Kawad Yatra 2023: कब शुरू हो रही है कांवड़ यात्रा? कितने तरह की होती है यह यात्रा? जानें इसके नियम?

भगवान शिव की पूजा-अर्चना के लिए सावन (श्रावण) मास सर्वोत्तम एवं अपार पुण्यदायी माना जाता है. कुछ शिव भक्त पूरे सावन माह व्रत रखते हैं, कुछ सावन के सोमवार को व्रत एवं पूजा करते हैं. भारी तादाद में शिव भक्त शिवजी को प्रसन्न करने के लिए कांवड़ यात्रा भी करते हैं.

Kawad Yatra | Photo: PTI

भगवान शिव की पूजा-अर्चना के लिए सावन (श्रावण) मास सर्वोत्तम एवं अपार पुण्यदायी माना जाता है. कुछ शिव भक्त पूरे सावन माह व्रत रखते हैं, कुछ सावन के सोमवार को व्रत एवं पूजा करते हैं. भारी तादाद में शिव भक्त शिवजी को प्रसन्न करने के लिए कांवड़ यात्रा भी करते हैं. हिंदू धर्म के अनुसार कांवड़ यात्रा भगवान शिव का विशिष्ठ अनुष्ठान होता है, और इसे वार्षिकोत्सव के रूप में मनाया जाता है. जो लोग इस उत्सव में शामिल होते हैं, उन्हें कांवड़ियां कहते हैं. World Plastic Free Day 2023: प्लास्टिक बैग मुक्त दिवस, जानें इसका इतिहास, महत्व एवं प्रतिबंधित वस्तुओं के प्रयोग पर सजा.

हिंदू पंचांग के अनुसार 4 जुलाई 2023 से सावन शुरू हो जायेगा, तथा अधिमास के कारण इस वर्ष दो माह तक सावन रहेगा. इस तरह शिव-भक्तों को शिव-पूजा के लिए ज्यादा समय मिलेगा. गौरतलब है कि कांवड़ यात्रा सावन लगते ही शुरू हो जाती है, यानी कांवड़ यात्रा 4 जुलाई 2023 से शुरू होगी. आइये जानते हैं क्या है कांवड़ यात्रा एवं इसका महत्व तथा इतिहास.

क्यों होती है कांवड़ यात्रा

शिव पुराण के अनुसार समुद्र मंथन सावन (श्रावण) माह में हुआ था. इस समुद्र मंथन के दौरान चौदह प्रकार के माणिक प्राप्त हुए, जिन्हें देवताओं और राक्षसों में बांट दिया गया. सर्वप्रथम हलाहल (विष) निकला, जिसे भगवान शिव ने पी लिया. यह भयंकर विष उनके गले में जमा होने से उन्हें गले में तीव्र जलन होने लगी थी, इससे उनका कंठ नीला पड़ गया था. मान्यता है कि गले में असहनीय जलन की पीड़ा दूर करने के लिए शिव भक्त रावण ने कांवड़ में जल भरकर बागपत स्थित पुरा महादेव में भगवान शिव का गंगाजल से अभिषेक किया था, जिससे भगवान शिव को गले की पीड़ा से काफी आराम पहुंचा था. इसके बाद से ही कांवड़ यात्रा का सिलसिला शुरू हुआ था.

क्या है कांवड़ यात्रा

भगवान शिव के अनुयायी हर साल सावन मास में कांवड़ यात्रा पर निकलते हैं. यह एक तीर्थ यात्रा समान है, जो पूरे सावन मास तक चलता है. शिव भक्त अपने भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए यह यात्रा नंगे पैरों चलकर पूरी करते हैं. कांवड़ यात्रा मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं.

सामान्य कांवड़

सामान्य कांवर यात्रा के दौरान शिव भक्त जहां चाहे विश्राम करने के लिए स्वतंत्र होते हैं. इसके लिए सामाजिक संगठन के लोग कांवड़ियों के लिए पंडाल लगाते हैं, उनके लिए भोजन का प्रबंध करते हैं. विश्राम करने के बाद वह पुनः यात्रा शुरू करते हैं.

डाक कावड़

डाक कांवड़ यात्रा शुरू होने से लेकर शिव के जलाभिषेक तक कांवड़िए निरंतर चलते रहते हैं, वे बीच में कहीं भी नहीं रुकते. उनके लिए मंदिरों में विशेष व्यवस्था की जाती है. उनके मंदिर में प्रवेश करने पर उनका रास्ता साफ कर दिया जाता है. इसके लिए अन्य दर्शनार्थियों को विश्राम दिया जाता है, ताकि कांवड़िये चलते हुए सीधे शिवलिंग पर ही रुकें, और जलाभिषेक करें.

खड़ी कांवर

कुछ शिव भक्त खड़ी कांवर लेकर यात्रा करते हैं. इस दौरान उनके साथ एक या दो सहयात्री भी रहते हैं, जब एक यात्री आराम कर रहा होता है, तो दूसरा यात्री कांवड़ को अपने कंधों पर लेकर चलता है. नियमों के मुताबिक कांवड़ियों को गतिमान रहना पड़ता है.

दांडी कांवड़

दांडी कांवड़ यात्रा के दरमियान शिव भक्त नदी तट से शिव धाम तक की यात्रा दांडी के सहारे पूरी करते हैं. यह सबसे कठिन यात्रा होती है, क्योंकि दांडी यात्रा में कभी-कभी महीनों लग जाते हैं.

कांवड़ यात्रियों के लिए नियम

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