Dattatreya Jayanti 2022: भगवान दत्तात्रेय को सती अनुसुइया ने क्यों कराया था स्तनपान? जानें दत्तात्रेय जयंती का महत्व, पूजाविधि एवं पौराणिक कथा!

हिंदू पंचांगों के अनुसार मार्गशीर्ष (अगहन) मास की पूर्णिमा के दिन भगवान दत्तात्रेय का जन्म हुआ था, इसलिए इस दिन दक्षिण भारत के अधिकांश राज्यों में भगवान दत्तात्रेय की जयंती की बड़ी धूमधाम के साथ मनाई जाती है

प्भरतिकात्गमक (Photo Credits File)

Dattatreya Jayanti 2022: हिंदू पंचांगों के अनुसार मार्गशीर्ष (अगहन) मास की पूर्णिमा के दिन भगवान दत्तात्रेय का जन्म हुआ था, इसलिए इस दिन दक्षिण भारत के अधिकांश राज्यों में भगवान दत्तात्रेय की जयंती की बड़ी धूमधाम के साथ मनाई जाती है. इस दिन लोग व्रत रखते हैं और दत्तात्रेय की पूजा-अनुष्ठान करते हैं. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष 7 दिसंबर 2022, बुधवार को भगवान दत्तात्रेय की जयंती मनाई जायेगी. यह भी पढ़े: Tripur Sundari Jayanti 2022: कौन हैं त्रिपुर सुंदरी? जिनके अनुष्ठान से घर में आती है शुभता, दूर होते हैं आर्थिक संकट!

दत्तात्रेय जयंती का महत्व

हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार, भगवान दत्तात्रेय त्रिमूर्ति ब्रह्मा (निर्माता), विष्णु (पोषणकर्ता) एवं महेश (भगवान शिव, विध्वंसक) का एक एक स्वरूप हैं. मान्यता है कि इन्होंने प्रकृति, पशु पक्षी और मानव समेत चौबीस गुरु बनाए थे. इनकी उपासना तत्काल फलदायी होती है. तीन सिर और छह भुजाओं वाले दत्तात्रेय की पूजा कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र एवं गुजरात में पूरी श्रद्धा एवं आस्था से की जाती है. इन राज्यों में भगवान दत्तात्रेय की जयंती पर इनके बाल स्वरूप की पूजा की जाती है और उत्सव मनाया जाता है, जिसमें भगवान दत्तात्रेय के हजारों श्रद्धालु शामिल होते हैं. मान्यता है कि भगवान दत्तात्रेय की विधि-विधान से पूजा करने से त्रिमूर्ति की विशेष कृपा से सारे संकट दूर होते हैं और सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

दत्तात्रेय जयंती: तिथि एवं विशेष योग

पूर्णिमा प्रारम्भः 08.01 AM (7 दिसंबर 2022, बुधवार)

पूर्णिमा समाप्तः 09.37 AM (8 दिसंबर 2022, गुरुवार)

सिद्ध योगः 02.52 AM (07 दिसंबर) से 02.54 AM (08 दिसंबर) तक

सर्वार्थसिद्ध योगः 07.25 AM (07 दिसंबर 2022) से 06.48 AM (08 दिसंबर 2022) तक

दत्तात्रेय जयंती पर पूजा विधि

मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर घर की मंदिर की सफाई करें. मंदिर के समक्ष एक चौकी बिछाकर उस पर श्वेत वस्त्र का आसन बिछाकर भगवान दत्तात्रेय की प्रतिमा अथवा तस्वीर रखें. अब उनके समक्ष धूप-दीप प्रज्वलित कर उनका ध्यान करें. इन्हें फूल, अबीर, रोली, पान, सुपारी एवं इत्र अर्पित करते हुए निम्न मंत्रों का उच्चारण करें.

दत्तात्रेय का महामंत्रः 'दिगंबरा-दिगंबरा श्रीपाद वल्लभ दिगंबरा'

तांत्रोक्त दत्तात्रेय मंत्रः 'ॐ द्रां दत्तात्रेयाय नम:'

दत्त गायत्री मंत्रः 'ॐ दिगंबराय विद्महे योगीश्रारय् धीमही तन्नो दत: प्रचोदयात'

मंत्रोच्चारण के साथ ही भगवान दत्तात्रेय को फल एवं मिठाई का भोग लगाएं. मान्यता है कि इस दिन अवधूत गीता एवं जीवनमुक्ता गीता का पाठ करने से भगवान दत्तात्रेय के प्रताप से जातक के सारे कष्ट दूर होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि एवं ऐश्वर्य आती है. इसके बाद दत्तात्रेय जयंती की कथा का वाचन अथवा श्रवण करें.

पौराणिक कथा

एक बार देवर्षि नारद ने त्रिदेवों की पत्नियों (लक्ष्‍मी, पार्वती, सरस्‍वती) की परीक्षा लेने उनके पास पहुंचे, और कहा, मैंने समस्त ब्रह्माण्ड में अत्रि ऋषि की पत्नी अनुसुइया जैसी पतिव्रता स्त्री कोई नहीं देखी. तीनों देवियों को अनुसुइया की प्रशंसा अच्छी नहीं लगी. उन्होंने अपने पतियों से अनुसुइया का धर्म भंग करने के लिए कहा. पत्नी की प्रसन्नता के लिए तीनों देव भिक्षुक के रूप में अत्रि मुनि के आश्रम में आकर देवी अनुसुइया खाना खिलाने की मांग की, साथ ही शर्त रखी कि वे वस्त्रहीन होकर भोजन करायें. देवी अनुसुइया ने उनकी शर्त मानते हुए अपनी सतीत्व की शक्ति से त्रिदेव को शिशु रूप में परिवर्तित कर उन्हें स्तनपान कराकर अलग-अलग पालने में सुला दिया. काफी समय बीतने के बाद भी जब तीनों देव वापस नहीं लौटे तो त्रिदेवियां वेष बदलकर अनुसुइया के आश्रम पहुंचीं, और अपने पतियों के बारे में पूछा.

देवी अनुसुइया ने कहा, तुम्हारे पति पालने में सो रहे हैं, अपने-अपने पतियों को ले लो. लेकिन तीनों के मुख समान होने से वे अपने पतियों को पहचान नहीं पाईं. तब वे अपने मूल रूप में आकर अपनी गल्तियों के लिए छमा मांगी. देवी अनुसुइया ने कहा कि तीनों ने मेरा स्तनपान किया है, इनके एक रूप को मेरे पास रहना होगा. इसके बाद त्रिदेव का एक अन्य स्वरूप प्रकट हुआ, जिसे दत्तात्रेय नाम दिया गया. इसके बाद देवी अनुसुइया ने तीनों शिशुओं को मूल रूप में लाकर तीनों देवियों को सौंप दिया.

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