Mahalakshmi Vrat 2020: कौन हैं गजलक्ष्मी और क्या है उनका महात्म्य? इस विधि से पूजा करने पर दूर होंगे सारे कष्ट, मिलेगा माता लक्ष्मी का आशीर्वाद
श्राद्ध पखवारे में कुछ जगहों पर केवल पितरों की पूजा का प्रचलन है. इन दिनों मंदिरों अथवा घरों में किसी भी देवी-देवता का पूजा निषेध माना जाता है. लेकिन हैरानी की बात यह है कि श्राद्धपक्ष के आठवें दिन यानी गजलक्ष्मी की भव्य पूजा-अर्चना की जाती है. मान्यता है कि विधि विधान से गजलक्ष्मी की पूजा व्रत करने से माता सारे कष्ट हर लेती हैं.
Mahalakshmi Vrat 2020: सनातन धर्म में विभिन्न पर्वों को लेकर तमाम तरह की मान्यताएं प्रचलित हैं. ऐसी ही एक मान्यता के अनुसार श्राद्ध पखवारे (Shradh Paksha) में कुछ जगहों पर केवल पितरों (Ancestors) की पूजा का प्रचलन है. इन दिनों मंदिरों अथवा घरों में किसी भी देवी-देवता का पूजा निषेध माना जाता है. लेकिन हैरानी की बात यह है कि श्राद्धपक्ष के आठवें दिन यानी गजलक्ष्मी (Gajalakshmi) की भव्य पूजा-अर्चना की जाती है. मान्यता है कि विधि विधान से गजलक्ष्मी की पूजा व्रत करने से माता सारे कष्ट हर लेती हैं.
कौन हैं गजलक्ष्मी?
पौराणिक ग्रंथों में माता लक्ष्मी के कई रूपों का वर्णन है. एक लक्ष्मी वह हैं, जिनका उद्भव समुद्र-मंथन से हुआ था. दूसरी महर्षि भृगु की पुत्री लक्ष्मी हैं, जो दक्षिण भारत में श्रीदेवी के नाम से भी जानी जाती हैं. पुराणों के अनुसार महर्षि भृगु की बेटी लक्ष्मी ही अष्टलक्ष्मी हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि उनके आठ रूप हैं.
1- धनलक्ष्मीः धनलक्ष्मी के बारे में कहा जाता है कि एक बार श्रीहरि ने धन के देवता कुबेर से धन उधार लिया था, जिसे वह समय पर वापस नहीं कर सके, तब धनलक्ष्मी ने विष्णुजी को कर्जमुक्त करवाया था.
2- आदिलक्ष्मीः आदिलक्ष्मी को ही महालक्ष्मी भी कहते हैं, जो महर्षि भृगु की पुत्री हैं.
3- धान्यलक्ष्मी: धान्य का आशय है अनाज यानी चावल, जो इन्हें खुश कर देता है, उसके घर को यह लक्ष्मी धान्य से भर देती हैं.
4- संतानलक्ष्मी: जो देवी बच्चों एवं अपने भक्तों को दीर्घायु का आशीर्वाद देती हैं, उन्हें संतानलक्ष्मी कहते हैं. संतानलक्ष्मी की प्रतिकृति में एक बच्चे को गोद में लिए दो घड़े, एक तलवार और एक ढाल पकड़े दर्शाया गया है.
5- वीरलक्ष्मी: वीरलक्ष्मी जीवन संघर्षों पर विजय पाने एवं युद्ध में शौर्य दिखाने के रूप में पहचानी जाती हैं.
6- जयालक्ष्मी: जयालक्ष्मी का प्रतीक है किसी भी युद्ध में जीत हासिल करना. जयालक्ष्मी लाल साड़ी पहने, कमल पर विराजमान एवं आठ तरह के हथियार धारण किए हुए दर्शायी जाती हैं.
