Dr BR Ambedkar Mahaparinirvan Din 2023: छात्र ही नहीं शिक्षक जीवन में भी छुआछूत के शिकार बने थे बाबा साहेब! जानें उनके जीवन के कुछ प्रेरक प्रसंग!
Mahaparinirvan Din 2023: भीमराव समान नागरिक संहिता के पक्षधर थे और जम्मू-कश्मीर के मामले में अनुच्छेद 370 का विरोध करते थे. उनका कहना था कि भारत वैज्ञानिक सोच एवं तर्कसंगत विचारों का देश होता, तो उसमें पर्सनल कानून की जगह नहीं होती.
Mahaparinirvan Din 2023: सामाजिक न्याय, समानता और मानवाधिकारों के प्रबल समर्थक बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महानायक थे, जिन्होंने भारतीय संविधान की रचना की, उनका जन्म 14 अप्रैल 1891 को महू नगर (मध्य प्रदेश) के पिता रामजी मालोजी सकपाल और माँ भीमाबाई सकपाल के घर हुआ था. इनका बचपन आर्थिक संकटों, जातिगत भेदभाव एवं सामाजिक असमानता के बीच गुजरा. शिक्षा-दीक्षा के लिए भी उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा. स्कॉलरशिप की मदद से भीमराव ने लंदन के अंग्रेजी विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त करने के बाद वह भारत लौटे, इसके बाद उन्होंने अपना सारा जीवन सामाजिक सुधार संबंधी कार्यों में गुजारा. डॉक्टर भीमराव आंबेडकर की 67वीं पुण्य-तिथि पर आइये जानें संविधान निर्माता के बारे में कुछ रोचक एवं प्रेरक तथ्य..
भीमराव अम्बेडकर शिक्षा एवं विवाह!
भीमराव ने मुंबई में शुरुआती शिक्षा प्राप्त की. यद्यपि छोटी जाति का होने के कारण उन्हें स्कूली शिक्षा में काफी परेशानी हुई. 1907 में मैट्रिक की परीक्षा पास कर 1912 में बॉम्बे विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र और राजनीति शास्त्र की पढ़ाई की. बड़ौदा के गायकवाड़ प्रशासन से छात्रवृत्ति पाकर उन्होंने अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी के विश्वविद्यालयों में शिक्षा ली. गायकवाड़ शासक के अनुरोध पर उन्होंने बड़ौदा लोक सेवा में प्रवेश लिया. यहां भी उन्हें उच्च जाति द्वारा द्वारा बुरे व्यवहार का सामना करना पड़ा. बाबा साहेब ने लॉ-प्रैक्टिस के साथ ही दलितों के उत्थान हेतु भी कार्य किया. यहीं सरकार की विधान परिषदों में दलितों के लिए विशेष प्रतिनिधित्व पाने के लिए लड़ाई लड़ी.
ताउम्र छुआछूत का करना पड़ा सामना
आंबेडकर ने दलितों के खिलाफ हो रहे सामाजिक भेदभाव के विरोध में कई अभियान और आंदोलन चलाये. साथ ही दलित बौद्ध आंदोलन को भी प्रेरित किया और बौद्ध समाज की स्थापना की. स्कूली दिनों में उन्हें छुआछूत का काफी सामना करना पड़ा. मसलन उन्हें उस मटके से पानी नहीं पीने दिया जाता था, जिससे उच्च वर्ग के बच्चे पानी पीते थे. कक्षा में बैठने के लिए उन्हें ही चटाई लाना पड़ता था. इस तरह की छुआछूत की घटना बचपन में ही नहीं, बल्कि मुंबई में सिडेनहैम कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनॉमिक्स में शिक्षा देते हुए भी उनके साथ अस्पृश्यता जैसा व्यवहार होता था. उनके मित्र भी उनके साथ पानी नहीं पीते थे.
इसलिए अपनाया बौद्ध धर्म!
साल 1950 में भीमराव एक बौद्धिक सम्मेलन में भाग लेने श्रीलंका गए. यहां वह बौद्ध धर्म से अत्यधिक प्रभावित हुए. स्वदेश वापसी पर उन्होंने बौद्ध धर्म के बारे में पुस्तक लिखी. इसके बाद साल 1955 में उन्होंने भारतीय बौद्ध महासभा की स्थापना की. 14 अक्टूबर 1956 को उन्होंने एक आम सभा आयोजित की, जिसमें उनके साथ पांच लाख समर्थकों ने भी बौद्ध धर्म अपनाया. कुछ समय बाद 6 दिसंबर, 1956 को उनका निधन हो गया। उनका अंतिम संस्कार बौद्ध धर्म की रीति-रिवाज के अनुसार किया गया.
संविधान निर्माण एवं अनुच्छेद 370 का विरोध!
बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर ने बतौर संविधान समिति के अध्यक्ष भारत के संविधान की रचना की. संविधान समिति का काम 1946 में शुरू हुआ था और संविधान का निर्माण 26 नवंबर, 1949 को पूरा हुआ था. गौरतलब है कि संविधान भारत की संवैधानिक शासन व्यवस्था है और 26 जनवरी, 1950 को भारत के गणतंत्र की शुरुआत हुई थी. कम लोगों को पता होगा, कि आंबेडकर ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 370 का विरोध किया था, जिसने जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा दिया था. लेकिन आंबेडकर ने इस अनुच्छेद का खुलकर विरोध किया, तब नेहरू और शेख अब्दुल्ला ने मिलकर अनुच्छेद 370 को संविधान में शामिल किया.
समान नागरिक संहिता का समर्थन!
भीमराव समान नागरिक संहिता के पक्षधर थे और जम्मू-कश्मीर के मामले में अनुच्छेद 370 का विरोध करते थे. उनका कहना था कि भारत वैज्ञानिक सोच एवं तर्कसंगत विचारों का देश होता, तो उसमें पर्सनल कानून की जगह नहीं होती. संविधान सभा में बहस के दौरान, उन्होंने समान नागरिक संहिता को अपनाने की सिफारिश की थी.
बाबासाहेब का निधन!
भीमराव आंबेडकर लंबे समय से मधुमेह की बीमारी से पीड़ित थे. लंबी बीमारी के पश्चात 6 दिसम्बर 1956 को दिल्ली स्थित निवास पर बाबासाहेब का निधन निधन हो गया. मृत्यु के समय उनकी आयु 64 वर्ष 7 माह थी.