Lal Bahadur Shastri Jayanti 2019: भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की 115वीं जयंती, जानिए सादगी भरा जीवन जीने वाले इस महान व्यक्तित्व की असाधारण कहानी
जय जवान, जय किसान का नारा देने वाले भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की जयंती 2 अक्टूबर को मनाई जाती है. इस साल लाल बहादुर शास्त्री की 115वीं जयंती मनाई जा रही है. सादगी भरा जीवन जीने वाले लाल बहादुर शास्त्री जितने साधारण नजर आते थे, उनका व्यक्तित्व उतना ही असाधारण रहा है.
Lal Bahadur Shastri Birth Anniversary 2019: जय जवान, जय किसान का नारा देने वाले भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की जयंती (Lal Bahadur Shastri) 2 अक्टूबर को मनाई जाती है. इस साल लाल बहादुर शास्त्री की 115वीं जयंती (Lal Bahadur Shahtri 115th Birth Anniversary) मनाई जा रही है. सादगी भरा जीवन जीने वाले लाल बहादुर शास्त्री जितने साधारण नजर आते थे, उनका व्यक्तित्व उतना ही असाधारण रहा है. 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय स्थित शारदा प्रसाद और रामदुलारी देवी के घर जन्मे शास्त्री जी का भारत की आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण योगदान रहा है. उन्होंने 1921 के असहयोग आंदोलन, 1930 की दांडी यात्रा और 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
एक गरीब परिवार में जन्में शास्त्री जी का जीवन संघर्षों से भरा हुआ था, लेकिन उन्होंने हमेशा संघर्षों का डटकर सामना किया और सबसे बड़े लोकतंत्र का कुशल नेतृत्व कर दुनिया के सामने एक अनोखी मिसाल पेश की. लाल बहादुर शास्त्री की जयंती के इस खास मौके पर चलिए जानते हैं सादगी भरा जीवन जीने वाले इस महान शख्सियत की असाधारण कहानी.
नंगे पांव कई मील चलकर जाते थे स्कूल
पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जब डेढ़ साल के थे, तब उनके पिता का निधन हो गया था. पिता के निधन के बाद उन्हें चाचा के साथ रहने के लिए भेज दिया गया, ताकि वे उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकें. स्कूल जाने के लिए वे कई मील की दूरी नंगे पांव चलकर तय किया करते थे. यहां तक कि भीषण गर्मी के मौसम में जब सड़कें अधिक तपती थीं, तब भी वे नंगे पांव ही विद्यालय जाते थे.
ऐसे जुड़ा उनके नाम के साथ शास्त्री
लाल बहादुर काशी विद्यापीठ में शामिल हुए और उन्हें विद्यापीठ की ओर से स्तानक की जो डिग्री दी गई उसका नाम 'शास्त्री' था. इस डिग्री को प्राप्त करने के बाद शास्त्री उनके नाम के साथ जुड़ गया और लाल बहादुर बन गए लाल बहादुर शास्त्री.
7 साल तक रहे ब्रिटिश जेल में
लाल बहादुर शास्त्री की उम्र जब 11 साल थी, तभी उन्होंने ठान लिया कि उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर देश के लिए कुछ करना है. इसी इच्छा के साथ वे महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए. इस आंदोलन में हिस्सा लेने के चलते उन्हें करीब 7 साल तक ब्रिटिश जेलों में रहना पड़ा था.
हफ्ते में एक दिन व्रत रखने की अपील
साल 1964 में जब लाल बहादुर शास्त्री देश के दूसरे प्रधानमंत्री बनें तो उनके शासनकाल के दौरान साल 1965 में भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ. उस समय देश में भयंकर सूखा पड़ा और खाने की चीजों का निर्यात किया जाने लगा. इस संकट की स्थिति में उन्होंने देशवासियों से हफ्ते में एक दिन का उपवास रखने की अपील की. उनकी अपील के बाद पूरा देश हफ्ते में एक दिन व्रत रखने लगा था.
जय जवान जय किसान का दिया नारा
भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्र के लिए हमेशा निस्वार्थ भावना से काम करते रहे. उन्होंने कृषि उत्पादन में आत्मनिर्भरता के लिए देशवासियों को जय जवान जय किसान का नारा दिया था. उन्होंने केंद्रीय मंत्रिमंडल के कई विभागों का प्रभार संभाला. वे रेल मंत्री, परिवहन एवं संचार मंत्री, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री और गृह मंत्री भी रह चुके हैं. यह भी पढ़ें: लाल बहादुर शास्त्री की मौत का सच बताएगी फिल्म 'द ताशकंद फाइल्स', ट्रेलर हुआ रिलीज
मेहनत को मानते थे प्रार्थना समान
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की तरह उच्च विचार रखने वाले लाल बहादुर शास्त्री भारतीय संस्कृति की श्रेष्ठ पहचान हैं. उन्होंने एक बार कहा था कि मेहनत प्रार्थना के समान है. इसके साथ ही उन्होंने कहा था कि जो शासन करते हैं उन्हें देखना चाहिए कि लोग प्रशासन पर किस तरह की प्रतिक्रिया करते हैं, क्योंकि लोकतंत्र में अंतत: जनता ही मुखिया होती है.
ताशकंद में ली थी अंतिम सांस
लाल बहादुर शास्त्री ने 11 जनवरी 1966 को ताशकंद में अंतिम सांस ली थी. उनकी मौत आज भी एक रहस्य बनी हुई है, जिससे पर्दा नहीं उठ पाया है. दरअसल, 10 जनवरी 1966 को ताशकंद (Tashkent) में पाकिस्तान के साथ शांति समझौते पर करार करने के महज 12 घंटे बाद ही अचानक उनका निधन हो गया. गौरतलब है कि शास्त्री जी के निधन को लेकर कई तरह के सवाल उठते हैं कि आखिर सरकार की ओर से उनकी मौत से जुड़े दस्तावेज को सार्वजनिक क्यों नहीं किया गया.