7- विद्यालक्ष्मी: शिक्षा और ज्ञान का प्रतीक मानी जाती हैं विद्यालक्ष्मी. देवी का यह रूप हमें ज्ञान, कला और विज्ञान का दर्शन कराती है. सफेद साड़ी पहनें इन्हें कमल पर विराजमान दर्शाया जाता है. इनके दोनों हाथों में कमल दिखाई देता है.
8- गजलक्ष्मी: पशु धन देनेवाली लक्ष्मी को गजलक्ष्मी कहते हैं. हिंदू पौराणिक पुस्तकों में हाथी को शाही पशु माना जाता है. मान्यता है कि एक बार गजलक्ष्मी ने इंद्र की गहरे सागर में खोये हुए धन को हासिल कराने में मदद की थी. गजलक्ष्मी का वाहन सफेद हाथी है.
पूजा का शुभ मुहूर्त
10 सितंबर प्रातः 11.54 बजे से दोपहर 12.43 बजे तक यह भी पढ़ें: Mahalakshmi Vrat 2020: महालक्ष्मी व्रत आज से शुरू, देवी लक्ष्मी की लगातार 16 दिनों तक की जाएगी पूजा-अर्चना, जानें पूजा विधि और इसका महत्व
ऐसे करें व्रत एवं पूजन
शाम के समय लक्ष्मीजी के पूजन स्थल को गंगा जल से साफ करें तथा रंगोली बनाएं. अब एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर, इस पर जल से भरा कलश रखें. लक्ष्मीजी के साथ एक हाथी की मूर्ति भी अवश्य रखें. पूजा में कोई सोने की वस्तु भी रखें. विधि-विधान से पूजा के बाद माता महालक्ष्मी की कथा पढ़ें और फूल फल मिठाई और पंच मेवे चढ़ाएं. इसके बाद सामूहिक रूप से लक्ष्मीजी की आरती गाएं और मां गजलक्ष्मी से आशीर्वाद मांगे. पूजा-अर्चना के पश्चात व्रती किसी ब्राह्मण सुहागन को सोना,कलश, इत्र, जरकन, आटा, शक्कर और घी भेंट करें, तथा किसी गरीब कुंवारी कन्या को नारियल, मिश्री, मखाना तथा चांदी का हाथी भेंट करें तो जीवन के सारे आर्थिक कष्ट तो दूर होंगे, साथ ही महालक्ष्मी की विशेष कृपा बरसेगी.
पौराणिक कथा
महाभारत काल में एक बार महालक्ष्मी के पर्व पर हस्तिनापुर में गांधारी ने नगर की सभी स्त्रियों को पूजा में आमंत्रित किया, किंतु कुन्ती को जानबूझ कर नहीं बुलाया गया. गांधारी के सौ पुत्रों में से एक ने विशालकाय हाथी बनाया, उसे सजाकर महल के बीचो बीच स्थापित कर दिया. सभी स्त्रियो ने विधिवत तरीके से पूजा आरंभ किया. गांधारी द्वारा पूजा में आमंत्रित नहीं किये जाने से कुन्ती बहुत उदास थी. पांडवों द्वारा उदासी का कारण पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि वे किसकी पूजा करें? अर्जुन ने कुंती को आश्वासन दिया कि माँ, तुम पूजा की तैयारी करो, मैं तुम्हारे लिए ऐसा हाथी लाऊंगा कि किसी ने देखा भी नहीं होगा.
अर्जुन ने इन्द्र के पास जाकर कहा कि मेरी माँ हाथी की पूजा करना चाहती है, मुझे आपका ऐरावत चाहिए. इंद्र ने तुरंत एरावत को अर्जुन को सौंप दिया. थोड़ी देर में यह बात फैल गयी कि कुन्ती तो इंद्र के एरावत हाथी की पूजा कर रही है. बस देखते ही देखते गांधारी के यहां उपस्थित सभी महिलाएं कुन्ती के महल की ओर दौड पड़ीं और पूरी आस्था के साथ सभी ने एरावत हाथी की पूजा की. मान्यता है कि महाभारत काल से ही गजलक्ष्मी व्रत की परंपरा चली आ रही है.