Dussehra 2018: विजयादशमी पर क्यों बांटे जाते हैं सोने के पत्ते, जानें इससे जुड़ी पौराणिक मान्यता

रावण दहन के बाद लोग एक-दूसरे से मिलकर विजयादशमी की शुभकामनाओं के साथ सोने की पत्तियां देते हैं. विजयादशमी के दिन सोने की पत्तियों के आदान-प्रदान की यह परंपरा सदियों से चली आ रही है.

सोने की पत्तियां (Photo Credits: Wikimedia Commons/ Flickr, Dinesh Valke)

आश्विन मास में पड़ने वाले शारदीय नवरात्रि में नौ दिनों तक मां दुर्गा की पूजा-अर्चना करने के बाद 10वें दिन विजयादशमी यानी दशहरे का पर्व मनाया जाता है. इस पर्व को असत्य पर सत्य के विजय के तौर पर मनाया जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान श्रीराम ने लंकापति रावण से लंबा युद्ध किया था और युद्ध के 10वें दिन उन्होंने रावण का वध करके विजय प्राप्त की थी, इसलिए आज भी दशहरे के दिन जगह-जगह पर रावण के पुतले का दहन किया जाता है. रावण दहन के बाद लोग एक-दूसरे से मिलकर विजयादशमी की शुभकामनाओं के साथ सोने की पत्तियां बांटते हैं.

विजयादशमी के दिन सोने की पत्तियों के आदान-प्रदान की यह परंपरा सदियों से चली आ रही है. इन पत्तियों को बिड़ी के पत्ते और शमी के पत्ते के नाम से भी जाना जाता है. आखिर क्यों दशहरे पर सोने की यानी शमी की पत्तियां दी जाती हैं, चलिए जानते हैं इससे जुड़ी मान्यताएं.

श्रीराम ने की थी इस वृक्ष की पूजा

मान्यता है कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने लंका पर आक्रमण करने से पहले शमी वृक्ष के सामने शीश झुकाकर जीत के लिए प्रार्थना की थी. उन्होंने इन पत्तियों को स्पर्श किया था, जिसके फलस्वरूप उन्हें रावण पर विजय मिली. इसलिए सदियों से यह मान्यता चली आ रही है कि विजयादशमी के लिए सोने के प्रतीक के तौर पर शमी की पत्तियों का आदान-प्रदान करने से सुख, समृद्धि और विजय की प्राप्ति होती है. यह भी पढ़ें: Dussehra 2018: इन Messages के जरिए दीजिए अपने दोस्तों को विजयादशमी की शुभकामनाएं

इस वृक्ष पर पांडवों ने छुपाए थे अपने हथियार
हिंदू धर्म में विजयादशमी के दिन शमी के वृक्ष का पूजन किया जाता है. खासकर क्षत्रियों में इस पूजन का विशेष महत्व बताया जाता है. एक पौराणिक मान्यता के अनुसार, महाभारत के युद्ध में पांडवों ने इसी वृक्ष के ऊपर अपने अस्त्र-शस्त्र छुपाए थे, जिसके बाद युद्ध में उन्हें कौरवों पर विजय मिली थी.
 महर्षि वरतंतु ने गुरु दक्षिणा में मांगे थे 14 करोड़ सोने के सिक्के 
एक और किदवंती के अनुसार, आयोध्या में वरतंतु नाम के एक महर्षि ने कौत्स को पाल-पोसकर बड़ा किया और उसे अपना समस्त ज्ञान प्रदान किया. ज्ञान प्राप्त करने के बाद जब कौत्स आश्रम से जाने लगा तब उसने महर्षि वरतंतु से गुरु दक्षिणा मांगने का आग्रह किया. हालांकि उन्होंने अपने शिष्य की इस बात को अनसुना कर दिया, लेकिन बार-बार आग्रह करने पर गुरु ने उससे 14 करोड़ सोने के सिक्कों की मांग की. तत्पश्चात सोने के सिक्कों के लिए कौत्स आयोध्या के राजा राम के पास पहुंचे.
भगवान राम ने कौत्स की इस समस्या का निवारण करने के लिए उसे शमी के पेड़ के नीचे इंतजार करने के लिए कहा. तीन दिन बीत जाने के बाद उस वृक्ष से सोने के सिक्कों की बरसात होने लगी और कौत्स  गुरु दक्षिणा के लिए 14 करोड़ सिक्के लेकर वहां से चला गया. बाद में इन सिक्कों को गरीबों में वितरित किया गया. दरअसल, भगवान राम की कृपा से ही धन के देवता कुबेर ने यह चमत्कार किया था. यह भी पढ़ें: Dussehra 2018: जानें कब मनाया जाएगा विजयादशमी का पर्व, दुर्भाग्य को दूर करने के लिए इस दिन करें ये उपाय
मराठा सैनिकों की जीत का है प्रतीक
एक अन्य कथा के अनुसार, जब मराठा सैनिक युद्ध में विजय प्राप्त करने के बाद अपने साथ खूब सारा सोना और युद्ध के हथियारों के साथ लौटे, तब इन चीजों को भगवान के समक्ष रखकर पूजा की गई और प्रियजनों में बांटा गया. इसलिए इस परंपरा को जीवंत रखने के लिए महाराष्ट्र में आज भी सोने के प्रतीक के तौर पर सोने की पत्तियों के साथ विजयादशमी को शुभकामनाएं दी जाती हैं.
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