हिंदी दिवस 2018: कुछ ऐसे कवि और उनकी कविताएं, जो बढ़ाते हैं 'हिंदी' का मान-सम्मान
हिंदी भाषा के महान कवि Photo Credits: Facebook

देशभर में 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाएगा. इस दिन को हिंदी भाषा के गौरव और सम्मान दिवस के रूप में देश भर में मनाया जाता है. हिंदी भाषा के सम्मान और गौरव का श्रेय इसके महान कवियों और लेखकों को जाता है. जिन्होंने हिंदी साहित्य को नई उंचाइयों नए आयाम तक पहुंचाया. वे महान कवि जिन्होंने हिंदी साहित्य की ख्याति को विश्वभर में फैलाया. देश के ऐसे कई कवि हुए जिन्हें हिंदी साहित्य का आधार स्तंभ माना जता है.

हिंदी के महान कवियों द्वारा लिखी गई कई ऐसी कविताएं हैं, जो आज भी साहित्य के छेत्र में सर्वोपरि मानी जाती हैं. ये कविताएं आज भी हिंदी प्रेमियों की रग-रग में चेतनता भर देती हैं. हिंदी दिवस के मौके पर जानिए ऐसे ही कुछ महान कवियों और उनकी कविताओं के बारे में.

हरिवंश राय बच्चन

मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवाला,

'किस पथ से जाऊं?' असमंजस में है वह भोलाभाला,

अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूं -

'राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला.

हिंदी भाषा के सबसे लोकप्रिय कवि हरिवंश राय बच्चन माने जातें हैं, और उससे भी अधिक लोकप्रिय है उनके द्वारा लिखा गया अनुपम काव्य 'मधुशाला'. आज भी हिन्दी के ही नहीं, सारे भारत के सर्वाधिक लोकप्रिय कवियों में 'बच्चन' का स्थान सबसे ऊपर है. बच्चन और उनकी लोकप्रियता हर रूप में मधुशाला से जुड़ी है. जिन्हें उनकी पहली रचना भी कहा जता है. मधुशाला 135 रुबाइयों वाली कविता है. मधुशाला की दीवानगी सभी हिंदी प्रेमियों की रग-रग में हैं. इसी के साथ मधुबाला और मधुकलश भी उनकी श्रेष्टतम रचनाएं हैं. यह भी पढ़िए- हिंदी दिवस 2018: जानिए 14 सितंबर को क्यों मनाया जाता है हिंदी दिवस

मेरे अधरों पर हो अंतिम वस्तु न तुलसीदल प्याला

मेरी जीव्हा पर हो अंतिम वस्तु न गंगाजल हाला,

मेरे शव के पीछे चलने वालों याद इसे रखना

राम नाम है सत्य न कहना, कहना सच्ची मधुशाला.

हरिवंश राय बच्चन की कविता संग्रह से कुछ बेहतरीन रचनाओं को छांटना हिंदी प्रेमियों के लिए वाकई मुश्किल का काम है. लोकप्रियता के आधार पर उनकी कविताओं में अग्निपथ, रात आधी खींचकर, प्रतीक्षा, निशा निमंत्रण, घुल रहा मन चांदनी में, जीवन की आपाधापी में, बहुत दिन बीते मुख्य हैं.

रात आधी खींच कर मेरी हथेली

एक उंगली से लिखा था प्यार तुमने.

फासला था कुछ हमारे बिस्तरों में

और चारों ओर दुनिया सो रही थी.

 

दुष्यंत कुमार-

मैं जिसे ओढ़ता बिछाता हूं, वो गजल आपको सुनाता हूं,

एक जंगल है तेरी आंखों में, मैं जहां राह भूल जाता हूं.

दुष्यंत कुमार ने अपनी कलम से कुछ ऐसा जादू बिखेरा कि हर आज भी हर कोई उनका कायल है. अपने समय पर दुष्यंत कुमार युवा दिलों की आवाज कहे जाते थे. दुष्यंत कुमार की कविताओं में तू किसी रेल सी, मेरे सीनें में नहीं, अब तो इस तालाब का पानी बदल दो, तुम्हारे पांव के निचे कोई जमीन नहीं, थोड़ी आंच बची रहने दो, कब्रिस्तान में घर मिल रहा है मुख्य हैं. यह भी पढ़िए-हिंदी दिवस 2018: बॉलीवुड के इन स्टार्स ने बनाई हिंदी भाषा को अपनी पहचान, पेश की मिसाल

सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,

सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए.

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,

हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए.

 

नागार्जुन-

कालिदास! सच-सच बतलाना !

इंदुमती के मृत्यु शोक से

अज रोया या तुम रोये थे ?

कालिदास! सच-सच बतलाना.

नागार्जुन को कालजयी कवि कहा जाता है. नागार्जुन की कविता में जो समसामयिक टिप्पणियाँ दिखाई देती हैं, उसके पीछे जो बुनियादी मुद्दे हैं वो बहुत गहरे हैं. वो तो आज भी समाज में उसी तरह मौजूद है जिस तरह से नागार्जुन देख रहे थे. यह भी पढ़िए-हिंदी दिवस 2018: बॉलीवुड की वो फिल्में जिसने हिंदी भाषा में मनवाया लोहा

नागार्जुन ने लिखा है कवि न किसी से डरता है, न पथ से डिगता वह कहता है. जनता मुझसे पूछ रही है, क्या बतलाऊँ? जनकवि हूँ मैं स़ाफ कहूंगा, क्यों हकलाऊँ?

 

महादेवी वर्मा-

मैं अनन्त पथ में लिखती जो

सस्मित सपनों की बातें,

उनको कभी न धो पायेंगी

अपने आँसू से रातें!

महादेवी वर्मा हिंदी साहित्य के स्तंभों में से एक हैं, उन्हें 'आधुनिक युग की मीरा' भी कहा जाता है. उनकी कविताओं में निहार, रश्मि, सांध्यगीत, दीपशिखा मुख्य हैं.

 

रामधारी सिंह दिनकर-

सौभाग्य न सब दिन होता है

देखें आगे क्या होता है...

रामधारी सिंह दिनकर को जनकवि और राष्ट्रकवि भी कहा जाता था. उनकी कविताएं ऐसी होती थी जो मन को आंदोलित कर दे और उत्साह से रोम-रोम भर दे. दिनकर वीर रस की कविताओं के लिए आजादी के दौर में बड़े प्रसिद्ध थे.

देश की आजादी की लड़ाई में भी दिनकर ने अपना योगदान दिया. उनकी कविताओं में से एक रश्मिरथी अति लोकप्रिय और प्रसिद्ध है. अन्य रचनाओं में रेणुका, प्रेम का सौदा, हुंकार, धुप और धुआं, इतिहास के आंसू प्रमुख हैं.

प्रेम का सौदा बड़ा अनमोल रे !

निःस्व हो, यह मोह-बन्धन खोल रे !

मिल गया तो प्राण में रस घोल रे !

पी चुका तो मूक हो, मत बोल रे !