महिमा तव गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥
प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला। जरे सुरासुर भए विहाला॥
कीन्ह दया तहं करी सहाई। नीलकंठ तब नाम कहाई॥
पूजन रामचंद्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भए प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
जय जय जय अनंत अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। यहि अवसर मोहि आन उबारो॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट से मोहि आन उबारो॥
मातु पिता भ्राता सब कोई। संकट में पूछत नहिं कोई॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु अब संकट भारी॥
धन निर्धन को देत सदाहीं। जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥
अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। नारद शारद शीश नवावैं॥
नमो नमो जय नमो शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पार होत है शम्भु सहाई॥
ॠनिया जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥
पुत्र हीन कर इच्छा कोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥
पंडित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे ॥
त्रयोदशी व्रत करे हमेशा। तन नहीं ताके रहे कलेशा॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्तवास शिवपुर में पावे॥
कहे अयोध्या आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥
॥दोहा॥
नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥
मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान।
अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥
भगवान शिव की आरती
जय शिव ओंकारा, ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव…॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय शिव…॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव…॥
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी ।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥ ॐ जय शिव…॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव…॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥ ॐ जय शिव…॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ जय शिव…॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ जय शिव…॥
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ जय शिव…॥
महाशिवरात्रि से जुड़ी प्रचलित मान्यताओं के अनुसार, इसी रात्रि को भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था, इसलिए इस दिन शिव-पार्वती की पूजा करने से भक्तों को उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है. खासकर महाशिवरात्रि पर विधिवत पूजन से शिव-पार्वती प्रसन्न होते हैं और भक्तों की झोली खुशियों से भर देते हैं. ऐसे में इस खास दिन भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए शिव चालीसा और शिव आरती से भगवान शिव का पूजन जरूर करें.