Krishna Janmashtami 2020: कृष्ण जन्माष्टमी का है हिंदू धर्म में खास महत्व, जानें शुभ मुहूर्त और पूजा विधि
शास्त्रों में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के व्रत को सबसे प्रमुख व्रत कहा जाता है, इसीलिए इस दिन व्रत एवं पूजन का विशेष महत्व है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से साल में होने वाले कई अन्य व्रतों का फल भी मिल जाता है. भगवान विष्णु के आठवें अवतार कहे जाने वाले कृष्ण के दर्शन मात्र से ही मनुष्य के सभी दुःख दूर हो जाते हैं.
Krishna Janmashtami 2020: हिंदू धर्म पुराणों में उल्लेखित है कि लगभग 5 हजार वर्ष पूर्व द्वापर युग में भाद्रपद की अष्टमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण (Lord Krishna) का जन्म मथुरा (Mathura) के कारागार में मध्य रात्रि को हुआ था. इस दिन को मथुरा में ही नहीं बल्कि संपूर्ण देश-दुनिया में बड़े भव्य तरीके से मनाया जाता है. इस दिन वृंदावन में श्रीकृष्ण (Shri Krishna) की जन्मस्थली को रंग-बिरंगी रोशनी एवं फूलों से सजाया जाता है. मध्यरात्रि को 12 बजे श्रीकृष्ण के जन्म के पश्चात मंदिरों में धार्मिक भजन एवं कीर्तन एवं कृष्ण लीलाओं आदि के कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं. लेकिन इस वर्ष कोविड-19 की महामारी (COVID-19 Pandemic) के कारण किसी भी प्रकार के सार्वजनिक उत्सव नहीं किये जायेंगे.
जन्माष्टमी का महत्व
शास्त्रों में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के व्रत को सबसे प्रमुख व्रत कहा जाता है, इसीलिए इस दिन व्रत एवं पूजन का विशेष महत्व है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से साल में होने वाले कई अन्य व्रतों का फल भी मिल जाता है. भगवान विष्णु के आठवें अवतार कहे जाने वाले कृष्ण के दर्शन मात्र से ही मनुष्य के सभी दुःख दूर हो जाते हैं. इस दिन श्रीकृष्ण भक्त सच्ची श्रद्धा से इस व्रत का पालन करते है, और विधिवत पूजा-अनुष्ठान करते हैं तो उसे महापुण्य की प्राप्ति होती है. जन्माष्टमी का व्रत संतान प्राप्ति, सुख-समृद्धि, वंश वृद्धि, दीर्घायु और पितृ दोष आदि से मुक्ति के लिए भी एक वरदान समान है. जिन जातकों का चंद्रमा कमजोर हो, वे भी जन्माष्टमी पर विशेष पूजा कर के लाभ पा सकते हैं. यह भी पढ़ें: Janmashtami 2020 Date: कब मनाई जायेगी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी? जानें इस संदर्भ में ज्योतिषि एवं भौगोलिक गणना क्या कहती है?
जन्माष्टमी 2020 पूजा का शुभ मुहूर्त
निशीथ काल पूजा मुहूर्तः रात्रि 12.04 बजे से 12.47 बजे तक (12 अगस्त)
जन्माष्टमी पारण मुहूर्तः सुबह 05.48 बजे के बाद (13 अगस्त)
क्या है पूजा-विधान
सूर्योदय से पूर्व स्नान-ध्यान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र पहनकर व्रत का संकल्प लें. पूरे दिन व्रत रखते हुए सायंकाल के समय घर के मंदिर को फूलों से सजाएं. अगर घर में बालकृष्ण की प्रतिमा है तो उन्हें पंचामृत से स्नान कराकर फैंसी वस्त्र एवं आभूषणों से श्रृंगारित करें. अब बालकृष्ण के सामने धूप-दीप प्रज्जवलित करने के बाद धूप, पुष्प, तुलसी दल अर्पित करते हुए पंजीरी और मक्खन का भोग चढ़ाएं. मध्यरात्रि में 12 बजे बालकृष्ण का जन्म होने के बाद उन्हें झूले में झुलाते हुए 'ओम नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का जाप करें. बहुत सी जगहों पर महिलाएं सोहर एवं लोकगीत गाकर श्रीकृष्ण का जन्म मनाती हैं. अगले दिन प्रातःकाल स्नान-दान करने के पश्चात श्रीकृष्ण को 56 भोग अथवा स्वादिष्ट व्यंजन चढ़ाएं और फिर व्रत का पारण करें.