Human Rights Day 2019: जानें क्यों मनाते हैं ‘विश्व मानवाधिकार दिवस’, पढ़े अपने मूलभूत अधिकार

जब कोई इंसान पैदा होता है तो उसके मूलभूत अधिकार उसे खुद-ब-खुद मिल जाते हैं. उसे अपने अधिकारों का भले ही पता न हो लेकिन समाज और सरकारों की जिम्मेदारी होती है कि वे उसके मानव होने के अधिकारों की रक्षा करें. कोई वंचित है तो इसका मतलब यह नहीं कि उसे हमेशा वंचित रखा जाए.

Human Rights Day 2019, (फोटो क्रेडिट्स: ANI)

Human Rights Day 2019: जब कोई इंसान पैदा होता है तो उसके मूलभूत अधिकार उसे खुद-ब-खुद मिल जाते हैं. उसे अपने अधिकारों का भले ही पता न हो लेकिन समाज और सरकारों की जिम्मेदारी होती है कि वे उसके मानव होने के अधिकारों की रक्षा करें. कोई वंचित है तो इसका मतलब यह नहीं कि उसे हमेशा वंचित रखा जाए. हर इंसान को अपनी जिंदगी पूरी स्वतंत्रता, समानता एवं सम्मान के साथ जीने का अधिकार है. मानव अधिकार सुनिश्चित करता है कि किसी भी व्यक्ति के साथ भेदभाव या अमानवीय कृत्य नहीं हो. इन अधिकारों में प्रदूषण मुक्त वातावरण में जीने का अधिकार, पुलिस कस्टडी में अपमानजनक व्यवहार नहीं होने संबंधी अधिकार, महिलाओं के साथ सम्मानजनक व्यवहार तथा रंग, जाति, राष्ट्रीयता या लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं करने का अधिकार भी शामिल है. ये सभी अधिकार भारतीय संविधान के भाग-3 में मूलभूत अधिकारों के नाम से दर्शाये गए हैं. इसका उल्लंघन करने वालों को अदालत द्वारा सजा का भी प्रावधान है. मानवाधिकार के प्रति जागरुकता बनाए रखने के लिए 10 दिसंबर को विश्व भर में मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है.

यह भी पढ़ें: Human Rights Day 2019: विश्व भर में आज मनाया जा रहा है मानवाधिकार दिवस, जानें इसका इतिहास और महत्व

विश्व मानवाधिकार दिवस का मकसद

दुनिया भर में आज भी बहुत से लोग हैं, जिन्हें अपने ही मूलभूत अधिकारों की जानकारी नहीं है. जबकि हर व्यक्ति के लिए कुछ मौलिक अधिकार निहित हैं. उन्हें अपने अधिकारों को समझने, उसके प्रति जागरुक रहने तथा मानवाधिकारों के हनन को रोकने के लिए साल 1948 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने पहली बार विश्व मानवाधिकार घोषणा पत्र जारी किया. इस घोषणा पत्र के जरिए विश्व का ध्यान इंसान के अच्छे तरीके से जिंदगी गुजारने की ओर दिलाया गया. वर्ष 1950 में संयुक्त राष्ट्र ने 10 दिसंबर की तारीख को हर साल विश्व मानवाधिकार दिवस के रूप में तय किया. मानवाधिकारों में मुख्य रूप से आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकार और अंतर्राष्ट्रीय नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धता शामिल है. पूरी दुनिया में मानवता के खिलाफ हो रहे अत्याचार को रोकने के लिए इस दिवस की महत्वपूर्ण भूमिका है. इस दिवस पर ‘दूसरों के अधिकारों के लिए कदम उठाना’ विशेष उद्देश्य के रूप में शामिल किया गया है.

48 देशों से हुई शुरूआत

संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 1948 में मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा को अपनाये जाने वाले दिन से ही विश्व मानवाधिकार दिवस को परंपरा के साथ मनाया जा रहा है. शुरुआत में 48 देशों ने संयुक्त राष्ट्र जनरल असेंबली के साथ इस दिवस विशेष को मनाने की शुरुआत की थी. साल 1950 में महासभा द्वारा प्रस्ताव 423 (v) पारित करके सभी देशों एवं संस्थाओं को इसे अपनाने का आग्रह किया गया. यूएनजीए ने दिसंबर 1993 से इसे प्रतिवर्ष मनाने की घोषणा की.

भारत में मानव अधिकार कानून विलंब से आया

भले ही संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1950 में सभी देशों को इस दिवस विशेष को मनाने के लिए आमंत्रित किया, लेकिन भारत में मानवाधिकार कानून को अमल में लाने में लंबा वक्त लगा. भारत में 28 सितंबर 1993 से मानव अधिकार कानून अमल में आया. भारत सरकार ने 12 अक्‍टूबर 1993 को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन किया. आयोग के कार्यक्षेत्र में नागरिक और राजनीति के साथ-साथ आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकार भी आते हैं. जैसे बाल मजदूरी, एचआईवी/एड्स, स्वास्थ्य, भोजन, बाल विवाह, महिला अधिकार, हिरासत और मुठभेड़ में होने वाली मौत, अल्पसंख्यकों और अनुसूचित जाति और जनजाति के अधिकार.

क्या हैं 'मानव के मूलभूत अधिकार'

मानवाधिकार वास्तव में मनुष्य के मूलभूत सार्वभौमिक अधिकार हैं, जिससे मनुष्य को नस्ल, जाति, राष्ट्रीयता, लिंग, धर्म आदि किसी दूसरे कारक के आधार पर वंचित नहीं किया जा सकता. सभी व्यक्तियों को गरिमा और अधिकारों के मामले में समान स्वतंत्रता और समानता हासिल है. वास्तव में प्रत्येक व्यक्ति को ऐसे जीवनस्तर को प्राप्त करने का अधिकार है, जो उसे और उसके परिवार के स्वास्थ्य, कल्याण और विकास के लिए आवश्यक है.

भारतीय नागरिकों के मूलभूत अधिकार

जीवन का अधिकार-प्रत्येक व्यक्ति को अपना स्वतन्त्र जीवन जीने का जन्मसिद्ध अधिकार है.

न्याय का अधिकार- हर व्यक्ति को निष्पक्ष न्यायालय द्वारा निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार है. इसमें उचित समय के भीतर सुनवाई, जन सुनवाई और वकील के प्रबंध आदि के अधिकार शामिल हैं.

सोच, विवेक और धर्म की स्वतंत्रता - प्रत्येक व्यक्ति को विचार और विवेक की स्वतंत्रता है, उसे अपने धर्म को चुनने की भी स्वतंत्रता है और अगर वह इसे किसी भी समय बदलना चाहे तो उसके लिए भी स्वतंत्र है.

दासता से स्वतंत्रता - गुलामी और दास-प्रथा पर कानूनी रोक है. हालांकि यह अब भी दुनिया के कुछ हिस्सों में अवैध रूप से फल-फूल रहा है.

अत्याचार से स्वतंत्रता - अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत किसी पर अत्याचार पर प्रतिबंध है. हर व्यक्ति अत्याचार न सहने के लिए स्वतंत्र है.

मानवाधिकारों का उल्लंघन - मानव अधिकार विभिन्न कानूनों द्वारा संरक्षित हैं, लेकिन अभी भी लोगों, समूहों और कभी-कभी सरकार द्वारा इसका उल्लंघन किया जाता है. मानव अधिकारों के दुरुपयोग की निगरानी के लिए कई संस्थान बनाए गए हैं. जहां सरकारें और कुछ गैर-सरकारी संगठन भी इनकी जांच करते हैं.

Share Now

\